देश में तीन सौ भाषाएं मर गईं पर किसी को चिंता नहीं: आशीष नंदी

नई दिल्ली। जाने मानेबुद्धिजीवी और राजनीतिक सिद्धांतकार आशीष नंदी ने कहा है कि हमारे देश में देखते देखते 300 से अधिक भाषाएं मर गई पर किसी ने अभी तक कोई चिंता जाहिर नहीं की है।

दुनिया के कई प्रतिष्टित विश्वविद्यालयों में फेलो रह चुके श्री आशीष नंदी ने गत दिनों यहां गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान की शोध पत्रिका “समाजिकी ” के विमोचन के अवसर पर यह चिंता जाहिर की। प्रसिद्ध इतिहासकार बद्रीनारायण द्वारा संपादित इस पत्रिका के विमोचन समारोह में जान जाने-माने इतिहासकार सुधीर चंद्रा, मशहूर राजनीति शास्त्री राजीव भार्गव केंद्रीय आदिवासी विश्वविद्यालयआंध्रप्रदेश के कुलपति टी वी कटीमणि, गोविंद वल्लभ पंत सामाजिक संस्थान के पूर्व अध्यक्ष राजन हर्षे, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर विधु वर्मा संतोष मेहरोत्रा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

बिहार के भागलपुर में जन्मे 84 वर्षीय नंदी ने कहा कि जब एक भाषा मरती है तो विश्व को देखने की एक दृष्टि मरती है। भारत में पहले भाषा सर्वेक्षण में 15 सौ भाषाएं थी लेकिन उसके बाद देश में कोई दूसरा भाषा सर्वेक्षण हुआ ही नहीं। इससे पता चलता है कि हम अपने देश की भाषओं को लेकर संवेदनशील नहीं हैं लेकिन प्रसिद्ध आदिवासी साहित्य विशेषज्ञ गणेश देवी ने जब भाषाओं का जन सर्वेक्षण किया तो पता चला कि अब देश में केवल 1200 भाषाएं ही बची हैं यानी इस तरह 300 भाषाओं मर गई।

उन्होंने ब्रिटेन के दिवंगत प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को उद्धरित करते हुए कहा कि भाषा और बोली में अंतर यह है कि भाषाओं के पास थलसेना नौ सेना और वायु सेना होती है यानी एक शक्ति होती है और इसके सहारे वह जीवित रहती हैं तथा फैलती है। उन्होंने कहा कि भोजपुरी और मैथिली तो 400 वर्ष पुरानी हैं लेकिन आज जो हिंदी हम बोल रहे हैं वह तो महज 100 वर्ष पुरानी भाषा है लेकिन उसका विस्तार अधिक हुआ। उन्होंने कहा कि हिंदी को राजभाषा बनाया गया पर उसने जोड़ने का काम नहीं किया और उससे हिंदी का विकास नहीं हुआ।

गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के निदेशक एवम प्रसिद्ध इतिहासकार बद्री नारायण ने कहा कि देश में समाज विज्ञान के क्षेत्र में शोध कार्य अंग्रेजी में ही होता हैपर जब वह संस्थान के निदेशक बने तो उन्हें महसूस हुआ कि उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वह समाज विज्ञान को हिंदी में आगे बढ़ाने का काम करें और इसके लिए ही यह पत्रिका निकाली गई है।

इस पत्रिका के परामर्श मंडल में ई पी डब्लू पत्रिका के संपादक गोपाल गुरु प्रसिद्ध शिक्षाविद कृष्ण कुमार, संस्कृत के विद्वान राधा वल्लभ त्रिपाठी, मशहूर स्त्री विमर्शकार उमा चक्रवर्ती और हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार अखिलेश हैं।

समारोह में वक्ताओं ने हिंदी और भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा को अपनाने और शोध कार्यों को बढ़ावा देने की बात कही। वक्ताओं का यह भी कहना था कि जिन देशों ने अपनी मातृभाषा में शिक्षा को अपनाया है उनका विकास काफी हुआ है यहां तक कि दक्षिण एशिया के कई देशों ने अपनी मातृभाषा में पठन पाठन पर जोर दिया लेकिन भारत में अंग्रेजी का बोलबाला अधिक है इससे देश की प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिला।

इंडिया न्यूज स्ट्रीम

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