बिहार के कवि सुधांशु फिरदौस को भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार

नई दिल्ली :बिहार के सुधांशु फ़िरदौस को वर्ष 2021 का प्रतिष्ठित भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है।

२ जनवरी, 1985 को मुजफ्फरपुर में जन्मे श्री फिरदौस को यह सम्मान उनके पहले कविता संग्रह ‘अधूरे स्वाँगों के दरमियान’ के लिए दिया जाएगा। वह जामिया मिल्लिया इस्लामिया में गणित में पीएचडी के छात्र रहे हैं। इन दिनों बिहार के एक कॉलेज में गणित पढ़ाते हैं।

इस पुरस्कार की स्थापना 1979 में हुई थी और पहला पुरस्कार बिहार के ही अरुणकमल को दिया गया था।

निर्णायक समिति में सर्व श्री अशोक वाजपेयी, अरुण कमल, पुरुषोत्तम अग्रवाल, अनामिका और अरुण देव हैं। इस बार के निर्णायक अरुण देव थे।

पुरस्कार में 21 हज़ार रुपये की राशि और प्रशस्ति पत्र शामिल है।

निर्णायक ने अपनी सम्मति में लिखा है ,”किसी युवा के पहले कविता संग्रह का प्रकाशन जहाँ ख़ुद उसके लिए ख़ास अनुभव होता है वहीं कविता की दुनिया में उसका वह पता बनता है, कवि के रूप में उसके फलने-फूलने की जड़े यहीं दबी-ढकी रहती हैं.”

विस्मित करते हुए सुधांशु फ़िरदौस अपने पहले संग्रह से ही भाषा की शाइस्तगी और जनपदीय शब्दों के रचाव में कविता को संभव करने की शिल्पगत कुशलता के साथ सामने आते हैं. देशज जीवन की धूसर मिट्टी में उनका कवि प्रकृति की समृद्धि को देखता है, जीवन को देखता है, रोज-रोज की चर्या को देखता है. इस बसेरे में नाना जीव-जन्तु, वनस्पतियाँ, नदी, ऋतुएं और रंग बिखरे हुए हैं. अधिकतर कविताएँ अपने अभीष्ट को देखते हुए उमगती हैं.”

” सुधांशु दृश्य के कवि हैं. कहीं पीपल पर जुगनुओं द्वारा बुन दी गयी चादर है तो किसी कविता में अभी-अभी डूबे सूरज की लालिमा बादलों में उलझी रह जाती है.

शायद ही कोई कवि हो जिसने प्रेम के रंगों से अपनी कविता न रंगी हो. सुधांशु भी रंगते हैं. कहीं चटख पर अक्सर उदास. टूटना और बिखरना और यह सोचना कि ‘जब सारे तारे चले जाएंगे और न जाते-जाते रात भी चली जाएगी तो चाँद क्या करेगा’. प्रेम में भी वह संयत हैं. वाचालता वैसे भी सच्चे प्रेमी को सांत्वना नहीं देती न ही शोभा.

कवि अपने पूर्वजों को पहचानता है, इस प्रगाढ़ता ने ही सुधांशु को संयमित किया है. मीर और कालिदास तो सीधे-सीधे आते हैं- कुमारसम्भवम्, ऋतुसंहारम्, और मेघदूत से कविताएँ नि:सृत हुई हैं. हिंदी कविता अपनी समृद्ध अनेकता के साथ यहाँ उपस्थित है- ‘खिली है शरद की स्वर्ण-सी धूप’ जैसे. लम्बी कविताएँ ख़ासकर- ‘कालिदास का अपूर्ण कथागीत’, और ‘मेघदूत विषाद’ अपनी सघनता और भारतीय काव्य-परम्परा के अक्षय औदात्त के रूप में देर तक टिकने वाली कविताएँ हैं. कवि कविता को ओझल नहीं होने देता, वैचारिक और राजनीतिक मंतव्य की कविताओं में भी. ”

यहां प्रस्तुत है उनकी कविता “तानाशाह”

‘वह पहले चूहा था
फिर बिलार हुआ
फिर देखते-देखते शेर बन बैठा
शहद चाटते-चाटते
वह खून चाटने लगा है
अरे भाई जागो,
तुम्हारे ही वरदान से
यह हुआ है.’

इंडिया न्यूज स्ट्रीम

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