श्रीनगर/नई दिल्ली, 27 जुलाई (आईएएनएस)| हिंसा, जो कभी भी कश्मीरियत का हिस्सा नहीं रही, वह जम्मू-कश्मीर में दैनिक वास्तविकता बन गई है। यह बात राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने मंगलवार को यहां युवा पीढ़ी से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की समृद्ध विरासत से सीखने का आग्रह करते हुए कही। उन्होंने कहा कि उनके पास यह जानने का हर कारण है कि कश्मीर हमेशा शेष भारत के लिए आशा की किरण रहा है। इसके आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव की छाप पूरे देश में है।
राष्ट्रपति श्रीनगर में कश्मीर विश्वविद्यालय के 19वें वार्षिक दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे।
राष्ट्रपति ने कहा कि कई कवियों ने इसे धरती पर स्वर्ग कहते हुए इसकी सुंदरता की प्रशंसा की है, लेकिन यह अंतत: शब्दों से परे है। प्रकृति की इस उदारता ने ही इस स्थान को विचारों का केंद्र भी बनाया है। बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरी यह घाटी कुछ सहस्राब्दियों पहले ऋषियों और संतों के लिए एक आदर्श स्थान प्रदान करती थी।
कोविंद ने कहा कि कश्मीर के योगदान का उल्लेख किए बिना भारतीय दर्शन का इतिहास लिखना असंभव है। ऋग्वेद की सबसे पुरानी पांडुलिपियों में से एक कश्मीर में लिखी गई थी।
उन्होंने कहा कि दर्शन के समृद्ध होने के लिए यह सबसे अनुकूल क्षेत्र है। यहीं पर महान दार्शनिक अभिनवगुप्त ने सौंदर्यशास्त्र और ईश्वर की प्राप्ति के तरीकों पर अपनी व्याख्याएं लिखीं। कश्मीर में हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म का विकास हुआ, जैसा कि बाद की शताब्दियों में इस्लाम और सिख धर्म के यहां आने के बाद हुआ।
उन्होंने कहा कि कश्मीर विभिन्न संस्कृतियों का मिलन स्थल भी है।
राष्ट्रपति ने कहा, मध्ययुगीन काल में, वह लाल देड ही थे, जिन्होंने विभिन्न आध्यात्मिक परंपराओं को एक साथ लाने का मार्ग दिखाया। कश्मीर की कवयित्री का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि लल्लेश्वरी की कृतियों में आप देख सकते हैं कि कैसे कश्मीर सांप्रदायिक सद्भाव और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का खाका पेश करता है।
उन्होंने कहा कि यह यहां के जीवन के सभी पहलुओं में, लोक कलाओं और त्योहारों में, भोजन और पोशाक में भी परिलक्षित होता है। इस जगह की मूल प्रकृति हमेशा समावेशी रही है।
इस भूमि पर आने वाले लगभग सभी धर्मों ने कश्मीरियत की एक अनूठी विशेषता को अपनाया जिसने रूढ़िवाद को त्याग दिया और समुदायों के बीच सहिष्णुता और आपसी स्वीकृति को प्रोत्साहित किया।
दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को कहा कि हिंसा कभी भी कश्मीरियत का हिस्सा नहीं रही। यह दुर्भाग्यपूर्ण था कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की इस उत्कृष्ट परंपरा को तोड़ा गया। हिंसा एक वायरस की तरह है, जो शरीर पर हमला करता है।
उन्होंने कहा, अब इस भूमि की खोई हुई महिमा को वापस पाने के लिए एक नई शुरूआत और ²ढ़ प्रयास है।
राष्ट्रपति ने कहा कि उनका ²ढ़ विश्वास है कि लोकतंत्र में सभी मतभेदों को समेटने की क्षमता है। कश्मीर खुशी से पहले से ही इस ²ष्टिकोण को साकार कर रहा है।
इस तथ्य की ओर इशारा करते हुए कि 19वें दीक्षांत समारोह में डिग्री प्राप्त करने वालों में कश्मीर विश्वविद्यालय की लगभग आधी विद्यार्थी महिलाएं हैं और 70 प्रतिशत स्वर्ण पदक विजेता भी महिलाएं हैं, राष्ट्रपति ने कहा कि यह केवल संतोष की बात नहीं है, बल्कि हमारे लिए गर्व की भी बात है कि हमारी बेटियां हमारे बेटों के समान स्तर पर प्रदर्शन करने के लिए तैयार हैं और कभी-कभी इससे भी बेहतर प्रदर्शन के लिए भी तैयार हैं।
उन्होंने कहा कि यह समानता और क्षमताओं में विश्वास ही है, जिसे सभी महिलाओं के बीच पोषित करने की आवश्यकता है, ताकि हम सफलतापूर्वक एक नए भारत का निर्माण कर सकें। एक ऐसा भारत जो राष्ट्रों के समूह में सबसे आगे हो। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे मानव संसाधन और बुनियादी ढांचे का निर्माण इस उच्च आदर्श की ओर कदम बढ़ा रहा है।