बिहार भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. पार्टी में खेमेबंदी तेज है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद संजय जायसवाल के कामकाज के तरीकों से बहुत सारे नेता नाराज हैं. कई वरिष्ठ नेताओं ने तो उनके हाल के दिए बयानों पर नाराजगी भी जताई है. वैसे सार्वजनिक तौर पर कोई भी कुछ नहीं बोलता है लेकिन बातचीत में वे इसका खुल कर इजहार करते हैं कि बिहार में हम साझी सरकार चला रहे हैं. नीतीश कुमार की अगुआई वाली सरकार में भाजपा भी शामिल है और उसकी भूमिका बड़ी है और हो सकती है लेकिन वे अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़े करते हैं तो इससे पार्टी की छवि धूमिल होती है. पार्टी नेताओं का मानना है कि सरकार से अगर किसी तरह की नाराजगी है तो मिल-बैठ कर बात करनी चाहिए. सार्वजनिक तौर पर बयान देने से पार्टी की छवि खराब होती है और लोग हम पर भी सवाल उठाते हैं. कई नेताओं ने तो संजय जायसवाल की बौद्धिक समझ पर भी सवाल उठाया. भाजपा के इन नेताओं का मानना है कि सरकार में रहते हुए सहयोगी दलों के साथ किस तरह का व्यवहार करना चाहिए, हमें इसका पता होना चाहिए. उनके हाल के कुछ बयानों से भाजपा नेता असहमत हैं. उनका कहना है कि सिर्फ सुर्खियों के लिए या फिर बयान पर प्रतिक्रिया देना सही नहीं है.
जदयू के संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के बजट पर दिए बयान पर संजय जायासवाल की प्रतिक्रिया को भाजपा नेता सही नहीं मान रहे हैं. वे कहते हैं कु उस बयान में ऐसा कुछ भी नहीं था जिसे लेकर सवाल उठाया जाना चाहिए था. उपेंद्र कुशवाहा ने बजट को ऐतिहासिक बताया था लेकिन यह भी कहा था कि बिहार के नजरिये से हमें बजट से मायूसी हुई है. भाजपा नेताओं ने कहा कि बिहार के निवासी होने के नाते हम तमाम लोग चाहते हैं कि बिहार को बजट में से ज्यादा हिस्सा मिले ताकि हम बिहार का और बेहतर ढंग से विकास कर सकें. उपेंद्र कुशवाहा ने भी इसी नजरिये से अपनी बात कही थी लेकिन संजय जायसवाल ने बिना बयान को देखे या पढ़े अपनी प्रतिक्रिया देकर पार्टी की फजीहत करवाई है. भाजपा नेताओं का मानना है कि बेवजह विवाद खड़ा करने से जदयू का नुकसान कम होगा भाजपा का ज्यादा होगा. इससे पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नाटककार दयाप्रकाश सिन्हा को लेकर भी संजय जायसवाल ने बौद्धिक अपरिपक्वता का परिचय दिया था. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने सिन्हा के सम्राट अशोक को लेकर दिए बयान पर एतराज जताया तो संजय जायसवाल बचाव में आगे आए और तर्क दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपमानित किया जा रहा है. लेकिन जदयू नेताओं ने प्रधानमंत्री से मांग की थी वे सिन्हा का पुरस्कार वापस लें. भाजपा नेता संजय जायसवाल के बयान को हास्यस्पद बताते हैं और कहते हैं कि उनसे यह पूछना चाहिए कि प्रधानमंत्री से किसी तरह की मांग करना उनका अपमान कैसे है. आखिर वे भी तो बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कई तरह की मांग करते रहते हैं तो उन्हें भी ऐसा नहीं करना चाहिए.
दरअसल बिहार में भाजपा में एक विभाजन रेखा साफ दिखाई दे रही है. संजय जायसवाल के खिलाफ एक गुट लगातार सक्रिय है. विधानसभा चुनाव के बाद सुशील मोदी को हाशिए पर रखने की कवायद भाजपा आलाकमान को महंगी पड़ रही है. बिहार में भाजपा जमीन पर कम दिखाई दे रही है, सिर्फ सोशल मीडिया पर दिख रही है और वह भी अपनी ही सरकार की आलोचना करती हुई. पार्टी की सेहत के लिए पार्टी के ज्यादातर नेता इसे सही नहीं मानते हैं. अंदरखाने संजय जायसवाल के खिलाफ आक्रोश है. यह आक्रोश फिलहाल तो सतह पर दिखाई नहीं दे रहा है लेकिन विद्रोह हो सकता है. वैसे यह तो नहीं कहा जा सकता कि संजय जायसवाल की पद से छुट्टी होगी लेकिन उनके कामकाज के तरीके पर पार्टी नेता सवाल उठा रहे हैं. वैसे यूपी चुनाव के बाद दो चीजें हो सकती हैं. पहली राज्यपाल फागू चौहान की बिहार से विदाई. उनके कार्यकाल में बिहार के कई विश्वविद्यालयों के वीसी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. उनके यहां निगरानी ब्यूरो ने छापामारी की और भ्रष्टाचार की गूंज केंद्रीयनेतृत्व तक पहुंची. कहा तो यह जाता है कि इसी वजह से फागू चौहान के बेटे को यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपना उम्मीदवार नहीं बनाया. यूपी चुनाव के बाद बिहार मंत्रिमंडल में फेरबदल तय है. भाजपा कोटे के कई मंत्रियों की छुट्टी होगी. इन मंत्रियों पर कई तरह के आरोप लगे हैं. उनकी नष्क्रियता को लेकर भी आलाकमान तक शिकायत पहुंची है. इस फेरबदल में कई पुराने चेहरों को जगह मिलेगी, जो सुशील मोदी गुट से माने जाते हैं. इंतजार करें.