यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने के लिए बातचीत और कूटनीति ही एकमात्र रास्ता : भारत

संयुक्त राष्ट्र । भारत ने यूक्रेन में चल रहे संघर्ष को सुलझाने के लिए बातचीत और कूटनीति की आवश्यकता पर जोर दिया है। भारत ने ईंधन की कीमतों सहित युद्ध के परिणामों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि दक्षिण के देशों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी. हरीश ने यूक्रेन युद्ध की समाप्ति के प्रयासों के प्रति समर्थन व्यक्त किया।

हरीश ने गुरुवार को महासभा को बताया, “हमने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच अलास्का में शिखर बैठक का समर्थन किया। हम अलास्का शिखर सम्मेलन में हुई प्रगति की सराहना करते हैं।”

अमेरिकी राष्ट्रपति की शांति पहल पर ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 15 अगस्त को अलास्का में मिले।

हरीश ने कहा, “भारत शांति की दिशा में हाल के सकारात्मक घटनाक्रमों का स्वागत करता है।”

उन्होंने कहा कि भारत संघर्ष को शीघ्र समाप्त करने के लिए राजनयिक प्रयासों का समर्थन करने के लिए तैयार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की, रूस के राष्ट्रपति पुतिन और यूरोपीय नेताओं के साथ बातचीत शांति की संभावनाओं को बढ़ावा देती है।

दरअसल, पुतिन से मिलने से पहले जेलेंस्की ने शनिवार को प्रधानमंत्री मोदी से बात की थी। यूक्रेनी नेता ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा था कि उन्होंने पीएम मोदी को बताया कि वह रूसी नेता से मिलने के लिए तैयार हैं। जेलेंस्की और पुतिन के बीच मुलाकात ट्रंप की शांति योजना का अगला चरण है।

यूक्रेन पर असेंबली के दौरान हुई डिबेट में हरीश ने कहा, “स्थायी शांति के लिए सभी पक्षों की पूर्ण भागीदारी और प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण है।”

उन्होंने कहा, “हमने वाशिंगटन में यूक्रेनी राष्ट्रपति और यूरोपीय नेताओं के साथ बातचीत करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा किए गए कूटनीतिक प्रयासों पर भी ध्यान दिया।”

पुतिन से मुलाकात के तीन दिन बाद ट्रंप ने जेलेंस्की और यूरोपीय नेताओं को शिखर सम्मेलन के बारे में जानकारी दी, जिनमें फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर, जर्मनी के चांसलर फ्रेडरिक मर्ज, इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी, यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन और नाटो महासचिव मार्क रूट शामिल थे।

उस बैठक में यूरोपीय नेताओं ने संभलकर ट्रंप के प्रयासों का समर्थन किया और शांति के बाद के परिदृश्य का खाका तैयार किया।

हरीश ने कहा, “हमारा मानना ​​है कि ये सभी कूटनीतिक प्रयास यूक्रेन में चल रहे संघर्ष को समाप्त करने और स्थायी शांति की संभावनाओं को खोलने का वादा करते हैं। भारत ने लगातार इस बात की वकालत की है कि यूक्रेन में चल रहे संघर्ष को समाप्त करने के लिए बातचीत और कूटनीति ही एकमात्र रास्ता है, चाहे ऐसा रास्ता कितना भी मुश्किल क्यों न लगे।”

हरीश ने युद्ध से होने वाले नुकसान और परिणामों, जिनमें ईंधन की बढ़ती कीमतें भी शामिल हैं, के बारे में बात की।

उन्होंने कहा कि दक्षिण के देशों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया है और यह जरूरी है कि उनकी आवाज सुनी जाए और उनकी जायज चिंताओं का उचित समाधान किया जाए।”

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी. हरीश ने कहा, “यूक्रेन संघर्ष के प्रति भारत का नजरिया जन केंद्रित बना हुआ है। हम यूक्रेन को मानवीय सहायता और वैश्विक दक्षिण में हमारे मित्रों और साझेदारों को आर्थिक सहायता प्रदान कर रहे हैं, जिनमें आर्थिक संकट से जूझ रहे हमारे कुछ पड़ोसी देश भी शामिल हैं।”

कार्यवाहक अमेरिकी स्थायी प्रतिनिधि डोरोथी शी ने कहा, “राष्ट्रपति ट्रंप के नेतृत्व में संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस युद्ध को समाप्त करने के लिए असाधारण प्रयास किए हैं। अगला कदम रूस और यूक्रेन के नेताओं का द्विपक्षीय रूप से मिलना और अंततः लड़ाई को समाप्त करने पर सहमत होना है।”

हालांकि, उन्होंने रूस द्वारा लगातार हमले जारी रखने के कारण शांति प्रयासों पर संदेह भी व्यक्त किया।

डोरोथी शी ने कहा कि ट्रंप-पुतिन शिखर सम्मेलन के बाद रूस ने युद्ध शुरू होने के बाद से यूक्रेन पर दूसरा सबसे बड़ा हवाई हमला किया। लगातार हमले रूस की शांति की इच्छा की गंभीरता पर संदेह पैदा करते हैं। नागरिक क्षेत्रों पर हमले तुरंत बंद होने चाहिए।

यूक्रेन की उप विदेश मंत्री मारियाना बेत्सा ने शांति समझौते में क्षेत्र छोड़ने की संभावना से इनकार किया, जैसा कि ट्रंप ने सुझाव दिया था।

उन्होंने कहा कि क्रीमिया और रूस के कब्जे वाले सभी क्षेत्र, यूक्रेन के संविधान और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत संप्रभु क्षेत्र बने रहेंगे।

उन्होंने कहा, “ये वास्तविक शांति के शुरुआती बिंदु हैं। ऐसी शांति, जो विश्वसनीय सुरक्षा गारंटी पर आधारित होनी चाहिए।”

रूस के स्थायी प्रतिनिधि वसीली नेबेंज्या भी इस बात पर अड़े हैं कि वे अपने कब्जे वाले क्षेत्रों पर कब्जा बनाए रखेंगे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ये क्षेत्र ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से रूस के थे और उन्हें कब्जे वाले क्षेत्र कहना ‘गलत और राजनीति से प्रेरित निर्माण’ है।

–आईएएनएस

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