हिंदी की कालजयी कृति “कामायनी” के अमर रचनाकार महाकवि जयशंकर प्रसाद के जीवन पर आधारित उपन्यास ” कंथा” हाल ही में प्रकाशित होकर आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
यह पहला मौका है जब आधुनिक हिंदी साहित्य के किसी लेखक के जीवन पर कोई उपन्यास लिखा गया हो ।अब तक प्रेमचन्द ,निराला या महादेवी दिनकर बच्चन आदि के जीवन पर कोई उपन्यास नहीं लिखा गया है।
वाराणसी के पत्रकार श्याम बिहारी श्यामल ने करींब बीस साल पहले इस उपन्यास की योजना बनाई थी और दस वर्ष के शोध और श्रम के बाद 544 पृष्ठों का यह उपन्यास लिखा है जिसमे पंडित मदन मोहन मालवीय, महावीर प्रसाद द्विवेदी प्रेमचन्द, निराला, महादेवी , रामचन्द्र शुक्ल ,राय कृष्ण दास ,विनोद शंकर व्यास और आचार्य शिवपूजन सहाय जैसे लेखक पात्र हैं जो प्रसाद जी से जुड़े थे।
उन्होंने बताया कि प्रसाद जी का व्यक्तित्व हिमालय की तरह ऊंचा और विनम्र तथा गरिमामय था। उपन्यास का नाम “कंथा “प्रसाद जी की एक कविता के शीर्षक से लिया गया जिसका अर्थ गुदड़ी होता है। गुदड़ी में ही लाल छिपे होते हैं।
उन्होंने बताया कि प्रेमचन्द ने अपनी पत्रिका “हंस” का जब आत्मकथा अंक 1932 में निकाला तब उन्होंने प्रसाद जी से अपनी आत्मकथा का कोई अंश मांगा था ।चूंकि प्रसादजी अपना प्रचार कभी नहीं करते थे और मौन साधक थे इसलिए उन्होंने यह कविता भेजी जिसका अर्थ था कि हमारा जीवन गुदड़ी के समान है।
राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस उपन्यास में बताया गया है कि प्रसाद के निजी डॉक्टर ने अपने क्लिनिक में पहली बार प्रेमचन्द की मुलाकात प्रसाद से कराई थी।
श्री श्यामल ने बताया कि पंडित मदन मोहन मालवीय जैसा व्यक्ति जयशंकर प्रसाद का बहुत सम्मान करता था और काशी नागरी प्रचारिणी सभा मे जयशंकर प्रसाद का अभिनन्दन समारोह हुआ तो मालवीय जी ने ही प्रसाद पर अभिनंदन पत्र पढ़ा था।
30 जनवरी 1889 में जन्मे प्रसाद का निधन 15 नवम्बर 1937 में हुआ था। निधन के एक वर्ष पूर्व कामायनी छपा और उसी साल प्रेमचन्द का गोदान छपा और दोनों किताबें कालजयी कृतियाँ मानी गईं।प्रसाद की स्कूली शिक्षा सातवीं क्लास तक हुई थी लेकिन स्वाध्याय से वे दार्शनिक लेखक बने जिनका गहन अध्ययन भारतीय इतिहास और संस्कृति में था।
श्री श्यामल ने बताया कि प्रसाद जी का जीवन मुसीबतों से भरा था।बचपन मे उनके माता पिता भाई मरे ही दो दो पत्नियां और एक सन्तान भी मर गयी। पहली पत्नी सरस्वती देवी रहीं. उनके निधन के बाद विंध्यवासिनी देवी आईं लेकिन पहले ही प्रसव के समय उनका निधन हो गया. उनका शव लेकर परिजन और संबंधित लोग श्मशान पहुंचे ही थे कि पीछे से नवजात का मृत शरीर भी पहुंच गया।
इस घटना ने प्रसाद को हिला कर रख दिया. वह विराग से भर उठे. एक रात घर छोड़ निकल पड़े. मीरजापुर में विंध्य पर्वतमाला की अष्टभुजी पहाड़ी पर जा पहुंचे, साधु के रूप में. ‘कंथा’ का कथारम्भ इसी दृश्य-प्रसंग से हुआ है।