आधुनिक युग की मीरा महादेवी वर्मा हर साल राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त को राखी बांधने है, इलाहाबाद से हर साल उनके गांव जाती थी और राष्ट्रकवि महादेवी वर्मा को दीदी कह कर पुकारते थे यद्यपि वह उनसे छोटी थीं।
महादेवी जी जब दद्दा यानी मैथिली शरण गुप्त को राखी बांधने के लिए ट्रेन से इलाहाबाद से झांसी पहुंचती थी तो राष्ट्रकवि के छोटे भाई एवं प्रसिद्ध गांधीवादी लेखक सियारामशरण गुप्त उन्हें स्टेशन पर लेने आते थे और फिर दोनों घर पहुंचते थे जहां महादेवी जी दद्दा को राखी बांधी थीं।
वह जमाना ही अलग था, वह दौर ही अलग था। वे लोग भी अलग थे। आज़ादी की लड़ाई का समय था।उन दिनों लोग पलंगसोफे या चौकी पर नहीं बैठते थे बल्कि खाट और पीढ़ा पर बैठते थे।
हाल ही में मैथिलीशरण गुप्त की आयी जीवनी की लेखिका रजनी गुप्ता बताया कि दद्दा को महादेवी जी पीढ़ा पर ही बैठकर उन्हें टीका लगाती थी और फिर उनकी कलाई में राखी बांध ती थी। जब महादेव जी विदा होती थी तो उनकी कायदे से पारम्परिक तरीके से विदाई होती थी और उन्हें साड़ी शाल तथा पैसे आदि देकर उन्हें विदा किया जाता था। सियारामशरण गुप्त जी महादेव जी को छोड़ने स्टेशन जाते थे हालांकि महादेवी जी कहती थीं हर साल उन्हें लेने के लिए इस तरह स्टेशन पर आने की क्या जरूरत पर महादेवी के प्रति दद्दा का सम्मान भाव अगाध था। इससे महादेवी और मैथिली गुप्त का भाई-बहन के रूप में प्यार झलकता है।
महादेव जी ने दद्दापर अपने एक संस्मरण में लिखा है — आज मुझे याद आता है और कभी आंखें भर आती हैं .लिखने में कितनी सादगी थी उनकी ।छप्पर का कमरा उसमें एक चबूतरा चटाई पर वे बैठते थे और दीवार से टिकी कई स्लैटें रखीं थी।
जब मैंने पहले देखा तो मैंने कहा — दद्दा क्या बच्चे पढ़ने आते हैं ?
दद्दा ने कहा- अरे दीदी -तुम क्या कहती हो बच्चे नहीं पढते। हम इस पर लिखते हैं ।बस देखते हैं और स्लेट पर जो मन में आता है मिटाने को मिटा देते हैं। जब भर जाती है दोनों तरफ से, तो बड़े भैया अजमेरी जी या सियाराम जी से कहते हैं लिख डालो तो कितना कागज बच ता है।
मैंने कहा– कागज बचाने का ऐसा ढंग हमने कभी नहीं देखा .हम लोग कीमती पेन रखते हैं. कीमती कागज चाहते हैं और न जाने क्या क्या चाहते हैं और लिखते कुछ नहीं .हमारे दिमाग में कुछ नहीं लिखने को है लेकिन साज-सज्जा तो हम चाहते हैं। दद्दा की इतनी सादगी देखकर महादेव जी दंग रह गयी थी।
मैथिलीशरण गुप्त कभी चारपाई पर बैठते हैं तो कभी पीढ़े पर बैठकर उनसे राखी बंधवाते।
मैंथिलीशरण गुप्त और महादेवी का यह रिश्ता इतना आत्मीय था कि दद्दा जब आजादी के बाद राज्यसभा के मनोनीत सदस्य नहीं बनना चाहते थे तो महादेवी की मदद ली गयी।
नेहरू जी ने दद्दा को 1952 में राज्यसभा में मनोनीत सदस्य बनाना का प्रस्ताव भेजा तो दद्दा ने पहले तो मना कर दिया। जब नेहरू जी को यह बात पता चली कि उन्होंने उन्हें मनाने के लिए महादेवी वर्मा को संदेश भेजा। तब महादेवी वर्मा ने दद्दा को उसके लिए मनाया और राजी किया तब जाकर दद्दा राज सभा के सदस्य बने। वह हिंदी के पहले लेखक थे जो राज सभा में मनोनीत सदस्य बने थे।
महादेवी वर्मा जब इलाहाबाद थी तो वे आनंदभावन जाकर नेहरूजी को भीराखी बंधती थी। वह पन्त और निराला जो भी राखी बांधती थी।