30 जून, 2021
न्यूयॉर्क: एक व्यापक रिपोर्ट में पाया गया है कि अधिकांश भारतीय सभी धर्मों का सम्मान करते हैं क्योंकि यह ‘वास्तव में भारतीय होने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है’ और लोगों ने माना कि सभी अपने धर्मो का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं।
अमेरिका स्थित प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार, “सहिष्णुता एक धार्मिक और साथ ही नागरिक मूल्य है : भारतीय इस विचार में एकजुट हैं कि अन्य धर्मो का सम्मान करना उनके अपने धार्मिक समुदाय का सदस्य होने का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है।”
रिपोर्ट लगभग 30,000 भारतीयों के साथ आमने-सामने साक्षात्कार पर आधारित है।
मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है, “भारतीय आमतौर पर महसूस करते हैं कि उनका देश आजादी के बाद के आदर्शो पर खरा उतरा है। एक ऐसा समाज जहां कई धर्मों के अनुयायी स्वतंत्र रूप से रह सकते हैं और अभ्यास कर सकते हैं।”
इसमें कहा गया है कि 85 प्रतिशत हिंदू और 78 प्रतिशत मुस्लिम और ईसाई दोनों इस विचार से सहमत हैं कि सभी धर्मों का सम्मान भारतीय होने का अभिन्न अंग है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस विचार के लिए भारी समर्थन था कि ‘अन्य धर्मों का सम्मान करना उनकी अपनी धार्मिक पहचान का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है।’
इसमें कहा गया है कि 80 फीसदी हिंदू, 75 फीसदी सिख, 79 मुस्लिम, 78 फीसदी ईसाई और 75 फीसदी सिख इस प्रस्ताव से सहमत हैं।
यह विश्वास कि वे अपने धर्म का पालन करने के लिए ‘बहुत स्वतंत्र’ हैं , उनको सभी धर्मों में जबरदस्त समर्थन मिला, जिसमें 91 प्रतिशत हिंदू, 89 प्रतिशत मुस्लिम और ईसाई और 82 प्रतिशत सिख इसका समर्थन करते थे।
प्यू रिसर्च सेंटर, धर्म और समाज पर अग्रणी थिंक टैंक और मतदान संगठनों में से एक, ने कहा कि इसने 2019 के अंत और अगले साल कोविड -19 महामारी के आने से पहले पूरे भारत में 17 भाषाओं में साक्षात्कार आयोजित किए।
मतदान पर आधारित इसकी रिपोर्ट में धार्मिक विश्वास, राजनीति और सामाजिक मुद्दे शामिल हैं और रिपोर्ट का सारांश हिंदी और तमिल में भी जारी किया गया था।
लेकिन एक असंगत टिप्पणी में, रिपोर्ट में पाया गया कि कई हिंदुओं के लिए, हिंदू धर्म का होना और हिंदी बोलना ‘सच्चा भारतीय’ होने के लिए आवश्यक था।
हालांकि, उन विश्वासों को मानने वाले और भाजपा को वोट देने वाले 65 फीसदी हिंदुओं ने यह भी कहा कि धार्मिक विविधता देश के लिए अच्छी बात है।
इसमें कहा गया है कि 64 प्रतिशत हिंदुओं के लिए सही मायने में भारतीय होने के लिए धर्म से संबंधित होना चाहिए और 59 प्रतिशत के लिए हिंदी बोलना आवश्यक है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत के विभाजन के संबंध में व्यापक मतभेद थे। 66 प्रतिशत सिखों और 48 प्रतिशत मुसलमानों ने इसे बुरा माना, जबकि केवल 37 प्रतिशत हिंदुओं और 30 प्रतिशत ईसाइयों ने इस विचार को साझा किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 43 फीसदी हिंदुओं, 30 फीसदी मुसलमानों, 25 फीसदी सिखों और 37 फीसदी ईसाइयों ने कहा कि यह अच्छा है।
जाति की बाधाओं को कमजोर करने के संकेत में, प्यू ने कहा कि अन्य जातियों के 72 प्रतिशत भारतीयों ने कहा कि वे एक दलित को पड़ोसी के रूप में रखने के इच्छुक होंगे।
इसमें कहा गया है कि 27 फीसदी मुसलमानों और 29 फीसदी ईसाइयों ने पुनर्जन्म को महत्वपूर्ण रूप से स्वीकार किया है।
जब इंटर-कास्ट मैरेज की बात आती है, तब भी धार्मिक और जाति के आधार पर कड़ा विरोध होता है।
रिपोर्ट के अनुसार, मुसलमानों का एक बड़ा प्रतिशत, करीब 80 प्रतिशत नहीं चाहता कि उनके धर्म की महिलाएं धर्म से बाहर शादी करे। इसी मामले में हिंदुओ का प्रतिशत 67 है। जिसमें यह भी पाया गया कि 76 प्रतिशत मुसलमान और 65 प्रतिशत हिंदू भी अपने लड़कों के धर्म से बाहर शादी करने के खिलाफ हैं।
प्यू ने बताया कि जब अंतजार्तीय विवाह की बात आती है, तो अधिकांश हिंदू, मुस्लिम, सिख और जैन पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए उन्हें रोकना एक उच्च प्राथमिकता मानते हैं।
–आईएएनएस