नई दिल्ली। करीब 18 वर्ष पूर्व राजस्थान विधानसभा से सर्वसम्मति से पारित संकल्प पत्र प्रस्ताव के बावजूद मातृभाषा राजस्थानी की भारी उपेक्षा हो रही है और नहीं तों भारत सरकार इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर मान्यता दे रहीं है और नहीं राजस्थान सरकार नई शिक्षा नीति के अनुसार राजस्थान में प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा में देने, राजस्थानी भाषा को द्वितीय राजभाषा का दर्जा देने तथा केन्द्र सरकार से इसे संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए गम्भीर दिख रही है।
राजस्थानी भाषा आंदोलन के अग्रणी और एकमात्र राजस्थानी पत्रिका ‘माणक’ के प्रधान संपादक पदम मेहता ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से भेंट कर उन्हें जनसंख्या के प्रमाणिक आंकड़ों के साथ एक पत्र सौंप कर बताया कि 18 वर्ष पूर्व विधानसभा से सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव के बावजूद मातृभाषा राजस्थानी की भारी उपेक्षा हो रही है जबकि सात करोड़ से अधिक आबादी वाले प्रदेश में इसके बोलने वालों की जनसंख्या दो तिहाई से अधिक है। साथ ही कई देशों में बसे प्रवासी राजस्थानियों की बोलचाल की भाषा भी राजस्थानी ही है।
उन्होंने मुख्यमंत्री गहलोत को इस बात से भी अवगत करवाया कि राजस्थान के 130 से अधिक विधायक इस बाबत आपको पत्र लिखकर मांग कर चुके हैं । उन्होंने कहा कि प्रदेश के लोगों की भावनाओं का सम्मान रखते हुए इस पर तत्काल वांछित कार्रवाई की जानी चाहिए। मुलाकात के दौरान माणक के प्रबंध संपादक दीपक मेहता भी मौजूद रहे । इस अवसर पर मुख्यमंत्री को ‘माणक’ पत्रिका के ताजा अंकों की प्रतियां भेंट की, जिसमें स्वतंत्रता आंदोलन में प्रवासियों के विशेष योगदान को रेखांकित किया गया है।
*शिक्षा मंत्री श्री बी.डी. कल्ला से भेंट*
मेहता ने राज्य के शिक्षा मंत्री बी.डी. कल्ला से भी भेंट कर पत्र की प्रतिलिपि सौंपते हुए वांछित कार्रवाई कराने का अनुरोध किया। ‘रीट’ में राजस्थानी भाषा को सम्मिलित करने तथा नई शिक्षा नीति के अनुसार प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने के लिए मेहता की ओर से राजस्थान उच्च न्यायालय में दायर याचिका भी लम्बित है ।
*राजस्थानी,भोजपुरी और भुतानी के को मान्यता देने के लिए तीन चार राज्यों के सांसदों के अभियान को भी निराशा ही हाथ लगी*
उल्लेखनीय है कि राजस्थानी को संविधानिक मान्यता दिलाने के लिए नई दिल्ली के जन्तर मंतर पर कुछ वर्षों पूर्व विशाल धरना प्रदर्शन भी हुआ था। प्रदेश के सभी 25 सांसदों ने भी कई बार इस माँग को संसद में उठाया है और प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सहित अन्य ने इस पर शीघ्र निर्णय का भरोसा भी दिया। बाद में भोजपुरी और भुतानी के साथ राजस्थानी को मान्यता देने के लिए तीन चार राज्यों के सांसदों ने भी अभियान छेड़ा लेकिन अभी भी सभी को निराशा ही हाथ लगी है।