देश में कई गांव ऐसे जहां लोग राखी नहीं मनाते

नई दिल्ली, 22 अगस्त। सावन की पूर्णिमा के दिन बहनें अपने भाईयों की कलाईयों में राखी बांधती हैं और भाई स्नेह पूर्वक बहनों को उपहार देते हैं लेकिन देश में कई ऐसे गांव और कस्बे हैं जहां सैकडों वर्षों से लोग राखी नहीं मनाते है। इसका कारण वे कड़वी यादें हैं जिनकी वजह से इन लोगों ने कई पीढ़ियों से राखी का त्योहार मनाना बंद कर दिया है।

राजस्थान के पाली में पालीवालों के लिए राखी काला दिवस

पश्चिम राजस्थान के पाली कस्बे में पालीवाल लोग रहते हैं। इस गांव के मारवाड़ी लोग अब देश के अलग-अलग भागों में जाकर बसे हुए हैं। लेकिन इस कस्बे के लोगों के साथ राखी की ऐसी कड़वी यादें जुड़ी है जिसकी वजह से यहां लोग राखी का त्योहार नहीं मनाते हैं। इनके लिए राखी काला दिवस है। इसकी वजह यह है कि इनके गांव पर 1230 ई. के आसपास राखी के दिन ही मोहम्मद गोरी का आक्रमण हुआ था। इस आक्रमण में गांव में बड़ी संख्या में लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस घटना के बाद से ही लोगों ने राखी मनाना बंद कर दिया और करीब 800 साल से यहां के लोग अब राखी नहीं मनाते हैं।

उत्तर प्रदेश का संभल इलाक़े के बेनीपुर चक गांव के लोग भी नहीं मनाते राखी

इसी प्रकार उत्तर प्रदेश का संभल जिला जिसके बारे में पुराणों में बताया गया है कि यहां भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा। इसी जिले के एक गांव बेनीपुर चक के साथ इतिहास की ऐसी ही कड़वीं यादें जुड़ी हुई है जिसकी वजह से यहां के लोग भी राखी बंधवाने से डरते हैं। यादवों के इस गांव में लोग राखी को एक ऐसा बंधन मानते हैं जिनके कारण मनुष्य को दर-बदर होना पड़ता है। गांव के लोगों का ऐसा सोचना एक तरह से जायज भी है क्योंकि कभी इस गांव के लोग राखी को बड़े ही उत्साह से मनाते थे लेकिन एक बहन ने ऐसा धोखा दिया जिससे अब ये राखी के बारे में सोचना तक पसंद नहीं करते हैं।बताते है कि इस गांव के लोग पहले कहीं और रहते थे और इनकी ठाकुरों से बड़ी अच्छी दोस्ती थी लेकिन ठाकुर इस दोस्ती के पीछे एक चाल रहे थे। इनकी मंशा यादवों के गांव की ज़मींदारी पाने की थी। एक बार जब राखी के अवसर पर ठाकुरों की बेटियां यादवों को राखी बांधने आईं तो पहले एक वचन मांग लिया कि वह जो मांगेंगी उन्हें यादव भाई देंगे। यादव भाइयों ने सोचा बहन मांगेगी तो क्या मांगेगी, हंसी-हंसी में उन्होंने वचन दे दिया। लेकिन जब बहनों ने गांव की जमींदारी मांग ली तो यादव भाईयों के पैरों तले की जमीन खिसक गई। वचन के पक्के इन भाईयों ने गांव की जमींदारी तो दे दी लेकिन गांव का त्याग कर दिया और फिर कभी राखी ना बंधवाने की कसम खाई।

मुरादनगर का सुठारी गांव की भी कड़वी यादें

उत्तर प्रदेश के मुरादनगर का एक गांव है सुठारी। इस गांव के साथ अतीत की कड़वी यादें जुड़ी हुई हैं, इसी को याद करके सदियों से लोग राखी का त्योहार नहीं मनाते हैं। गांव के लोग अपने को पृथ्वीराज चौहान का वंशज मानते हैं। ऐसी कथा है कि मोहम्मद गोरी को पता चला कि इस गांव में पृथ्वीराज के वंशज रहते हैं। गोरी ने अपनी सेना के साथ गांव पर आक्रमण कर दिया और लोगों को हाथी के पैरों तले कुचलवा दिया। संयोग से इस समय सोहरण सिंह की पत्नी राजवती जो उन दिनों गर्भवती थीं अपने मायके गई थी। जब वह लौटकर आई तो उन्हें सब हाल पता चला। राजवती ने दो बेटों को जन्म दिया जो लाखी और चुपड़ा के नाम से जाने गये। इन्होंने फिर से इस गांव को बसाया। लेकिन राखी के दिन हुई इस घटना को आज भी लोग याद करके उदास होते हैं और त्योहार नहीं मनाते हैं।

उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले का जगतपुरवा में भी रक्षाबंधन नहीं

उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले भीखमपुर जगतपुरवा गांव में रक्षाबंधन का त्योहार मनाना तो बहुत दूर की बात है यहां इस पर्व का जिक्र करना तक पसंद नहीं करते। दरअसल इस गांव में करीब 65 साल पहले एक युवक की राखी के दिन मौत हो गई थी। उसके बाद से लोगों ने राखी मनाना बंद कर दिया था। बाद में युवाओं के उत्साह से इस त्योहार को शुरू किया गया लेकिन फिर राखी मनाने पर अनहोनी हो गई। लोगों के मन में तब से यह बात बैठ गई है कि राखी मनाने से अपशगुन होगा इशलिए लोगों ने राखी मनना ही बंद कर दिया।

एक कड़वी याद के कारण लोग नहीं मनाते राखी

उत्तर प्रदेश के ही एक गांव धौलाना के साठा क्षेत्र में लोग राखी का त्योहार नहीं मनाते हैं। इसकी वजह भी दुखद है। इस गांव के लोग खुद को महाराणा प्रताप से वंशज मानते हैं। राखी के दिन महाराणा प्रताप के चेतक घोड़े की मृत्यु हुई और बड़ी संख्या में लोग युद्ध में मारे गए थे। इसलिए यहां राखी को लोग मातम दिवस के रूप में मानते हैं।

कर्णावती ने सेठ पद्मशाह के हाथों मुग़ल सम्राट हुमायूँ को राखी भेजी थी

रक्षाबंधन पर चित्तौड़गढ़ की रानी कर्णावती का जिक्र ना हो, ये संभव नहीं. कर्णावती ऐसी महान राजपूत रानी थी, जिन्‍होंने जौहर में जान दे दी, पर घुटने नहीं टेके. दरअसल, चित्तौड़ के शासक महाराणा विक्रमादित्य को कमजोर समझकर गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने राज्‍य पर आक्रमण कर दिया था।इस मुसीबत से निपटने के लिए रानी कर्णावती ने सेठ पद्मशाह के हाथों मुग़ल सम्राट हुमायूँ को राखी भेजी थी।

राखी के साथ कर्णावती ने एक संदेश भी भेजा था।उन्‍होंने सहायता का अनुरोध करते कहा था कि मैं आपको भाई मानकर ये राखी भेज रही हूं। दरअसल, उन दिनों हुमायूं का पड़ाव ग्वालियर में था, इसलिए उसके पास राखी देर से पहुंची थी।जब तक वे फौज लेकर चित्तौड़ पहुंचे थे, वहां बहादुरशाह की जीत और रानी कर्णावती का जौहर हो चुका था। राखी मिलते ही हुमायूं ने वहां से आगरा और दिल्ली संदेश भेजा और फौजें जुटाने का आदेश दिया,लेकिन जब तक वह फौजों को लेकर चित्तौड़ पहुंचा, देर हो चुकी थी. कर्णावती महल की सभी स्त्रियों के साथ जौहर कर चुकी थीं।

मार्च 1534 में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चितौड़ के नाराज सामंतो के कहने पर चितौड़ पर हमला किया था।राणा सांगा की पत्नी राजमाता कर्णावती को जब ये पता चला तो वे चिंतित हो गईं। उन्‍हें पता था कि उनके राज्‍य की रक्षा केवल हूमायूं कर सकता है,इसलिए मेवाड़ की लाज बचाने के लिए उन्होने मुगल साम्राट हुमायूं को राखी भेजी और सहायाता मांगी।हुमायूं ने राखी का मान रखा। राखी मिलते ही उसने ढेरों उपहार भेजें और आश्वस्त किया कि वह सहायता के लिए आएगा लेकिन जब तक हुमायूं वहाँ पहुँचा बहुत देर हाई चुकी थी।

इस बार राखी पर भद्रा का कोई साया नहीं

उल्लेखनीय है कि भारत संस्कृति व्रत, उपवास और महोत्सव का देश है। यहाँ प्रमुख त्योहारों में रक्षाबंधन का स्थान सर्वोपरि है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष रक्षाबंधन का पवित्र पर्व 22 अगस्त रविवार को है। श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि 21 अगस्त शाम से शुरू होगी और 22 अगस्त को सूर्योदय पर पूर्णिमा रहेगी। इसलिए 22 अगस्त को ही रक्षाबंधन का त्यौहार धूमधाम के साथ मनाया जाएगा। इस बार राखी पर भद्रा का कोई साया नहीं रहेगा, इसीलिए राखी बांधने का शुभ समय: सुबह 05:50 बजे से शाम 06:03 बजे तक रहेगा।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सर्वप्रथम माता लक्ष्मी ने बलि को राखी बांधी थी। किवंदती है कि राजा बलि ने स्वर्ग पर अधिकार जमाने की कोशिश की थी। बलि की तपस्या और यज्ञ से घबराए देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णुजी वामन ब्राम्हण का रूप रखकर राजा बलि से भिक्षा लेने के लिए पहुंचे। गुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी बलि ने अपने संकल्प को नहीं छोड़ा और तीन पग भूमि दान कर दी।वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। बलि ने भक्ति के बल पर विष्णुजी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। इससे लक्ष्मीजी चिंतित हो गई। नारद के कहने पर लक्ष्मीजी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बनाया और संकल्प में बलि से विष्णुजी को अपने साथ ले आईं। उसी समय से राखी बांधने का क्रम शुरु हुआ, जो आज भी अनवरत जारी है। यह त्यौहार मुख्यतया भाई-बहनों को समर्पित पर्व हैं, लेकिन, अलग-अलग स्थानों एवं लोक परम्परा के अनुसार लोग अलग-अलग रूप में रक्षाबंधन का पर्व मानते हैं। वैसे इस पर्व का संबंध रक्षा से है जो भी आपकी रक्षा करने वाला है उसके प्रति आभार दर्शाने के लिए आप उसे रक्षासूत्र बांध सकते हैं। राखी या रक्षाबंधन भाई और बहन के रिश्ते की पहचान माना जाता है। राखी का धागा बांध कर बहन अपने भाई से अपनी रक्षा का प्रण लेती है। इसके अतिरिक्त रक्षासूत्र बांधकर ही इंद्राणी ने इंद्र को विजय दिलाई थी।

रक्षाबंधन को लेकर दूसरी यह भी मान्यता है कि जब देवों और दानवों के बीच संग्राम हुआ और दानव विजय की ओर अग्रसर थे, तो यह देख कर राजा इंद्र बेहद परेशान थे। इंद्र को परेशान देखकर उनकी इंद्राणी ने भगवान की अराधना की। उनकी पूजा से प्रसन्न हो भगवान ने उन्हें मंत्रयुक्त धागा दिया। इस धागे को इंद्राणी ने इंद्र की कलाई पर बांध दिया और इंद्र को विजय मिली। इस धागे को रक्षासूत्र का नाम दिया गया और बाद में यहीं रक्षा सूत्र रक्षाबंधन हो गया।
महाभारत की कथा के अनुसार सबसे पहली राखी द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण को बांधी थी। भगवान श्रीकृष्ण ने रक्षा सूत्र के विषय में युधिष्ठिर से कहा था कि रक्षाबंधन का त्यौहार अपनी सेना के साथ मनाओ। इससे पाण्डवों एवं उनकी सेना की रक्षा होगी। श्रीकृष्ण ने यह भी कहा था कि रक्षा सूत्र में अद्भुत शक्ति होती है। इसके अलावा भी शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दी थी। यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। भगवान ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था। उसी समय से राखी बांधने का क्रम शुरु हुआ।

इस वर्ष रक्षाबंधन पर दो शुभ योग

इस वर्ष रक्षाबंधन पर दो शुभ योग बन रहे हैं। पहला है शोभन योग, जो 22 अगस्त को सुबह 10 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। शोभन योग को मांगलिक और शुभ कार्यों के लिए श्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है। ऐसे में सुबह 10:34 बजे तक राखी बंधवा लेना उत्तम रहेगा। इस समय काल में आप यात्रा करके बहन के यहां भी जाते हैं तो यह शुभकारी रहेगा। रक्षाबंधन पर दूसरा योग धनिष्ठा नक्षत्र का बन रहा है। रक्षा बंधन के दिन धनिष्ठा नक्षत्र शाम को 07 बजकर 40 मिनट तक है। धनिष्ठा का स्वमी ग्रह मंगल है। धनिष्ठा नक्षत्र में जन्मे लोगों का अपने भाई और बहन से विशेष प्रेम होता है। क्योंकि मंगल भाई बहन का का कारक होता है। इस आधार पर रक्षाबंधन का धनिष्ठा नक्षत्र में होना, भाई और बहन के आपसी प्रेम को बढ़ाने वाला होगा।

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