राजस्थान का बाँसवाड़ा जिला आज़ादी के 75 वर्षों के बाद भी रेल की सिटी सुनने से महरूम
आज जब देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तब राजस्थान के सुदूर दक्षिणी भाग में उदयपुर संभाग का एक जिला बाँसवाड़ा आज़ादी के 75 वर्षों के बाद भी रेल की सिटी सुनने से महरूम है। अब थक हार कर यहाँ के बाशिंदे और जन प्रतिनिधि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से अरदास करने लगे है कि “मोदी जी सुनो…. फकत एक रेल दे दो ….”
मध्य प्रदेश और गुजरात से सटा यह आदिवासी बाहुल्य ज़िला रेल की छुक-छुक सुनने के लिए तरस गया है । बहुप्रतिष्ठित रेल सुविधाओं से अभी तक वंचित इस जिले के किसी भी कोने से रेल नहीं गुजरती।यहाँ की कई पीढ़ियाँ रेल का सपना ज़हन में लिए ही इस दुनिया से विदा हो गई जिसमें तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री और पश्चिम बंगाल असम और मेघालय के गवर्नर रहें हरिदेव जोशी भी शामिल है,जिन्होंने अपने गृह जिले में रेल लाने के अथक प्रयास किए।वे बताते थे कि यदि तत्कालीन रेल मंत्री एल एन मिश्र की दो जनवरी 1975 को बिहार में हुए बम विस्फोट में मृत्यु नही होती तो बाँसवाड़ा की पेंडिंग रेल परियोजना की फाइल मंज़ूर होकर जिले को कई वर्षों पहलें ही रेल मिल जाती।
कालान्तर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हरिदेव जोशी के इस अधूरे सपने को पूरा करने का प्रयास किया और डूंगरपुर-रतलाम वाया बाँसवाड़ा रेल परियोजना की 2010-11 के रेल बजट में घोषणा कराई । देश में पहली बार किसी रेल परियोजना को केन्द्र और राज्य सरकार के मध्य हुए एमओयू के साथ पचास-पचास प्रतिशत भागीदारी से शुरू किया गया। गहलोत ने यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी से इस महत्वाकांक्षी परियोजनाकी आधारशिला रखवा काम शुरु करवाया लेकिन दुर्भाग्य ने बाँसवाड़ा जिले का साथ नहीं छोड़ा।
आरम्भ में वायदे के अनुसार राजस्थान सरकार ने परियोजना के लिए अपनी हिस्से की राशि भी दी लेकिन बाद में प्रदेश में सरकार बदलने पर भाजपा की वसुन्धरा सरकार ने राज्य की आर्थिक स्थिति और रेल केन्द्र का विषय बता कर इसमें भागीदारी से इंकार कर दिया और अब जब गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने भी प्रदेश की ख़ास्ता माली हालत का हवाला देते हुए अपनी हिस्सेदारी देने से इंकार कर दिया है । केन्द्र से भी अब तक 200 करोड़ रु का ही बजट मिला जिसकी वजह से परियोजना का कार्य आज कई वर्षों से बंद पड़ा है जबकि थी इस परियोजना को 2017 तक पूरी हो जाना था।
बाँसवाड़ा के निकट इन्दिरा गांधी द्वारा उद्घाटित अन्तर राज्जीय माही बजाज सागर जल विधुत परियोजना के बेक वॉटर क्षेत्र में बनने वाले अणु बिजली घर से यह परियोजना और भी व्यावहारिक बन गई थी और 192 किमी लम्बाई वाली इस रेल परियोजना के लिए 175.56 हेक्टयर भूमि का अधिग्रहण सहित 185 करोड़ रु के काम भी हुए लेकिन बाद में कतिपय कारणों से अणु बिजली घर परियोजना सिरे नही चढ़ पाई और रेल परियोजना के काम भी बंद हो गए । इस परियोजना के अन्तर्गत छोटे बड़े 500 रेल्वे ब्रिज बनने है लेकिन अब तक अर्थ वर्क, पुल पुलिया आदि छोटे मोटे काम ही हो पाए है। परियोजना का काम अवरुद्ध होने से सम्बन्धित कार्यालय भी बंद हो गए है। रेल परियोजना का काम रुकने से इसका लागत व्यय वर्ष प्रति वर्ष बढ़ता ही जा रहा है। प्रारम्भ में इसकी मूल लागत 2082.74 करोड़ रु थी लेकिन वर्ष 2016-17 में यह 3450 करोड़ रु.हो गई और अब इसकी लागत 4262 करोड़ रु हो गई है।
इधर बाँसवाड़ा-डूंगरपुर के भाजपा सांसद कनकमल कटारा ने हाल ही नई दिल्ली में केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से भेंट कर कई वर्षों से बंद पड़ी डूंगरपुर- बाँसवाड़ा-रतलाम रेल परियोजना का समस्त खर्चा केन्द्र सरकार द्वारा वहन करने और रेल मार्ग के काम को तत्काल पुनः शुरू कराने का आग्रह किया है ।
उन्होंने इस योजना को फिर से शुरू करने की घोषणा कर इस पिछड़े आदिवासी इलाके के लोगों के वर्षों पुराने सपने को पूरा करने की माँग रखी है।इससे पूर्व भी वे संसद और बाहर अनेक बार इस माँग को रख चुके है।
कटारा ने रेल मंत्री से आग्रह किया कि जब राजस्थान सरकार इस रेल परियोजना के लिए अपनी आधी हिस्सा राशि देने से इंकार कर रही है ऐसे में केन्द्र सरकार को आगे बढ़ कर इस अनुसूचित जनजाति क्षेत्र के वंचित लोगों की सुविधा के लिए परियोजना का पूरा खर्चा स्वयं वहन करने आगे आना चाहिए।कटारा की तरह राज्यसभा सांसद हर्ष वर्धन सिंह डूंगरपुर ने भी इस रेल परियोजना के समर्थन में संसद में अपनी आवाज़ बुलन्द की है। उन्होंने उदयपुर हिम्मत नगर वाया डूंगरपुर ब्रॉड गेज रेल परियोजना के कार्य को भी अतिशीघ्र पूरा कराने तथा डूंगरपुर से अहमदाबाद के मध्य ब्रॉड गेज रेल गाड़ियों का संचालन शुरू कराने की माँग भी रखी है।
उल्लेखनीय है कि डूंगरपुर-बाँसवाड़ा -रतलाम रेल लाईन बनने से राजस्थान मध्य प्रदेश और गुजरात का एक बड़ा आदिवासी अंचल जहाँ दिल्ली-मुम्बई रेल मार्ग पर स्थित रतलाम जंक्शन से जुड़ जायेगा वहीं दूसरी तरफ़ हिम्मत नगर-अहमदाबाद के माध्यम से मुम्बई और पूरे दक्षिणी भारत से भी जुड़ सकेगा। इससे बड़ी संख्या में रोजगार के लिए अन्य प्रदेशों में आने-जाने वाले इस जनजाति इलाके के लोगों तथा व्यापार, उध्योग -धंधों,अन्य वाणिज्यिक गतिविधियों आदि में मदद मिलेगी ।साथ ही रोज़गार का मार्ग प्रशस्त होने के साथ इलाक़े के विकास को भी गति मिलेगी। इसके अलावा पाँचवीं से ग्यारहवीं शताब्दी की पुरातन विरासत से समृद्ध वागड़ अंचल के पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। साथ ही इस परियोजना का सामरिक दृष्टि से भी महत्व है क्योंकि भारत -पाक की सीमा से सटे जैसलमेर बाड़मेर बीकानेर श्रीगंगानगर जोधपुर आदि के मुक़ाबले यह सुरक्षित रेल मार्ग साबित हो सकेगा।
वागड़ अंचल मार्बल ग्रेनाईट सोप स्टोन आदि कई खनिज़ों से भी समृद्ध है इससे इस रेल मार्ग का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अनुसूचित क्षेत्रों के विकास के लिए संविधान में राष्ट्रपति को सीधे जिम्मेदार बताया गया है और उनके प्रतिनिधि के रूप में राज्यपाल को समय समय पर विकास कार्यों की समीक्षा का दायित्व सौंपा गया है।इस दृष्टि से इस आदिवासी अंचल के बाशिन्दों और जन प्रतिनिधियों का मानना है कि आज़ादी के बाद से अब तक रेल मार्ग से अनछुए बांसवाड़ा जिले के लिए यह रेल परियोजना आजादी के 75 वर्ष का सबसे बड़ा तोहफ़ा साबित हो सकती है।