यूपी चुनावः नहीं बनी जदयू-भाजपा में बात

फ़ज़ल इमाम मल्लिक

अब यह तय हो गया है कि यूपी में जदयू विधानसभा चुनाव लड़ेगा. हालांकि इसे लेकर अभी भी कई सवाल बिहार में जदयू नेता एक-दूसरे से पूछ रहे हैं. उन सवालों के केंद्र में भाजपा-जदयू के रिश्ते भी हैं और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह की नाकामी भी. हर किसी के अपने सवाल और अपने आकलन. यूपी विधानसभा चुनाव की तारीखों के एलान के बाद से ही यह कयास लग गया था कि भाजपा शायद ही जदयू को कुछ सीटें दे. यह सही है कि जदयू ने यूपी में चुनाव लड़ने का एलान पिछले साल राष्ट्रीय परिषद की बैठक में किया था. बैठक में ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने पार्टी के साथी और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह से दो टूक शब्दों में कहा था कि वे जल्द भाजपा से बात कर यूपी में गठबंधन को अंतिम रूप दें. ललन सिंह की साफगोई के मतलब तब भी निकाले गए थे और अब जबकि यूपी में भाजपा-जदयू गठबंधन नहीं हो पाया है तो फिर से मतलब निकाले जा रहे हैं. जदयू ने भाजपा को 30 सीटों की सूची सौंपी थी, जहां से वह चुनाव लड़ना चाहती थी. उसे उम्मीद थी कि दस से पंद्रह सीटों पर बात बन जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. भाजपा ने अनुप्रिया पटेल के अपना दल को ज्यादा सीटें देकर जदयू की राह को मुश्किल भरा बना डाला. कहा यह भी जा रहा है कि संजय निषाद और अनुप्रिया पटेल दोनों ही जदयू के यूपी में भाजपा के साथ गलबहैयां करते देखना नहीं चाहते थे. लेकिन गठबंधन न होने की वजह से आरसीपी सिंह के पार्टी में अब और अलग-थलग पड़ सकते हैं. क्योंकि जदयू गठबंधन न होने का ठीकरा उन पर ही फोड़ रहा है.

माना जारहा है कि भाजपा उसे तीन-चार सीटों से ज्यादा देने के मूड में नहीं थी. यह तादाद पांच तक पहुंच सकती थी. लेकिन जदयू इसके लिए तैयार नहीं हुआ. दिल्ली में जदयू की बैठक हुई. ललन सिंह और आरसीपी सिंह के अलावा यूपी के प्रभारी और प्रधान महासचिव केसी त्यागी इस बैठक में थे. बैठक के बाद आरसीपी सिंह ने भरोसा जताया था कि गठबंधन हो जाएगा लेकिन लनल सिंह बहुत आश्वस्त नहीं दिखे थे. उन्होंने साफ कहा था कि जल्द समझौता नहीं हुआ तो हम अकेले चुनाव लड़ेंगे. हमने 51 उम्मीदवारों के नाम तय कर लिया है और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को अधिकृत कर दिया है कि वे दो-तीन दिन इंतजार करने के बाद उम्मीदवारों की सूची जारी कर दें. जदयू ने ऐसा किया भी. जदयू यूपी में 51 सीटों पर चुनाव लड़ेगा.

इन दो बयानों को सियासी नजरिए से देखा गया और इसे जदयू में खेमेबंदी से भी जोड़ा गया. माना जा रहा है कि जदयू में दबदबे को लेकर शह-मात का खेल चल रहा है. वैसे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के बयान को आरसीपी समझ जाते तो कई बातें साफ हो जातीं. उस बयान के बाद कहा जा सकता है कि आरसीपी सिंह के जल्द समझौते की बात सिर्फ दिल को बहलाने वाला था. नड्डा ने साफ कहा था कि यूपी में उनकी पार्टी सिर्फ अपना दल और संजय निषाद के साथ मिल कर चुनाव लड़ेगी. अपने बयान में भाजपा–जदयू समझौते का जिक्र तक उन्होंने नहीं किया. इससे समझा जा सकता है कि इस पूरे खेल में किस तरह की सियासत चल रही है. वैसे बिहार की सियासत को इससे जोड़ कर देखना सही नहीं होगा. लेकिन इस सियासत में जदयू में शीर्ष स्तर पर जो चल रहा है उसके संकेत को देखा जा सकता है.

जदयू यूपी में चुनाव लड़ने का मन तो बना चुका था लेकिन वह चाहता था कि भाजपा के साथ उसका गठबंधन हो. यह इकतरफा फैसला था. वैसे कहा जा रहा है कि भाजपा के नजदीक हो चुके आरसीपी सिंह ने जदयू के आला नेताओं को यह यकीन दिलाया था कि बात बन जाएगी. लेकिन अब ऐसा नहीं हुआ. इससे जदयू की परेशानी तो नहीं बढ़ी है, आरसीपी सिंह की परेशानी जरूर बढ़ी है. जदयू अकेले चुनाव लड़ेगा और उन सीटों पर लड़ेगा जो जातीय समीकरण के लिहाज से उसके माकूल हो. जाहिर है कि जदयू का लक्ष्य अनुप्रिया पटेल को हाशिए पर लाना होगा. क्योंकि यूपी में जदयू के भाजपा के साथ जाने की मुखालफत उन्होंने मुखर रूप से की थी. कम से कम भाजपा के कई नेताओं का तो ऐसा ही मानना है.

वैसे जदयू भी मुगालते में नहीं होगा. उसे भी हकीकत का पता था कि भाजपा से शायद ही समझौता हो पाए. 2012 में जदयू ने जरूर चुनाव लड़ा था लेकिन नतीजे बहुत उत्साहित करने वाले नहीं थे. पिछली बार यानी 2017 में जदयू ने यूपी में चुनाव नहीं लड़ा था. संगठन तो है. कई इलाकों में प्रभाव भी है. जातीय समीकरण भी उसके पक्ष में है. लेकिन भाजपा तवज्जो देने के मूड में न कल थी और न अब है. सारा दारोमदार आरसीपी सिंह पर था. पिछले साल अगस्त में पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में उन्हें यूपी में भाजपा से बात करने के लिए अधिकृत कर दिया गया था. दरअसल आरसीपी सिंह फिलहाल भाजपा से दोस्ती के सबसे बड़े हिमायती हैं. इसलिए आरसीपी सिंह को यूपी में भाजपा से बात करने का जिम्मा सौंपा गया. उसका नतीजा भी मालूम था. लेकिन आरसीपी सिंह को अंत-अत तक भरोसा था कि सब कुछ ठीक हो जाएगा. दरअसल वे चाह तो रहे थे कि सब कुछ पटरी पर आ जाए. बात बन जाए. उन्हें यह भी पता है कि भाजपा से बात नहीं बनती है तो फिर पार्टी के अंदर उनकी बात बिगड़ जाएगी. आरसीपी सिंह इस सच को जानते हैं और जदयू नेतृत्व भी. अब जदयू में दूसरा खेला होगा. देखते रहें.

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