1. हमारी पसंद

हमारी पसंद

कभी ख़िरद कभी दीवानगी ने लूट लिया तरह तरह से हमें ज़िंदगी ने लूट लिया                         –हफ़ीज़ बनारसी

कोई समझे तो एक बात कहूँ इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं             –फिराक़ गोरखपूरी

जहाँ भी देखा वहीँ पाया तुझको जान-ए-विसालतेरी निगाह का परतो कहाँ कहाँ न मिला —-मसूद हुसैन (आज उर्दू के मशहूर साहित्यकार और शायर मसूद हुसैन की १०४ वीं जयंती हैl)

प्यार किया है कि सौदा कोई ! तुझे पाया है सबकुछ खोने के बाद !! — शम्स परवेज़

हाँ याद मुझे तुम कर लेना आवाज़ मुझे तुम दे लेनाइस राह-ए-मोहब्बत में कोई दरपेश जो मुश्किल आ जाए –बहज़ाद लखनवी

हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन दिलके बहलाने को “ग़ालिब” यह ख्याल अच्छा है —मिर्ज़ा ग़ालिब

देखो ये मेरे ख़्वाब थे देखो ये मेरे ज़ख़्म हैंमैं ने तो सब हिसाब-ए-जाँ बर-सर-ए-आम रख दिया –अहमद फ़राज़

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहेजब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों–बशीर बद्र

दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है –फैज़ अहमद फ़ैज़

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