जन्माष्टमीः 101 वर्षों बाद बना सर्वपापहारी तथा जयंती योग का अद्भुत संयोग

नई दिल्ली। कृष्ण जन्माष्टमी पर इस बार द्वापर युग में कृष्ण भगवान के जन्म समय जैसी ग्रह स्थिति बनी। साथ ही 101 साल बाद जयंती योग भी बना। वर्षों बाद इस बार वैष्णव व गृहस्थ ने एक ही दिन कृष्ण जन्मोत्सव मनाया।

वैदिक शास्त्रों में कहा गया है कि जन्माष्टमी के अवसर पर छह तत्वों का एक साथ मिलना बहुत ही दुर्लभ होता है। ये तत्व हैं भाद्र कृष्ण पक्ष, अर्धरात्रि कालीन अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृष राशि में चंद्रमा, इनके साथ सोमवार या बुधवार का होना।

श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण अष्टमी तिथि, सोमवार रोहिणी नक्षत्र व वृष राशि में मध्य रात्रि में हुआ था। इसलिए प्रत्येक वर्ष भाद्र कृष्ण अष्टमी तिथि को श्रद्धालु कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं।

इस वर्ष जन्माष्टमी का खास महत्व

इस वर्ष जन्माष्टमी 30 अगस्त को है। इस बार जन्माष्टमी बहुत ही खास महत्व है क्योंकि कई विशेष संयोग बने। 30 अगस्त का दिन सोमवार है। अष्टमी तिथि रविवार 29 अगस्त की रात 10:10 बजे से शुरू होकर सोमवार रात्रि 12:24 तक रहेगी। इसके बाद नवमी तिथि प्रवेश कर जाएगी। इस समय चंद्रमा वृष राशि में रहेगे। इन सभी संयोगों के साथ रोहिणी नक्षत्र भी 30 अगस्त को रहेगा। रोहिणी नक्षत्र का प्रवेश 30 अगस्त को प्रात: 6:49 में हो जाएगा। अर्धरात्रि को अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र का संयोग एक साथ मिल जाने से जयंती योग का निर्माण होता है। इसी योग में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया गया। 101 साल के बाद जयंती योग का संयोग बना है। साथ ही अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र व सोमवार तीनों का एक साथ मिलना बहुत ही दुर्लभ संयोग है।

श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय निम्बाहेड़ा,चितौडगढ़ के ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष डॉ मृत्युंजय तिवारी के अनुसार हजारों वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण के जन्म पर भी इसी प्रकार का योग बना था। भगवान कृष्ण के जन्म के समय सूर्य, चंद्रमा, मंगल, शनि, राहु व केतु कुंड़ली के केंद्रीय भाव में रहेंगे। वहीं बुध, गुरु व शुक्र मिलकर त्रिकोण योग बनाएंगे।

उल्लेखनीय है कि सोलह कलाओं से युक्त योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण की जयन्ती देश विदेश में धूम धाम से मनाई जाती है। विशेष कर उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र में मथुरा, गोकुल और वृन्दावन आदि के अलावा गुजरात के द्वारका,वड़ोदरा,अहमदाबाद ड़ाकौर जी और शामला जी के साथ ही राजस्थान में अंतरराष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद के प्रधान पीठ नाथद्वारा- कांकरोली, प्रथम पीठ कोटा के साथ ही उदयपुर के ऐतिहासिक श्रीनाथ जी की हवेली और जगदीश मन्दिर,जयपुर के आराध्य देव गोविन्द देव जी और शेखावटी में खाटू श्याम जी आदि स्थानों में बहुत ही धूमधाम से जन्माष्टमी के उत्सव मनायें जाते हैं।

जन्माष्टमी का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है जो दशावतार में विष्णु के आठवें अवतार और चौबीस अवतार में 22 वे अवतार हैं व हिन्दू धर्म के ईश्वर माने जाते हैं। उन्हें विभिन्न नामों से पुकारते हैं।

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