सुरों की मल्लिका एवं स्वर कोकिला के नाम से विभूषित लता मंगेशकर और जीवन्त पर्यन्त क्रिकेट के एनसाईक्लोपेडिया माने जाने वाले राज सिंह डूंगरपुर के मध्य अंतरंग,गहरे निजी और प्रगाढ़ सम्बन्धों के बारे में मीडिया में कई प्रकार के मनगढ़न्त किस्से कहानियाँ प्रकाशित प्रसारित होती रही हैं लेकिन हकीकत में अधिकृत रुप से कोई भी सही और तथ्यपरक जानकारी कभी भी पर्दे से बाहर नही आई ।
स्वयं लता जी और राजसिंह ने भी सार्वजनिक रूप से अपने सम्बन्धों की कभी कोई व्याख्या नही की और न ही उसे कोई नाम दिया। राज सिंह का जन्म डूंगरपुर राजघराने में महारावल लक्ष्मण सिंह के वहाँ हुआ। वे उनके पुत्रों महिपाल सिंह और जय सिंह के बाद सबसे छोटे पुत्र थे।उनकी प्रारंभिक शिक्षा डूंगरपुर में ही राजघराने के शिक्षक पंडित भट्ट कान्ति नाथ शर्मा की देखरेख में हुई उसके बाद मेयो कोलेज अजमेर और इंदोर आदि में शिक्षा के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए मुंबई पहुँचें।
सिनेमा,संगीत,क्रिकेट और प्रबुद्ध वर्ग ने हमेशा लता जी और राज सिंह के सम्बन्धों की निजता का हमेशा सम्मान किया। दोनों की इस गहरी दोस्ती और पवित्र रिश्तों के कारण लताजी का राजस्थान से गहरा रिश्ता रहा।वे समय-समय पर राजस्थान आई और प्रदेश के मुख्यमंत्रियों हरिदेव जोशी और अशोक गहलोत आदि के साथ लम्बी मुलाक़ातें भी की। राजस्थान के विकास में भी रुचि ली।उन्होंने राज्यसभा सांसद रहते डूंगरपुर के राजकीय अस्पताल का एक विंग बनाने के लिए अपने सांसद कोष से 25 लाख रु भी दिया।
वीणा समूह के अध्यक्ष के सी मालू के अनुसार उनमें राजस्थानी भाषा की इतनी अच्छी समझ थी कि एक बार अपने राजस्थान प्रवास पर पूरे वक्त वे राजस्थानी में ही वार्तालाप करती रही।
लता मंगेशकर और राज सिंह डूंगरपुर का रिश्ता बहुत पवित्र निजी और प्रगाढ़ता से भरा हुआ था। यह एक अनाम रिश्ता था जो जीवन पर्यन्त बना रहा।बहुत कम लोग यह जानते है कि अपने गायन से दुनिया के करोड़ों लोगों को दीवाना बनाने वाली लता स्वयं क्रिकेट की दीवानी थी,तों अपना सारा जीवन और सर्वस्व क्रिकेट को निछावर करने वाले राजसिंह डूंगरपुर संगीत के दीवाने थे।
प्रोफेशनल जिंदगी में जहां लता मंगेशकर ने दिन-दोगुनी, रात-चौगुनी सफलता पाई और स्टारडम बटोरा लेकिन अकल्पनीय शोहरत के बावजूद अपनी निजी जिंदगी में उन्होंने काफ़ी कष्ट और संघर्ष भी झेलें।विशेष कर पिता दीना नाथ जी के निधन के बाद अपने चार भाई बहनों की सार सम्भाल और पारिवारिक जिम्मदारियों को पूरा करने में उन्होंने सारा जीवन शिद्दत से झोंक दिया।
लता मंगेशकर और राजसिंह में कई बातें बहुत कॉमन थी।क्रिकेट के प्रति राजसिंह का जूनून उन्हें डूंगरपुर के राजपरिवार से मुंबई ले आया,यहीं उनकी मुलाकात लता जी के इकलौते भाई ह्दयनाथ मंगेशकर से हुई और उनकी मंगेशकर परिवार से करीबी आगे बढ़ती रही।क्रिकेट के साथ ही संगीत के शौकीन राजसिंह डूंगरपुर को लताजी की आवाज बहुत लुभाती थी।उधर क्रिकेट के प्रति लता मंगेशकर की दिलचस्पी ने राजसिंह को उनसे जोड़े रखा।मुंबई में मेरीन ड्राइव पर ब्रेब्रोन क्रिकेट स्टेडियम और सीसीआई के पास स्थित उनके निवास विजय महल के फलेट में अक्सर दोनों के बीच बातें और मुलाकातें होती थी।उस जमाने में भी मीडिया और धर्मयुग जैसी कई हिंदी अंग्रेज़ी पत्र-पत्रिकाओं में काफी कुछ छपा।दोनों को लेकर कई कहानियां भी बनाई गई लेकिन डूंगरपुर राजपरिवार को नजदीक से जानने वालों के मुताबिक उनका रिश्ता पवित्र था, जिसमें एक दूसरे के व्यक्तित्व के प्रति आकर्षण के साथ नजदीकियां भी थी और उससे भी बढ़ कर सामाजिक बंधनों से परे साथ रहते हुए उनमें एक दूसरे के प्रति सम्मान का भाव ज्यादा था। सार्वजनिक रूप से दोनों के बीच के रिश्तों का कभी किसी ने जिक्र तक नहीं किया,लेकिन दोनों के बीच आत्मीय संबंध कभी छिपे भी नहीं रहें।
लता मंगेशकर को जब भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई थी, तब वह राजसिंह के साथ लंदन में थीं। आधी रात को उनकी भतीजी रचना का फोन आया और बताया कि लताजी को भारत रत्न से सम्मानित किया जा रहा है। राज सिंह के मुताबिक, उस वक्त लता मंगेशकर की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। अगले दिन जब उन्होंने सुबह उठकर लता को चाय बनाकर दी और पूछा कि ‘भारत रत्न’ मिलने पर कैसा लग रहा है तो लता ने कहा था, ‘आप पूछ रहे हैं तो बताती हूं…बहुत अच्छा लग रहा है।’
वो खुशियों में कम लेकिन एक-दूसरे की परेशानियों में ज्यादा साथ खड़े नजर आते थे। प्रख्यात गायक मुकेश के अमरीका में लता जी के साथ एक स्टेज प्रोग्राम के दौरान हार्ट अटेक से असामयिक निधन के वक्त भी राज सिंह उनके साथ ही थे और उस मुश्किल में न केवल सभी को सम्भाला वरन मुकेश जी के पार्थिव शरीर को भारत लाने के प्रबंध भी करायें। राजसिंह डूंगरपुर ने लता मंगेशकर के समाज सेवा से जुड़े कामों में बहुत मदद की। बताते हैं कि राजसिंह डूंगरपुर दीनानाथ मंगेशकर ट्रस्ट पूना से भी जुड़े। साथ ही राजस्थान में भी उनकी रुचि बढ़ी। सन 2001 में राजसिंह और लता मंगेशकर की राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुंबई स्थित सहयाद्रि गेस्ट हाउस में लंबी मुलाकात हुई।उस वक्त वे राजस्थान को लेकर खासी उत्सुकता से बात करती दिखी।राजसिंह डूंगरपुर और लता मंगेशकर दोनों भगवान गणेश में बहुत श्रद्धा रखते थे। राजस्थान के जाने माने लेखक डॉ.धर्मेन्द्र भंडारी की गणेश पर लिखी किताब में खुद लता मंगेशकर ने प्रस्तावना लिखी और अपने हस्ताक्षर किए।
राज सिंह डूंगरपुर और लता मंगेशकर एक दूसरे का काफी सम्मान करते थे और साथ ही दोनों के बीच बहुत ही अच्छी समझ भी थी ।लता जी अपने घर प्रभु कुंज में 1961 में आई और इसी मकान में वह अपने अंतिम समय तक रही।उन्होंने अपने जीवन में बहुत अधिक इज्जत सम्मान शोहरत हासिल की , बावजूद इसके वह सादगी के साथ उसी घर में रही।वे चाहती तो कहीं भी अपना बड़ा सा घर अथवा फ्लैट ले सकती थी पर वह प्रभु कुंज में ही रही।उन्होंने कभी पैसे को महत्व नहीं दिया।ठीक इसी तरह राजसिंह डूंगरपुर ने भी कभी पैसे को महत्व नहीं दिया और अपना पूरा जीवन सादगी से व्यतीत किया।
राजसिंह डूंगरपुर और लता मंगेशकर का एक दूसरे के पूरक बने। उनकी मित्रता बहुत गहरी थी। जब राज सिंह की तबीयत बहुत खराब थी तब लता जी उन्हें दीना नाथ मंगेशकर हॉस्पिटल पुणे में ले जाकर काफी समय तक उनका इलाज कराया और लता जी ने पर्सनली उनकी देखभाल की। वे उनकी तबीयत को मॉनिटर किया करती थी। जब भी राजसिंह की तबीयत ठीक नहीं रहती लताजी उन्हें अपने पिता के नाम बने अस्पताल में ही इलाज कराने ले जाती थी। राज सिंह डूंगरपुर के अंतिम दिनों में जब वह किसी को पहचान भी नहीं पाते थे, उस दौरान भी लता मंगेशकर ने उन्हें पुणे शिफ्ट कर उनकी काफी देखभाल की थी। दोनों को करीब से जानने वालों की राय में राजसिंह डूंगरपुर और लता मंगेशकर के बीच कुछ अनकहा नहीं था लेकिन अपनी-अपनी पारिवारिक विरासत को संजोए उन्होंने अपने रिश्ते को अलग रूप में ही संजोया और हमेशा एक दूसरे से जुड़े रहे। दोनों के किरदार नायाब थे।क्रिकेट और फिल्म बिरादरी सहित सभी वर्गों के लोग उनके नजदीकी संबंधों को उसी गरिमा के साथ देखते थे। जिस रूप में इन दोनों महान हस्तियों ने ताउम्र अपने सम्बन्धों को निभाया और आए दिन मीडिया में आने वाले मनगढंत किस्सों से परे मर्यादित ढंग से जीवन निर्वाह किया।
राजसिंह डूंगरपुर और लता मंगेशकर को करीब से जानने वाले उनके पाक साफ रिश्तों की महक को आज भी अपनी यादों में संजोए हुए हैं।
——
(लेखक गोपेंद्र नाथ भट्ट के पिता पंडित भट्ट कान्ति नाथ शर्मा राज सिंह डूंगरपुर के प्रारम्भिक शिक्षक और उनके पिता महारावल लक्ष्मण सिंह के सचिव रहे)