21 जून, 2021
लखनऊ: देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में इस समय पत्रकार और पत्रकारिता दोनो संकट के दौर से गुज़र रहे हैं।आलोचनात्मक ख़बरें लिखने वाले पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर शिकंजा कसा जा रहा है।हाल में ही प्रदेश में कई मीडिया संस्थानो के विरुद्ध मुक़दमे दर्ज हुए हैं।इसमें में ज़्यादातर “डिजिटल मीडिया” प्लाट्फ़ोर्म हैं।
प्रदेश में पत्रकारों पर न सिर्फ़ ख़बर लिखने के लिए बल्कि सोशल मीडिया पोस्ट के लिए भी मुक़दमे दर्ज किए गये हैं।एक पत्रकार को सोशल मीडिया पर व्यंग्य करने के लिए,जेल तक जाना पड़ा था।मीडियाकर्मियों को रिपोर्टिंग करते समय भी डराया धमकाया गया।
ताज़ा मामला राजधानी लखनऊ में पड़ोसी ज़िले बाराबंकी का है। जहाँ पुलिस में ग़रीब नवाज मस्जिद (राम सनेही घाट) के कथित विध्वंस के मुद्दे पर ख़बर चलाने के मामले में “द वायर” और उसके से जुड़े दो पत्रकारों के ख़िलाफ़ 24 जून मुक़दमा दर्ज किया है।
पत्रकार सिराज अली और मुकुल चौहान के ख़िलाफ़ मस्जिद के विध्वंस के बारे में एक वीडियो रिपोर्ट बनाने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी)की धारा 153, 153 ए, 120-बी और 501 (1) बी के तहत अपराध के लिए एफआईआर दर्ज की गई है।
आरोप है कि पत्रकारों ने जानबूझकर ‘समाज में वैमनस्य फैलाने’ और ‘सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने’ के लिए एक ‘अवैध इमारत’ (मस्जिद) को कानूनी रूप से गिराए जाने के संबंध में वीडियो ट्विटर पर अपलोड किया।
बिजनौर पुलिस ने वरिष्ठ पत्रकार विनीत नारायण के ख़िलाफ़ आईपीसी और आईटी एक़्ट की क़रीब 18 धाराओं के तहत 21 जून मुक़दमा दर्ज किया है। यह मुक़दमा राम मंदिर निर्माण के लिए बनाए गए श्री राम मंदिर निर्माण तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के भाई संजय बंसल की शिकायत पर दर्ज किया गया है।उन पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने चंपत राय पर झूठे आरोप लगाए हैं, और ऐसा कर के करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं को चोट पहुंचाई है।
इस से पहले ग़ाज़ियाबाद में 15 जून, को एक मुस्मिल बुजुर्ग से मारपीट और दाढ़ी काटे जाने के बारे में ट्वीट करने पर,पत्रकारों के ख़िलाफ़ मुक़दमा लिखा गया है। इन सभी पर “सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने” का आरोप है।
इसी घटना पर ट्वीट करने के मामले में पत्रकार राना अय्यूब, सबा नक़वी और मोहम्मद ज़ुबैर को आरोपी बनाया गया है। इसके अलावा ऑनलाइन न्यूज़ “द वायर” के ख़िलाफ़ भी संगीन धराओं में मुक़दमा दर्ज हुआ। इस प्रकरण में ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 153 (दंगा भड़काना), 153 ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 295 ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से काम करना), 505 (शरारत), 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत एफ़आईआर दर्ज की गई है।
इन मामलों पर अपने बायान में कहा है कि सरकार चाहती है कि उसके बयानो के अलावा, जो भी ख़बर मीडिया में आये उसको अपराध की श्रेणी में ले आया जाये।
इतना ही नहीं मीडियाकर्मियों को मार-पीट का सामना भी करना पड़ रहा है। सिद्धार्थनगर में मई में सत्तारूढ़ बीजेपी के एक विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह और एसडीएम त्रिभूवन सिंह की कथित मौजूदगी में, एक बड़ी भीड़ ने,हिन्दी चैनल के पत्रकार अमीन फ़ारूक़ी को पहले धमकाया और फिर जमकर मारा था।
लेकिन अजीब बात यह हुई कि, आरोपियों के साथ पत्रकार के विरुद्ध भी मुक़दमा लिखा गया। प्राप्त समाचार के अनुसार अमीन फ़ारूक़ी ने कोविड-19 की दूसरी लहर में दौरान,ज़िले में हो रहे कुप्रबंधन पर सवाल किया था। अमीन फ़ारूक़ी का आरोप है की उसको विधायक और एसडीएम के इशारे पर मारा गया था।
लेकिन छोटे-छोटे आरोपो में मीडियाकर्मियों पर मुक़दमे लिखने वाली पुलिस, पत्रकारों को सुरक्षा देने में असफ़ल है।एबीपी न्यूज़ के पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव की लाश 13 जून को संग्धित हालत में प्रतापगढ़ में मिली।पत्रकार मौत के मामले में उनकी पत्नी ने हत्या की आशंका जताई है।सुलभ की पत्नी रेणुका ने कहा कि उनके पति के पीछे शराब माफिया पड़े हुए थे।उन्होंने कहा कि उनके पति ने पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को एक पत्र लिखकर, अपनी सुरक्षा को ख़तरा बताया था।
लेकिन ऐसा नहीं है की पत्रकारों का उत्पीड़न के यह पहले मामले हैं।यह सिलसिला लगातार कई वर्षों से चल रहा है।पिछले वर्ष “स्क्रॉल” की सम्पादक सुप्रिया शर्मा पर 13 जून, 2020 में वाराणसी में इस आरोप में मुक़दमा हुआ की उन्होंने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गोद लिए गए डोमारी गाँव, वाराणसी में लॉकडाउन-01 के दौरान भुखमरी पर ख़बर दिखाई।उन पर आरोप लगा कि ख़बर निराधार थी।
“मिड-डे मील” में घोटाले की ख़बर दिखाने पर मिर्ज़ापुर के युवा पत्रकार पवन जयसवाल पर 31अगस्त 2019, को मुक़दमा किया गया।प्रशासन, पवन से इस बात पर नाराज़ था, कि उन्होंने प्रिंट मीडिया के पत्रकार होते हुए, ख़बर का विडियो क्यूँ बनाया।
स्वतंत्र पत्रकार प्रशांत कनौजिया को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर व्यंगपूर्ण टिप्पणी के आरोप में जेल भेज दिया गया था।हाथरस कांड की रिपोर्टिंग के लिए केरल से आए पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन अभी भी प्रदेश एक जेल में बंद हैं।
मुख्यमंत्री के एक कार्यक्रम पर ट्वीट करने के लिए वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन को अयोध्या (फ़ैज़ाबाद) पुलिस ने पिछले वर्ष लॉकडाउन के समय सम्मन भेज के तलब किया था , इस मामले में उनको अदालत से राहत मिली थी।
प्रदेश में पत्रकारों पर हो रही कार्यवाहीयों के विरुद्ध एक पत्र 2020 में “एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया” ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजा था।पत्र में मुख्यमंत्री से पत्रकारों की सुरक्षा और अधिकरों को लेकर मिलने के लिए समय भी माँगा था।गिल्ड के सचिव संजय कपूर ने बताया कि मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा आज तक न पत्र का जवाब भेजा गया और न पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल को मिलने का समय मिला है।
उल्लेखनीय है कि 25 जनवरी 2021 को कानपुर देहात में तीन स्थानीय पत्रकारों मोहित कश्यप, अमित सिंह और यासीन अली के ख़िलाफ़ मुक़दमे दर्ज हुए।बिजनौर में दबंगों के डर से वाल्मीकि परिवार के पलायन करने संबंधी ख़बर के मामले में, 7 सितंबर 2020 में पांच पत्रकारों आशीष तोमर, शकील अहमद, लाखन सिंह, आमिर ख़ान तथा मोइन अहमद के ख़िलाफ़ मामला दर्ज हुआ।
आज़मगढ़ के एक स्कूल में छात्रों से झाड़ू लगाने की घटना को रिपोर्ट करने वाले पत्रकार संतोष जायसवाल समेत छह पत्रकारों के ख़िलाफ़, 10 सितंबर, 2019 को मुक़दमा दर्ज हुआ। इसके अलावा 16 सितंबर, 2020 को सीतापुर में रवींद्र सक्सेना- क्वारंटीन सेंटर पर बदइंतज़ामी की ख़बर दिखाने के विरुद्ध, मामला दर्ज हुआ।
बता दें कि भारत,प्रेस की स्वतंत्रा के मामले में, वर्ल्ड प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स 2021 में, 180 में से 142वें स्थान पर आ गया है।
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी के अनुसार सरकार पत्रकारों पर सीधे अपराधी होने का आरोप लगा रही है। यह बिल्कुल ग़लत है। त्रिपाठी के अनुसार अगर किसी ख़बर पर आपत्ति है तो उसकी शिकायत, संपादक या प्रेस काउन्सिल से की जाती है, न की सीधा मुक़दमा लिखा जाता है।
–इंडिया न्यूज़ स्ट्रीम