उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव में मिली हार के बाद समाजवादी पार्टी (सपा) को अपनी रणनीति पर दोबारा मंथन करने की ज़रूरत है.सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को भी यह समझना होगा कि बिना ज़मीन पर उतरे, विजय हासिल नहीं की जा सकती है. सत्तारुण भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने सपा को उसके गढ़ में ही हरा दिया है. प्रमुख विपक्षी पार्टी की हार से बीजेपी के हौसले बुलंद है. लेकिन यह सपा के लिए चिंता की बात है कि अखिलेश और आज़म खां के होते हुए मुस्लिम बहुल संसदीय सीटों पर भगवा झंडा लहरा रहा है.
रामपुर और आज़मगढ़ लोकसभा उपचुनाव में बड़ा बदलाव हुआ है। सपा के मजबूत गढ़ में ही सपा को भाजपा का प्रवेश कैसे हुआ? इस सवाल का जवाब तलाशा जा रहा है. रामपुर में घनश्याम लोधी और आज़मगढ़ में निरहुआ ने जीत हासिल की। लेकिन इसको एक आम उपचुनाव की तरह देखना गलत होगा. यह मुख्यमंत्री योगी यादव और अखिलेश दोनों के प्रभाव और प्रतिष्ठा का भी मसला था।
यह चुनाव बीजेपी के लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं था, खासकर ऐसे समय में जब देश में अग्निपथ, महंगाई और किसान समस्या को लेकर चारों तरफ से बीजेपी का विरोध हो रहा है। ऐसे समय में बीजेपी की इस जीत ने देश की राजनीती के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश की राजनीती में एक बड़ा संकेत दिया है।
सपा के प्रमुख मुस्लिम चेहरा आज़म खां के रामपुर में बीजेपी कीतीसरी बार जीती है। आज़मगढ़ में त्रिकोणीय मुक़ाबले में बीजेपी ने सपा के किले में 2009 के बाद कब्जा किया है। लेकिन इस सब के बीच बड़ा सवाल यही है किऐसा क्या हुआ कि प्रदेश में अपने सबसे मजबूत किले को सपा नहीं बचा सकी है.
इस हार का एक बड़ा कारण कम वोटिंग को भी माना जा रहा है. अगर 2019 लोकसभा चुनाव की तुलना में देखे तो उपचुनाव में आज़मगढ़ में 11.55 प्रतिशत और रामपुर में 26.16 प्रतिशतकम मतदान हुआ। उपचुनाव में आज़मगढ़ में 49.43% तो रामपुर में 41.01 % वोट डाले गये।रामपुर में 17 लोकसभा चुनाव हुए हैं 2019 मिलाकर, लेकिन कभी भी इतना कम वोटिंग प्रतिशत कभी नहीं रहा, जितना इस चुनाव में देखा गया है .
लोकसभा चुनाव 2019 में रामपुर में 63.26 प्रतिशत तक पहुंच गया था। हालांकि, सबसे ज्यादा वोट 1967 में डाले गए थे, जब मतदान प्रतिशत 67.16 रहा था।
उपचुनाव में सपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश का अति आत्मविश्वास तो भाजपा की जमीनी पर मेहनत दिखाई दी। सपा प्रमुख न रामपुर और न ही अपने गढ़ आज़मगढ़ गए। दोनों जगह अखिलेश चुनाव प्रचार नहीं किया। वही बीजेपीका बूथ प्रबंधन और संगठन ने दिन रात एक करके चुनाव लड़ा। और अपने वोटरों को निकालने में सफल रहे और सपा के वोटर नहीं निकल पाए।
जब अखिलेश ट्विटर से घर में बैठ कर राजनीती कर रहे थे, उस समय बीजेपी अपनी पूरी फौज के साथ प्रचार कर रही थी। मुख्यमंत्री योगी ने स्वयं चुनाव प्रचार किया. बीजेपी ने इस उपचुनाव का महत्त्व समझते हुए मजबूत रणनीति बने थी.दोनों सीटों पर विधायक, सांसद और मंत्रियों को भी प्रचार में लगाया गया था। जिन्होंने मतदाताओं को समझाया कि प्रदेश और केंद्र में बीजेपी सरकार है और बीजेपी को जिताने से संसदीय इलाके विकास होगा।
अभी तक सपा आज़मगढ़ और रामपुर दोनों सीटें “जातीय समीकरण” पर ही जीतती रही थी ।आज़मगढ़ में करीब 45 प्रतित्शत वोटर मुस्लिम और यादव हैं और रामपुर में मुस्लिम वोटरों की संख्या ही 49 प्रतिशत हैं।
लेकिन रामपुर ने आज़म खां ने वहां के नवाबों को लेकर आपत्तिजनक बयान दिए उन्होंने कहीं न कहीं मुसलमानों को नाराज़ किया. यही वजह हुई की मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा जो सपा को वोट देता था, वह मतदान के दिन बहार नहीं निकला.
जिसका नतीजा यह हुआ की रामपुर में आज़म खां की जेल से रिहाई के बाद और स्थानीय लोगों की उनके साथ सहानुभूति के बावजूद उनके चुने हुए प्रत्याशी और करीबी माने जाने वाले आसिम राजा सपा की हार का अंतर 40 हजार से ज्यादा रहा है।
विधानसभा के चुनावों के बाद अखिलेश को पार्टी के कुछ मुसलमान नेताओं की नाराज़गी का सामना करना पसद रहा है.आज़म खान के निजी सचिव शानू ने एक सभा में उनके ख़िलाफ़ बयान दिए. इनका सन्देश यह था कि अखिलेश मुसलामानों से वोट तो मांगते हैं लेकिन उनके बुरे वक्त में उनके साथ नहीं खड़े होते.क्या मुसलामानों ने इस उपचुनाव में अखिलेश और सपा को कोई सन्देश देने की कोशिश की है?
उपचुनावों में बीजेपी की जीत के बाद बड़ा प्रश्न यह है कि क्या विपक्ष खासकर सपा ने मज़बूती से बीजेपी मुकाबला किया या नहीं?क्योंकि कांग्रेस तो चुनाव ही नहीं लड़ रही थी. लेकिन यह बात बिलकुल साफ़ है इस उपचुनाव नतीजों के बाद एक बात बिल्कुल साफ़ है कि अखिलेश यादव ने नैरेटिव बनाने का एक मौक़ा खो दिया है.