साहित्यकार का सत्य इतिहासकारों के तथ्य से ज़्यादा विश्वसनीय है – श्रीमती द्रौपदी मुर्मु
नई दिल्ली 4अगस्त । राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कल भोपाल में एशिया के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव “उन्मेष ” शुभारंभ जिसमें 103 भाषाओं के 575 लेखक भाग ले रहे हैं।
इतना विशाल साहित्यिक आयोजन एशिया के किसी देश में अब तक नहीं हुआ था और यह एक नया रिकार्ड बनने जा रहा है।
राष्ट्रपति मुर्मु ने मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल एवं मध्य मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उपस्थिति में इस समारोह का उद्घाटन किया। इस अवसर पर संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव उमा नंदूरी, संगीत नाटक अकादेमी की अध्यक्ष संध्या पुरेचा तथा साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक भी उपस्थित थे।
राष्ट्रपति मुर्मु ने समारोह का उद्घाटन करते हुए कहा कि मानवता का वास्तविक इतिहास विश्व के महान साहित्य में ही मिलता है। साहित्यकार का सत्य इतिहासकारों के तथ्य से अधिक प्रामाणिक होता है।
“उन्मेष’ का अर्थ ज्ञान के प्रकाश के रूप चिन्हित करते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य जुड़ता है और जोड़ता भी है। उन्होंने देष और विदेश से पधारे साहित्यकारों का इस महासंगम में स्वागत करते हुए कहा कि साहित्य का आदान प्रदान से ही दुनिया में एक बेहतर समझ का निर्माण होता है जो हम सभी को श्रेष्ठ नागरिक बनने में भी सहायता करता है। साहित्य हमेशा सत्य का संवाहक होता है और साहित्य ने मानवता को बचाने का काम हमेशा किया है।
स्वागत उद्बोधन संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव उमा नंदूरी ने दिया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश को कला, साहित्य और संस्कृति की संगम स्थली कहते हुए कहा कि शारीरिक सुख के अतिरिक्त मन, बुद्धि और आत्मा का सुख हमें साहित्य से ही प्राप्त होता है। अतः ‘उन्मेष’ जैसे कार्यक्रम हमारी मूलभूत एकता को सँजोने के लिए बेहद महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। ऐसे आयोजन निश्चित तौर पर सारी दुनिया को इकट्ठा करने में समर्थ और सक्षम होते हैं।
राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने इस अवसर पर कहा कि साहित्य और कला प्रेमियों के लिए यह आनंद का अवसर है कि साहित्य और संस्कृति का इतना बड़ा सामंजस्य हम भोपाल में देखेंगे। आगे उन्होंने कहा कि यह उत्सव वैश्विक मूल्यों को भी संरक्षित करने के लिए भी बहुत सहयोगी होगा।
साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने अपने उद्बोधन में कहा कि उन्मेष के इस आयोजन में 103 भाषाओं के 575 से अधिक लेखक शामिल हो रहे हैं। कागज से लेकर कंप्यूटर और कलम से लेकर कैनवस तक अभिव्यक्ति की हर विधा उन्मेष में शामिल है। बदलते परिवेश में साहित्यकार ही वसुधैव कुटुम्बकम् की परंपरा को जीवित रख सकते हैं। उन्होंने इसे ऐतिहासिक पल बताते हुए कहा कि हमारे सभी लेखक हमारे लिए धरोहर हैं।
उन्मेष के अंतर्गत आज 14 अन्य कार्यक्रम आयोजित किए गए जिनमें 100 से ज्यादा कवि, कथाकारों, फिल्मकार और अनुवादकों ने भाग लिया । कुछ प्रमुख सत्र थे; सिनेमा और साहित्य जिसकी अध्यक्षता प्रख्यात फिल्म निर्देशक गिरीश कासरवल्ली ने की और ओ.पी.श्रीवास्तव, रत्नोत्तमा सेनगुप्ता, त्रिपुरारी शरण ने अपने विचार व्यक्त किए।
आदिवासी कवि सम्मेलन, मेरे लिए स्वतंत्रता का अर्थ, भारत की अवधारणा, मातृभाषाओं का महत्त्व, पर्यावरणीय समालोचना, चिकित्सकों का साहित्य, साहित्य और प्रकृति और सागर साहित्य पर अन्य कार्यक्रम थे जिसमें शेखर पाठक, ध्रुव ज्योति बोरा, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, उदय नारायण सिंह, महेंद्र कुमार मिश्र, माधव कौशिक , लीलाधर जगूड़ी आदि ने भाग लिया। आज का एक अन्य आकर्षण भूमंडलीकृत विश्व के लिए वैश्विक साहित्य विषयक परिचर्चा थी जिसमें श्रीलंका, फीजी, जापान, पोलैंड, स्पेन और नेपाल के लेखकों ने हिस्सा लिया।
— इंडिया न्यूज स्ट्रीम