गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं– …
इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात …
गुज़र भी जाएँ गें ऐ जां यह अज़ाब के दिनके बसे हुए हें तसव्वुर में अब गुलाब के दिन —मसूद हुसैन (अफ्नान खान की तरफ से )
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा —अहमद फ़राज़ ( गज़न्फ़र अली ख़ान की तरफ से )
जाए है जी नजात के ग़म मेंऐसी जन्नत गई जहन्नम में —मीर तक़ी मीर(आफनान खान की तरफ से)
बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरनातिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है —असरार-उल-हक़ मजाज़ (जैनब हुसैन की तरफ से)
ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में –फ़िराक़ गोरखपुरी ( इशरत अली की तरफ से )
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं –फ़िराक़ गोरखपुरी, (मोनी यामीन की तरफ से) ) (
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