नई दिल्ली। क्या आपको इस बात पर कभी यकीन होगा कि भगवान भी किसी बिज़नेस में पार्टनर हों सकते है ? लेकिन आपको विश्वास करना होगा कि राजस्थान और मध्य प्रदेश राज्यों की सीमाओं से सटे दक्षिण राजस्थान में चित्तौडगढ़ – उदयपुर मार्ग पर मंगलवाड़ कस्बे के नज़दीक भादसोड़ा गाँव में सांवलिया सेठ का भव्य एवं मशहूर कृष्ण मन्दिर है जिन्हें अनेक कारोबारियों और भक्तों ने अपने कारोबार में पार्टनर बना रखा है और यहीं वजह है कि देखते ही देखते न केवल इस मन्दिर का भव्य कायाकल्प हुआ है वरन यह कृष्ण मन्दिर अपार धन दौलत से भी समृद्ध हो गया है।
यहाँ भेंट चढ़ाई जाने वाली नगदी का तों कोई हिसाब ही नहीं है । हर बार भण्डार खुलने पर इसे गिनने वाले लोग भी थक हार कर चूर हो जाते हैं। मन्दिर की इसी सम्पन्नता की वजह से भक्त लोग सदियों से यहाँ भगवान कृष्ण की प्रतिमा को ‘साँवलिया सेठ’ के नाम से सम्बोधित करते है।
इस प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर ‘साँवलिया सेठ’ का वैभव निकटवर्ती राजसमन्द जिले में स्थित नाथद्वारा के श्रीनाथजी मन्दिर के साथ ही दक्षिण भारत के सुप्रसिद्ध मंदिर तिरूपति बालाजी और शिरड़ी (महाराष्ट्र) के सांई बाबा जैसे देश के अन्य प्रमुख मंदिरों से किसी भी तरह कमतर नहीं है। इन मन्दिरों की तरह सांवलिया मंदिर में भी हर महीने दानपात्रों में से करोड़ों रुपए नकद और सोना-चांदी,जवाहरात आदि बहुमूल्य सामग्री निकलती हैं। सांवलिया सेठ को यहाँ के धन्नासेठों और अन्य बहुतों ने अपने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में पार्टनर बना रखा है और व्यवसाय में लाभ का जो भी निश्चित हिस्सा होता है उसे श्रद्धालु आकर मंदिर में चढ़ा जाते हैं। साथ ही तरह-तरह की मन्नत मांगने वाले भक्त गण भी अपनी मन वांछित इच्छाएं पूरी होने पर मन्दिर आकर अपनी मन्नत के अनुसार भगवान को न्योछावर करते हैं।
काला-सोना’ अफीम की खेती और कारोबार करने वालों का दबदबा
दरअसल चित्तौडगढ़ जिला राजस्थान और मध्य प्रदेश राज्यों की सीमाओं से लगा हुआ है जहां चित्तौडगढ़, प्रतापगढ़(राजस्थान) नीमच और मन्दसौर (मध्य प्रदेश)आदि इलाक़ों में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती होती है। अफीम को ‘काला-सोना’ भी कहा जाता है। विभिन्न ओषधियों और अन्य कई कामों में प्रयुक्त होने वाले अफीम के व्यवसाय में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जुटे इन कारोबारियों को अफीम की खेती और व्यवसाय से लाखों-करोड़ों रु. के न्यारे-व्यारें होते है और वे हर बार अपनी कामयाबी का एक निश्चित हिस्सा सांवलिया सेठ की चौखट पर आकर न्योछावर कर जाते हैं।
भारत सरकार हर वर्ष एक ‘अफ़ीम-नीति’ की घोषणा करती है जिसे लेकर राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों के सीमावर्ती सम्बद्ध जिलों के सांसद हर वर्ष केन्द्रीय वित्त मंत्री से मुलाक़ात कर भारत सरकार से अफीम कृषकों के हित में अफीम नीति बनाने का दवाब बनाते है। इन इलाक़ों की राजनीति पर अफीम के व्यवसाय से जुड़े लोगों का प्रभाव होने से कोई भी सरकार और जन प्रतिनिधि इसे नज़रअन्दाज़ नहीं कर सकता।
जोखिम से भरी है अफीम की खेती
अफीम की खेती किसी जोखिम से कम नहीं है क्यों कि अफीम काश्तकारों को बहुत मुश्किल से केन्द्र- सरकार से इसकी खेती का लाइसेंस प्राप्त होता है और यदि लाइसेंस धारी कृषक निर्धारित मात्रा में अफीम का उत्पादन नही कर पाते है तो उनके लाइसेंस भी रद्द कर दिए जाते हैं। इसके अलावा अफीम की खेती की देखभाल करना, उसे बारिश, सूखे आदि के साथ ही तस्करों से बचाना भी एक बहुत बड़ी चुनौती बना रहता है। फसल पैदा होने के बाद इसके तौल और डोडे का मूल्यांकन किसी कठिन परीक्षा से कम नहीं होता। कई बार इसमें भ्रष्ट कारिंदों की कारगुजारियों के कारण किसानों को उनकी उपज का सही और उचित मूल्य भी नहीं मिल पाता है। कुल मिला कर अफीम की खेती एक तरीके से बहुत जोखिमपूर्ण कार्य है। ऐसी परिस्थितियों में हर अफीम काश्तकार ऊपर वाले से मन्नत माँगता है कि उनकी खेती बिना किसी व्यवधान के उन्हें अच्छी तरह से पैदावार दें और हर बार इसमें नुक़सान के बजाय फ़ायदा ही मिलें। मान्यता है कि सांवलिया सेठ की चौखट पर आकर मन्नत रखने वाले हर इंसान की मनोकामना पूरी होती है इसलिए बताया जाता है कि इन इलाक़ों और आसपास के प्रदेशों के कारोबारी सदियों से इस यकीन को विश्वास में बदलते देख कर सांवलिया सेठ को अपना बिज़नेस पार्टनर बनाते आ रहें है।
भक्त की मुराद पूरी और चांदी से बना अफीम का पौधा भेंट
सांवलिया सेठ के मन्दिर में हाल ही एक दिलचस्प वाक़या देखने में आया है। अफीम की खेती करने वाले एक किसान ने मन्नत मांगी थी कि उसकी फसल पर इस बार यदि मौसम की मार नहीं पड़े ।साथ ही तस्करों की निगाहों से बच कर अच्छी पैदावार हुई तो वह चांदी से बना अफीम का एक पौधा भगवान के दरबार में चढ़ाकर आयेगा। किसान की मुराद पूरी हुई तो वह 100 ग्राम चांदी से बना एक खूबसूरत नक़्क़ाशी युक्त अफीम का पौधा मंदिर में भेंट करने के लिए आया । इस पौधे में अफीम के पत्ते, डोडे तथा डोडे को चीरा लगाकर अफीम को निकलता हुआ दिखाया गया है। सांवलिया मंदिर मंडल ने नीमच (मध्य प्रदेश) से आए इस भक्त का ओढऩा ओढ़ा कर एवं प्रसाद भेंट कर स्वागत किया। अपने नाम को उजागर नही करने वाले इस किसान का कहना था कि उसने अफीम की खेती की सुरक्षा और अच्छी पैदावार के लिए मन्नत मांगी थी, सांवलिया सेठ की कृपा से उसकी मुराद पूरी हुई एवं अफीम की खेती को कोई नुकसान नहीं हुआ।साथ ही उसे फसल से अच्छा मुनाफ़ा भी मिला है।
इस किसान ने अपनी मुराद पूरी होने पर मन्नत के अनुसार 100 ग्राम वजन का चांदी से निर्मित अफीम का पौधा तैयार कराया और मन्दिर परिसर में आकर चाँदी से बना यह अफीम का पौधा भेंट किया। किसान ने अपनी इस भेंट को बक़ायदा मंदिर मंडल के भेंटकक्ष कार्यालय में जमा करवा कर रसीद भी प्राप्त की।
कैसे पहुँचें सांवलिया सेठ मंदिर ?
उल्लेखनीय है कि सांवलिया सेठ का यह मंदिर दक्षिणी राजस्थान में चित्तौड़गढ़ सॆ उदयपुर की ओर राष्ट्रीय राजमार्ग पर 28 किमी की दूरी पर भादसोड़ा ग्राम में स्थित है। इस गाँव ने राजस्थान को एम.एल.मेहता के रूप में एक मुख्य सचिव भी दिया है। यह मंदिर चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन से 41 किमी एवं उदयपुर के महाराणा प्रताप डबोक एयरपोर्ट से 65 किमी की दूरी पर बना हुआ है।
सांवलियाजी मंदिर का इतिहास
सांवलियाजी मंदिर परिसर एक भव्य और सुंदर संरचना है जो राजस्थान के मशहूर गुलाबी बलुआ पत्थर में निर्मित है। मंदिर के गर्भगृह में सेठ सांवलिया जी की काले पत्थर से निर्मित मूर्ति स्थापित है जो भगवान कृष्ण के साँवले रंग को दर्शाती है।मंदिर की वास्तुकला प्राचीन हिंदू मंदिरों से प्रेरित है। मंदिर की दीवारों और खम्भों पर सुंदर नक्काशी की गयी है जबकि, फर्श गुलाबी, शुद्ध सफेद और पीले रंग के बेदाग रंगों से बने हुए है।
ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री सावलिया सेठ का संबंध कृष्ण भक्त मीरा बाई से है।किवदंतियों के अनुसार सांवलिया सेठ मीरा बाई के वही गिरधर गोपाल है, जिनकी वह पूजा किया करती थी।तत्कालीन काल में संत-महात्माओं की जमात में मीरा बाई इन मूर्तियों के साथ भ्रमणशील रहती थी।दयाराम नामक संत की ऐसी ही एक जमात थी जिनके पास ये मूर्तियां थी।बताया जाता है की जब औरंगजेब की सेना मंदिरों में तोड़-फोड़ कर रही थी तब मेवाड़ में पहुंचने पर मुगल सैनिकों को इन मूर्तियों के बारे में पता लगा।मुगलों के हाथ लगने से पहले ही संत दयाराम ने प्रभु-प्रेरणा से इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर छिपा दिया।
किवदंतियों के अनुसार कालान्तर में सन 1840 मे मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर नामक ग्वाले को सपना आया की भादसोड़ा-बागूंड गांव की सीमा के छापर में भगवान की तीन मूर्तिया जमीन मे दबी हुई हैं।जब उस जगह पर खुदाई की गयी तो सपना सही निकला और वहां से एक जैसी तीन मूर्तिया प्रकट हुईं।सभी मूर्तियां बहुत ही मनोहारी थी।देखते ही देखते ये खबर सब तरफ फैल गयी और आस-पास के लोग प्राकट्यस्थल पर एकत्रित होने लगे। तब से अब तक मन्दिर की प्रसिद्धि दिन दुगनी और रात चौगुनी की तरह फैलती जा रही है।
गुजरात और दिल्ली के विश्वप्रसिद्ध अक्षरधाम मंदिर की तर्ज पर पिछले कई बरसों से श्री सांवलिया सेठ मंदिर का नव-निर्माण जारी है। इसमें मुख्य मंदिर के दोनों ओर बरामदों में दीवारों पर बेहद आकर्षक चित्रकारी की गई है। अक्षरधाम की तरह यहां भी मंदिर के मध्य खाली मैदान में संगीतमय फव्वारा लगा इसे आकर्षण का केन्द्र बनाया जा रहा है।
मन्दिर के विशाल परिसर में देश विदेश के पर्यटक विशेष कर उत्तर-पश्चिमी भारत के मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली और उत्तर प्रदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। वर्ष 1961 से देवझूलनी एकादशी पर यहाँ विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है।
जितना देते हैं, सांवलिया सेठ उससे कई गुना वापस लौटाते हैं
देश विदेश में प्रसिद्ध सांवलिया सेठ का यह मंदिर अपनी सुन्दरता और वास्तु कला के कारण हर साल लाखों भक्तों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है। यह प्रारम्भ से मंडफिया मंदिर और कृष्ण धाम के रूप में चर्चित रहा है। मंडफिया मंदिर का संचालन राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग के अन्तर्गत होता है। कालांतर में सांवलिया सेठ मंदिर की महिमा इतनी फैली कि उनके भक्त अपने वेतन से लेकर व्यापार और व्यवसाय तक में उन्हें अपना हिस्सेदार बना कर केश और काइंड के रूप में अपनी श्रद्धा न्योछावर करते हैं। मान्यता है कि जो भक्त भगवान के खजाने में जितना देते हैं, सांवलिया सेठ उन्हें उससे कई गुना ज्यादा वापस लौटाते हैं। इस ख्याति के कारण लोग अपने व्यापार और व्यवसाय को बढ़ाने के लिए सांवलिया सेठ को अपना ‘बिजनेस पार्टनर’ बनाते हैं।
श्री सांवलिया जी मंदिर का भंडारा या दानपात्र माह में एक बार खोला जाता है। यह हिन्दू तिथि अनुसार चतुर्दशी को खुलता है और इसके बाद अमावस्या का मेला शुरू होता है। होली के त्योहार पर यह डेढ़ माह में और दीपावली पर दो माह में खोला जाता है। सांवलिया सेठ मंदिर में कई एनआरआई भक्त भी आते हैं। ये विदेशों में अर्जित आय में से सांवलिया सेठ का हिस्सा चढ़ाते हैं। इसलिए भंडारे से डॉलर, पाउंड, दिनार, रियॉल आदि के साथ कई देशों की मुद्रा भी निकलती है।
इंडिया न्यूज स्ट्रीम