दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी ऑनर्स के पाठ्यक्रम से प्रख्यात बंगला लेखिका महाश्वेता देवी की कहानी” द्रौपदी” के अंग्रेजी अनुवाद को हटाए जाने का विवाद गहराता जा रहा है।
10 जन संगठनों ने इस कहानी को पाठ्यक्रम में फिर से बहाल करने की मांग की है ।
गौरतलब है कि पिछले दिनों विश्वविद्यालय की ओवरसाइट कमिटी ने महाश्वेता देवी और दो दलित लेखिकाओं की कहानी को ऑनर्स के पाठ्यक्रम से हटा देने की सिफारिश की थी जिसका तीखा विरोध प्रगतिशील शिक्षकों ने किया था जबकि भाजपा समर्थित शिक्षक संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ने इन कहानियों को” हिंदू विरोधी” बताते हुए इन्हें पाठ्यक्रम से हटाए जाने का स्वागत किया था ।
इस तरह इस कहानी को हटाए जाने के मुद्दे पर वामपंथी और भाजपाई शिक्षक आमने सामने आ गए हैं।
जनवादी लेखक संघ,प्रगतिशील लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, इप्टा ,संगवारी ,प्रतिरोध का सिनेमा, दलित लेखक संघ सोशलिस्ट इनिशिएटिव, अभदालम समेत दस संगठनों द्वारा जारी संयुक्त बयान में कहा गया है कि भाजपा जब सरकार में आती है तब वह इस तरह के कदम उठाती है। वाजपयी सरकार में प्रेमचन्द के उपन्यास को हटाकर मृदुला सिन्हा का उपन्यास सीबीएसई के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया।
दस संगठनों ने ने आज एक संयुक्त बयान जारी कर कहा कि महाश्वेता देवी अंतरराष्ट्रीय स्तर की लेखिका है और उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिल चुका है तथा वह पद्म भूषण से भी सम्मानित हो चुकी है। उनकी यह कहानी 1999 से दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी ऑनर्स के पाठ्यक्रम में शामिल थी लेकिन इस कहानी को पाठ्यक्रम से अब बाहर कर दिया गया। हम इस कहानी को दोबारा पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग करते हैं।
बयान में कहा गया है कि ओवरसाइट कमेटी में न तो इतिहास न ही साहित्य और दलित मामलों के जानकार लोग शामिल हैं । इस कहानी का मूल्यांकन वे कैसे कर सकते हैं।
बयान में कहा गया है कि “हमें नहीं भूलना चाहिए कि सन् 1978 में प्रख्यात इतिहासकार रामशरण शर्मा द्वारा लिखित पाठ्यपुस्तक ‘प्राचीन भारत’ को ग्यारहवीं कक्षा के पाठ्यक्रम से सी बी एस ई ने निकाल दिया था। इसी प्रकार वाजपेयी सरकार में प्रेमचन्द के निर्मला उपन्यास को CBSE के पाठ्यक्रम से हटाकर उसकी जगह गुमनाम मृदुला सिन्हा के उपन्यास ‘ज्यों मेहँदी के रंग’ को शामिल किया गया था। इसी कड़ी का ताजा उदाहरण है दिल्ली विश्वविद्यालय की पर्यवेक्षी समिति (Oversight Committee) द्वारा देश की ख्यातिलब्ध लेखिका महाश्वेता देवी की लघुकथा ‘द्रौपदी’ और दो दलित लेखकों बामा और सुकिर्तरानी की कहानियों को अंग्रेजी पाठ्यक्रम से बाहर करना है।”
“_ये कहानियां जातिभेद और लैंगिक भेदभाव पर आधारित समाज में स्त्री के साथ होने वाले अन्याय और वंचितों के साथ होने वाली संरचनात्मक हिंसा को उजागर करती हैं।_ _महाभारत काल से आज तक वर्चस्व के लिए होनेवाली पुरुषों की लड़ाई में स्त्री अपमान का मोहरा बनाई जाती रही है। जिस तरह महाभारतकार ने द्रौपदी के सशक्त चरित्र के माध्यम से इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई थी, इसी तरह हमारे समय की इन प्रतिनिधि लेखिकाओं ने भी उठाई है।
“_समाज में व्याप्त अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने से समाज कलंकित नहीं होता, उस पर पर्दा डालने से होता है। किसी भी समाज में श्रेष्ठ साहित्य की यही भूमिका होती है। आलोचना और प्रतिरोध को साहित्य से निकाल दिया जाए तो हमारे पास केवल चारण साहित्य रह जाएगा। चारण साहित्य से देश मजबूत नहीं, कमजोर होता है।_”_
विश्वप्रसिद्ध लेखिका गायत्री चक्रवर्ती स्पीवाक द्वारा अनूदित महाश्वेता देवी की उत्पीड़न विरोधी रचना को देशविरोधी, हिन्दू विरोधी और अश्लील बताना सेंसरकर्ताओं के मानसिक दिवालिएपन का सूचक है। हिन्दू धर्म का गौरव चीर हरण में नहीं, चीर हरण के विरुद्ध द्रौपदी और कृष्ण के प्रतिरोध में है।
नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट के अध्यक्ष डा ए के भागी औरमहासचिव डा वी एस नेगी ने गत दिनों एक बयान जारी कर दिल्ली विश्वविद्यालय में अकादमिक परिषद के द्वारा अंग्रेजी आनर्स पाठ्यक्रम में किए गए संशोधन और अनुमोदन का स्वागत किया है।
गौरतलब है कि 2019 में कार्यकारी परिषद के द्वारा गठित सक्षम निगरानी समिति ने इस अंग्रेजी पाठ्यक्रम में बहुत कम किंतु सार्थक संशोधन किए हैं।समिति ने सभी संबंधित अकादमिक हितधारकों से परामर्श कर जो सुझाव प्रस्तुत किए उन्हें अकादमिक काउंसिल में उपस्थित सदस्यों ने बहुमत से अपनी स्वीकृति प्रदान की।ज्ञात हो कि कुल 125 सदस्यों में से 87 उपस्थित थे।कुल उपस्थित सदस्यों में केवल 15 सदस्यों ने इन संशोधन के विरोध में अपना मत दिया।यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अंग्रेजी विभाग के कुछेक सदस्यों ने अकादमिक स्वायतता का दुरुपयोग हिंदुत्व को बदनाम करने और खलनायक बनाने,समाज में विभिन्न जातियों के बीच वैमनस्य पैदा करने तथा आदिवासियों और अन्य के बीच हिंसक माओवाद और नक्सलवाद को प्रोत्साहित करने के लिए किया है।कई हितधारकों ने वैधानिक आपत्तियां की।अपने एजेंडे में नाकामयाब होकर लोग राजनीतिक शोर शराबा कर रहे हैं।
कहानी के शीर्षक से लेकर उसमें जिस तरीके से अशिष्ट चित्रण किया गया है उसमें हिंदू धर्म को नीचा दिखाने का क्षुद्र प्रयास है। कहानी की भाषा और विवरण भी आपत्तिजनक हैं।
नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट को वामपंथ के इस झूठ पर आपत्ति है कि दलित साहित्य को हटाया गया है दरअसल पाठ्यक्रम में वे सभी लेखक शामिल हैं जो मूल पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं जिसे अकादमिक परिषद की बैठक में अनुमोदित किया गया था।अंग्रेजी विभाग अध्यक्ष की संस्तुति और सहमति से इस कहानी को रुकैया सखावत हुसैन की सुलताना ड्रीम से प्रतिस्थापित किया गया है।रमाबाई रानाडे के लेखन का उनकी कथित निम्न जाति से न जुड़े होने के कारण वामपंथियों का विरोध उनकी मानसिकता को दर्शाता है।रमाबाई का महिला आंदोलन और महिला सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।उन्होंने सभी जातियों की महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य किया।