अफ़ग़ानिस्तानी सेना और तालिबान के बीच चल रही जंग को कवर करने अफग़ानिस्तान गए न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीक़ी की मौत से हर तरफ मातम है। अमेरिकी सरकार और वहां के सांसदों ने दानिश की मौत पर दुख जताया है। भारत ने दानिश की मौत का मुद्दा संयुक्तराष्ट्र संघ में उठाया है। सूचना प्रसारण मंत्री ने ट्वीट किया है लेकिन इस पर उन्हें कुछ नफ़रती चिंटुओं ने ट्रोल कर दिया। इस बीच आम लोगों की अपेक्षा थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित दानिश की मौत पर ट्वीट कर अपनी शोक संवेदना प्रकट करें।
अमेरिका ने जताया दुख
दानिश की मौत पर अमेरिका के जो बाइडन प्रशासन और वहां के सांसदों ने दुख जताया है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता जलीना पोर्टर ने कहा, हमें यह सुनकर काफी दुख हुआ कि रॉयटर्स के पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत अफगानिस्तान में लड़ाई को कवर करते हुए हुई। उन्होंने कहा, ”सिद्दीकी को उनके काम के लिए जाना जाता था, खासकर दुनिया के लिए सबसे ज़रूरी और चुनौतीपूर्ण समाचारों में उनकी खींची फोटो हेडलाइंस के पीछे की भावनाओं और मानवीय चेहरों को सबके सामने रखती थीं। रोहिंग्या संकट कवरेज के लिए पुलित्जर अवार्ड मिला।”
अमेरिकी सांसदों ने भी जताया अफ़सोस
सीनेटर और अमेरिकी संसद की विदेश मामलों की समिति के रैंकिंग सदस्य जिम रिस्च ने सिद्दीकी की मौत पर दुख जताया। उन्होंने कहा, अफगानिस्तान में तालिबान की कवरेज के दौरान रॉयटर्स के पत्रकार दानिश सिद्दीकी की दुखद मौत हमें उन जोखिमों की याद दिलाती है, जो समाचार शेयर करते वक्त पत्रकार उठाते हैं। किसी भी पत्रकार को अपना काम करते हुए नहीं मारा जाना चाहिए। सीपीजे एशिया प्रोग्राम के कोऑर्डिनेटर स्टीव बटलर ने कहा, रॉयटर्स के फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की मौत एक दुखद सूचना है। भले ही अमेरिका और उसके सहयोगी अफगानिस्तान से सेना वापस बुला लें, लेकिन पत्रकार अपना काम जारी रखेंगे। उन्होंने कहा, लड़ाकों को पत्रकारों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
पुलित्ज़र अवार्ड विजेता थे दानिश
दानिश सिद्दीक़ी पत्रकारिता के क्षेत्र में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुलित्ज़र अवार्ड से सम्मानित थे। लोग उनकी खींची गई तस्वीरों के क़ायल थे। सिद्दीकी ने अपने करियर की शुरुआत एक टीवी पत्रकार के रूप में की थी। 2010 में उन्होंने फोटोजर्नलिज्म में आने का फ़ैसल किया और बतौर इंटर्न अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स से जुड़ गए। सिद्दीक़ी ने तब से मोसुल की लड़ाई (2016-17), अप्रैल 2015 नेपाल भूकंप साथ ही रोहिंग्या नरसंहार से पैदा हुए शरणार्थी संकट को कवर किया। साल 2018 में दानिश ने अपने सहयोगी अदनान आबिदी के साथ रॉयटर्स के लिए खींची गईं रोहिंग्या शरणार्थी संकट की बेहतरीन तस्वीरों के लिए ‘फीचर फोटोग्राफी’ का पुलित्ज़र पुरस्कार जीता। दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित पुरुस्कार जीतने वाले वो पहले और एक मात्र भारतीय थे।
दिल्ली हिंसा में दिखाया आइना
यूं तो दानिश ने दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और यूरोप और हांगकांग में अपनी बेहतरीन फोटोग्राफ़ी के ज़रिए बहुत सी कहानियों को दुनिया के सामने रखा। लेकिन साल 2020 में दिल्ली मे हुई हिंसा और उसके बाद कोरोना महामारी के दौरान दानिश की खींची गई कई तस्वीरों ने दुनिया भर में शोहरत बटोरी। दिल्ली हिंसा के दौरान खींची गई उनकी एक तस्वीर को रॉयटर्स ने 2020 की बेहतरीन तस्वीरों में से एक के माना।
कोरोना काल में बेहतरीन काम
कोरोना काल में दानिश की खींची तस्वीरों से के ज़रिए ही दुनिया को पता चला कि भारत में कोरोना से कितने लोगों का मौत हो रही है। शमशान में लोग अपने परिजनों को अंतिन संस्कार के लिए लाइन लगाए खड़े हैं। शमशान औकर क़ब्रिस्तानों में किस तरह जगह कम पड़ गई है। श्मशान घाटों और कब्रिस्तान से आने वाली तस्वीरों ने लोगों को रुला दिया था। कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों की जलती चिताओं की तस्वीर दानिश सिद्दीकी ने ही अपने कैमरे में कैद थी। दानिश की खींची हुई तस्वीरों को दुनिया के कई प्रतिष्ठित अख़बारों ने भी छापा था।