उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में यूं तो साफ तौर पर मुकाबला योगी बनाम अखिलेश या यूं कहें बीजेपी बनाम सपा-रालोद गठबंधन के बीच होता दिख रहा है। लेकिन इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के लिए लगातार कांग्रेस को मज़बूत दिखाने की कोशिश हो रही है. बार-बर कांग्रेस की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी को लेकर बेमतलब की अटकलें लगाई जा रही हैं। कभी उनसे पूछा जा रहा है कि वो विधानसभा चुनाव लड़ेंगी या नहीं और कभी उनसे पूछा जा रहा है कि कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा? आख़िर इन बेमतलब की अटकलों का मक़सद क्या है?
खुद को ही चेहरा बताकर क्यों पलटी प्रियंका?
शुक्रवार को तो हद ही हो गई। पहले प्रियंका गांधी ने खुद को ही मुख्यमंत्री का चेहरा बता दिया और फिर कुछ ही घंटों में इससे पलट गईं। दरअसल कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रियंका का गांधी से पूछा गया कि चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन है तो उन्होंने कुछ ऐसा जवाब दिया जिससे लगा कि वह ख़ुद को ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा बता रही हैं। मीडिया में शोर मच गया। बाद में एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने सफाई दी कि वो यूपी में मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार नहीं हैं। इस इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वह यह तो मान सकती हैं यूपी से चुनाव लड़ सकती हैं लेकिन वो मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार नहीं हैं।
चुनाव लड़ने पर क्यों बना रखा है संशय?
इस सफाई के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर उठे उनकी दावेदारी की अटकलों पर विराम लग गया लेकिन चुनाव लड़ने पर संशय अभी भी बना हुआ है। यब संशय प्रियंका गंधी ने खुद बना कर रखा हुआ है। ये पता नहीं चल पा रही ह कि वो जानबूझ कर ऐसा कर रहीं हं या फिर उनजाने में उनसे ऐसा हो रही है? जबकि सच्चाई यह है कि प्रियंका गांधी चाह कर भी उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ सकतीं। खुद प्रियंका गांधी ने भी विवाद के एक सिर खुला छोड़ दिया है। जब भी वो मीडिया के सामने आएंगी तो उनसे यह सवाल जरूर पूछा जाएगा कि क्या वह विधानसभा का चुनाव लड़ रही हैं? अगर हां, तो फिर किस सीट से? प्रियंका और कांग्रेस प्रवक्ताओं को बार-बार इस सवाल का जवाब देना होगा।
प्रियंका क्यों नहीं लड़ सकती विधानसभा चुनाव
प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ सकतीं। इसकी मोटे तौर पर दो वजहें हैं। पहली और सबसे ठोस वजह है कि वह उत्तर प्रदेश की नागरिक नहीं हैं। लिहाज़ा उत्तर प्रदेश में कहीं उनका वोट नहीं हैं। कोई व्यक्ति किसी भी राज्य में विधानसभा का चुनाव तभी लड़ सकता है जब वो उस राज्य का निवासी हो और कम से कम चुनाव से 6 महीने पहले उसने प्रदेश में अपना वोट बनवा लिया हो। एसपीजी सुरक्षा वापस लिए जाने तक प्रियंका गांधी दिल्ली के लोधी स्टेट में रहती थीं। वहीं उनका वोट था। हर चुनाव में वह लोधी एस्टेट के ही एक मतदान केंद्र पर अपना वोट डालती रही हैं। एसपीजी सुरक्षा वापस लेने के बाद जब मोदी सरकार ने उनका लोदी स्टेट वाला बंगला खाली कराया तो प्रियंका के लखनऊ में शिफ्ट होने की चर्चा चली थी लेकिन वो न लखनऊ शिफ्ट हुईं और न ही कहीं वोट बनवाया। वो फिलहाल गुड़गांव में रहती हैं।
प्रियंका यूपी की प्रभारी हैं, प्रदेश कांग्रेस का हिस्सा नहीं
प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव इसलिए भी नहीं लड़ सकतीं कि वो उत्तर प्रदेश कांग्रेस का हिस्सा नहीं हैं बल्कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी महासचिव हैं। कांग्रेस में परंपरा है कि किसी भी महासचिव या स्वतंत्र प्रभारी को को उस राज्य की जिम्मेदारी नहीं दी जाती नहीं जिस राज्य से वह खुद आता हो। कांग्रेस में किसी राज्य का प्रभारी महासचिव उस राज्य से विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ सकता तो प्रियंका गांधी भला कैसे लड़ सकती हैं। सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि प्रियंका गांधी खुद इस बात का खंडन क्यों नहीं कर रही हैं। टीवी चैनलो के एंकरो के सवालों पर कांग्रेस के प्रवक्ता हास्यास्पद गोलमोल जवाब देकर अपनी और पार्टी दोनों की ही फजीहत करा रहे हैं। क्या कांग्रेस में एक भी प्रवक्ता नहीं है जिसे विधानसभा का चुनाव लड़ने की बुनियादी शर्त और कांग्रेस की परंपरा की जानकारी हो।
क्या बीजेपी के जाल फंस गईं हैं प्रियंका?
दरअसल बीजेपी की ट्रोल आर्मी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को बदनाम करके इनकी छवि धूमिल करने में जुटी हुई है। जहां राहुल गांधी की छवि पहले ही पप्पू की बना दी गई है वहीं बीजेपी के ट्रोल्स लगातार प्रियंका गांधी पर हमलावर हैं। शायद यही वजह है कि बार-बार प्रियंका गांधी के सामने विधानसभा चुनाव लड़ने की चुनौती पेश की जा रही है। जाने अनजाने में प्रियंका भी बीजेपी चहेते पत्रकारों केस ज़रिए फेंके जाने वाले इसके जाल में फंस जाती हैं। इससे पहले 2019 में भी लोकसभा चुनाव के दौरान ऐसा ही हुआ था। प्रियंका गांधी से बार-बार सवाल पूछा जाता था कि वो लोकसभा का चुनाव लड़ेंगी या नहीं। मीडिया का एक बड़ा तबका प्रियंका को मोदी के खिलाफ़ वाराणसी से चुनाव लड़ने की अटकलों को लगातार हवा दे रहा था। तब भी प्रियंका के लोकसभा चुनाव लड़ने पर लगातार इसी तरह संशय बना हुआ था जैसा अब बना हुआ है।
2019 के लोकसभा चुनाव में भी था भ्रम
क़ायदे से तब प्रियंका गांधी को साफ तौर पर यह जवाब देना चाहिए था कि प्रभारी महासचिव होने के नाते वह प्रदेश में चुनाव नहीं लड़ सकतीं। उनकी जिम्मेदारी प्रदेश में चुनाव लड़ाने की है न कि खुद चुनाव लड़ने की। उस वक्त भी प्रियंका गांधी ने दो टूक जवाब देकर सवाल पूछने वालों की बोलती बंद नहीं की थी। बल्कि अपने चुनाव लड़ने के बारे में फैसला पार्टी और तब के कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की इच्छा पर छोड़ने की बात कही थी। एक कार्यकर्ता सम्मेलन में उन्होंने खुद कार्यकर्ताओं से पूछा था कि क्या मैं मोदी के खिलाफ बनारस से चुनाव लड़ लूं? पार्टी का एक तबका भी प्रियंका गांधी को मोदी के खिलाफ़ बनारस से चुनाव लड़ाने हक़ में था। ये दुविधा लगातार बनी रही थी। राहुल गांधी अपन परंपरागत सीट अमेठी से चुनाव हार गए थे। उन्होंने हार की जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी प्रियंका गांधी वही गलती दोहरा रहीं हैं जो उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में की थी। विधानसभा चुनाव लड़ने के सवाल पर टूक मना करने के बजाय वह इस पर भ्रम की स्थिति बनाए हुए हैं। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के कई नेता और प्रवक्ता कहते हैं कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी गांधी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है। लिहाज़ा वो विधानसभा का चुनाव भी लड़ेंगी। वो चुनाव कहां से लड़ेंगी इस पर आख़िरी फैसला कांग्रेस आलाकमान करेगा। लेकिन इस सवाल का उनके पास कोई जवाब नहीं है कि प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में कहां की निवासी हैं और उनका वोट कहां पर है। सवाल है कि अगर प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की निवासी ही नहीं है तो फिर वह चुनाव विधानसभा का चुनाव भला कैसे रह सकती हैं? यह सवाल और भी अहम है कि आख़िर कांग्रेस और खुजद प्रियंका इस सवाल पर भ्रम की स्थिति क्यों बनाए रखना चाहती हैं?