लखनऊ। यूपी की सियासी राजनीति तेज हो गई है। सत्ता से लेकर विपक्ष आगामी विधान सभा चुनाव में जीत की गणित अपने पक्ष में करने के लिए कोई कसर छोड़ना नहीं चाहता है। इस बीच अचानक उत्तर प्रदेश के मौजूदा 45 विधायकों के चुनाव लड़ने को लेकर संशय पैदा होने से संबंधित दलों की चिंता बढ़ गई है। जिसमें भाजपा सरकार के कृषि मंत्री व कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष समेत सपा-बसपा व अन्य दलों के विधायक शामिल हैं। विभिन्न मुकदमों की सुनवाई के दौरान इन 45 विधायकों पर एमपी-एमएलए कोर्ट में आरोप तय हो गए हैं। जिसमें इनके खिलाफ फैसला आ जाने की स्थिति में चुनाव लड़ने पर रोक लग सकता है।
एसोसिएट डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) की जारी एक रिपोर्ट में के बाद यह चौंकाने वाला मामला सामने आय है।रिपोर्ट के मुताबिक इनमें सबसे अधिक विधायकों की 32 संख्या भाजपा की है। इसके अलावा सपा के पांच, बसपा व अपना दल के 3-3 और कांग्रेस व तीन अन्य दल के एक-एक विधायक शामिल हैं। इन 45 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के लंबित होने की औसत संख्या 13 वर्ष है। 32 विधायकों के खिलाफ दस साल या उससे अधिक वर्ष से कुल 63 आपराधिक मामले लंबित हैं।
जिन विधायकों को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है,उसमें योगी सरकार के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही शामिल हैं। श्री शाही देवरिया जनपद के पथरदेवा विधान सभा क्षेत्र से निर्वाचित हैं। इस बार इनका मुकाबला सपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री ब्रम्हाशंकर त्रिपाठी से होने की संभावना है। उधर कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू का भी नाम इस सूची में शामिल है। इसके अलावा भाजपा विधायक रमाशंकर सिंह, बसपा के मऊ से मुख्तार अंसारी, धामपुर से भाजपा विधायक अशोक कुमार के नाम शामिल हैं। वहीं पथरदेव से अलीगढ़ के भाजपा विधायक संजीव राजा, गोवर्धन से भाजपा विधायक कारिंदा सिंह, प्रतापगढ़ के अपना दल से विधायक राज कुमाल पाल, कुंदरकी से सपा विधायक मोहम्मद रिजवान, दुद्धी से अपना दल विधायक हरिराम, गौरीगंज से सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह, शाहगंज से सपा विधायक शैलेंद्र यादव ललई और सकलडीहा से सपा विधायक प्रभुनाथ यादव का नाम शामिल है।
माूलम हो कि आरपी अधिनियम (रिप्रेजेन्टेशन ऑफ पीपुल एक्ट लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम) 1951 की धारा 8(1), (2) और (3) के तहत सूचीबद्ध अपराधों में ये आरोप तय हुए हैं। इन केस में न्यूनतम छह महीने की सजा होने पर ये विधायक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। हालांकि चुनाव लड़ने की पात्रता या अपात्रता तय करने का अधिकार केन्द्रीय चुनाव आयोग के पास है।फिलहाल न्यायालय व चुनाव आयोग के बीच फंसे इन विधायकों के भविष्य को लेकर अटकलें ही लगाई जा सकती है। लेकिन अगर कानून व आयोग का डंडा चला तो आगे ये कभी भी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।