जलवायु परिवर्तन से कॉफी, बादाम और टमाटर की फसल सर्वाधिक प्रभावित

नयी दिल्ली, 17 मार्च (आईएएनएस)| वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में सर्वाधिक प्रभाव कॉफी,बादाम और टमाटर की फसल पर पड़ रहा है। इटली यूरोप का सबसे बड़ा टमाटर उत्पादक है और वह हर साल औसतन 60 से 70 लाख मीट्रिक टन टमाटर की आपूर्ति करता है।

गत साल लेकिन उत्तरी इटली में टमाटर की फसल में 19 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी और इसमें और अधिक कमी आने की आशंका है।

इटली में जलवायु के कारण ऐसा हो रहा है। एक समय यहां का गर्म मौसम टमाटर की फसल के लिये बिल्कुल उपयुक्त था लेकिन अब यहां सर्दी पड़ रही है और साथ ही बारिश की आशंका भी बनी रहती है।

मौसम के ठंडा होने से टमाटर की फसल देर से पकती है और वर्ष 2019 में ऐसी हालत हो गयी थी कि मात्र आधी फसल ही समय पर तैयार हो पायी थी।

अगर ऐसी ही स्थिति आगे भी बनी रही तो जल्द ही सुपरमार्केट में टमाटर की किल्लत होने लगी जिससे इसके दाम बढ़ जायेंगे।

बीमा कंपनी सीआईए लैंडलॉर्ड के शोध के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर पांच फसलों पर पड़ता है, जिनमें से टमाटर भी एक है। टमाटर के अलावा, बादाम, कॉफी, हेजलनट और सोयाबीन की फसल पर जलवायु परिवर्तन का अधिक असर होता है।

इटली में वनक्षेत्र भी हाल के वर्षो में घटा है क्योंकि इटली में चमड़े के लिये गायों को पाला जाता है और गाय के लिये चारागाह जरूरी है। इन्हीं चारागाहों के लिये जंगलों की कटाई की जाती है।

जंगल की कटाई होने से हवा में ऑक्सीजन और कार्बन डाइ ऑक्साइड का संतुलन बिगड़ जाता है। प्रदूषित हवा न सिर्फ श्वसन संबंधी परेशानियों को अधिक कर देती है बल्कि इससे स्वस्थ व्यक्ति को भी सांस की तकलीफ होने लगती है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि वर्ष 2040 तक इंसानों के पास समय है कि वे जलवायु परिवर्तन के इस चक्र को बदलें क्योंकि उसके बाद कुछ भी हमारे हाथ में नहीं होगा।

कैलिफोर्निया दुनिया के बादाम के निर्यात का 80 प्रतिशत हिस्सा उगाता है और इसका कारोबार छह अरब डॉलर का है।

हालांकि, बादाम को उगाने की प्रक्रिया लंबी होती है और इसके लिए शारीरिक और मानवीय दोनों तरह की ऊर्जा की बहुत अधिक आवश्यकता होती है।

कैलिफोर्निया 60 प्रतिशत मधुमक्खी के छत्तों का उपयोग केवल बादाम परागण के लिये प्रत्येक सर्दियों में करता है और मधुमक्खियों के परिवहन की लागत और उन्हें कोल्ड स्टोरेज में रखने का मतलब है कि बादाम उत्पादन में कार्बन उर्त्सजन अधिक होता है।

बादाम को सभी सूखे मेवों में सबसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है। बादाम का दूध बनाने के लिये मात्र एक बीज को आवश्यक आकार तक पहुंचने के लिये 3.2 गैलन पानी की आवश्यकता होती है।

बादाम के दूध की लोकप्रियता बढ़ी है। यह डेयरी विकल्प के रूप में लिया जा रहा है। पौधा आधारित दूध बाजार में इसकी हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है।

हालांकि, पूरे कैलिफोर्निया में सूखे के कारण किसान अपने बागों को छोड़ रहे हैं क्योंकि उन्हें बनाये रखने के लिये पर्याप्त पानी का जुगाड़ मुश्किल से हो रहा है।

सूखे का मतलब यह भी है कि किसानों को विभिन्न कीटनाशकों को बादाम पर डालना पड़ रहा है, जिनमें से कुछ मधुमक्खियों के लिये घातक हैं और मधुमक्खियां पहले से ही लुप्तप्राय प्रजाति हैं।

इनके कारण कैलिफोर्निया में हरियाली और फूलों की संख्या में गिरावट देखने को मिल सकती है। मधुमक्खियां ही परागण कर सकती हैं और इसी वजह से इन पर भी इसका असर हो रहा है।

यही हाल सोयाबीन का है। ब्राजील में मौसम गर्म और शुष्क होता जा रहा है लेकिन सोयाबीन गर्म और नम जलवायु में सबसे अच्छी तरह से होता है। किसानों को यह तय करना होगा कि अब वे इस फसल को कैसे उगाते हैं।

विभिन्न कीटनाशकों का उपयोग करके और पौधों को अलग-अलग जलवायु के प्रति अधिक सहिष्णु बनने के लिये मजबूर करके, किसान सोयाबीन के उत्पादन की मात्रा को प्रभावी ढंग से बढ़ाने में सक्षम हुये हैं।

हालांकि, यह टिकाऊ उपाय नहीं है क्योंकि इस प्रकार जलवायु खराब होती रहेगी। इसी वजह से यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2050 तक सोयाबीन का उत्पादन 86-92 प्रतिशत कम हो जायेगा।

सोयाबीन के पौधों को भी बहुत अधिक जगह की आवश्यकता होती है और इसके लिये पूरे ब्राजील में वनों की कटाई की गयी है। यह अमेजन के जंगलों में सबसे अधिक हुआ है, जहां फसलों के लिये जगह बनाने के लिये बड़े पैमाने पर आग जलायी गयी। वैज्ञानिकों ने इसी वजह से चेतावनी दी है कि ये वन अब कार्बन डाइ ऑक्साइड के अवशोषण की तुलना में उसका अधिक उर्त्सजन करते हैं।

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है, यह एक वैश्विक समस्या है क्योंकि हम दुनिया की छह प्रतिशत ऑक्सीजन आपूर्ति प्रदान करने और कार्बन को वायुमंडल से बाहर रखने के लिये अमेजन के जंगहों पर ही पर निर्भर हैं। अगर हम इस स्थान को नष्ट करना जारी रखते हैं तो हमारे ग्रह की वायु गुणवत्ता में कमी आयेगी और ग्लोबल वामिर्ंग तेज हो जायेगी।

यह तापमान में बढ़ोतरी, बदलते वर्षा पैटर्न, जैव विविधता और कृषि में दुनिया भर में गिरावट के रूप में सामने आयेगा।

सीआईए लैंडलॉर्ड के शोध के अनुसार, ब्राजील में अगले कुछ वर्षों में कॉफी उत्पादन में 76 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है क्योंकि देश में शुष्क जलवायु हो रही है।

कॉफी के पौधे नम, उष्णकटिबंधीय जलवायु में सबसे अच्छे तरीके से बढ़ते हैं ,जहां मिट्टी और तापमान लगभग 21 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।

जलवायु परिवर्तन के कारण ब्राजील की हवा शुष्क हो रही है, जिससे कॉफी बीन उत्पादन में गिरावट आ रही है। दूसरी तरफ इटली अपने बढ़ते तापमान के कारण जल्द ही देश की पसंदीदा बीन का उत्पादन करने उम्मीद कर रहा है।

–आईएएनएस

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