शराबबंदी पर मुख्यमंत्री की खरी-खरी, पीयोगे तो मरोगे, नीतीश के रुख से भाजपा सकते में

कभी पंकज उधास की गाई गजल शराब चीज ही ऐसी है न छोड़ी जाए खूब मशहूर हुई. बिहार में भी इस गजल के कद्रदां कम नहीं हैं. बहुत सारे लोग इसे गुनगुनाते भी हैं. लेकिन इस गुनगुनाने में मायूसी भी है और शराब न मिलने की कसक भी. बिहार में शराबबंदी है और लोग इसे गुनगुना जरूर लेते हैं लेकिन मुख्यमनंत्री नीतीश कुमार ने अब साफ कर दिया है कि बिहार में शराबियों की खैर नहीं. उन्होंने बहुत ही साफ शब्दों में कहा-शराब पीयोगे तो मरोगे. हालांकि मुख्यमंत्री की इस साफगोई को लेकर विपक्ष निशाना साध रहा है तो भाजपा सकते में है. पीयोगे तो मरोगे के बयान को विपक्ष अमर्यादित व संवेदनहीन मान रहा है. कोई मुख्यमंत्री अपने प्रदेश के लोगों के लिए इस कद्र निर्मम कैसे हो सकता है, यह सवाल उठाया जा रहा है.

लेकिन नीतीश कुमार शराबबंदी के फैसले पर न सिर्फ अडिग हैं बल्कि जिस तल्ख तेवर में उन्होंने पीयोगे तो मरोगे की बात सार्वजनिक तौर पर कही, उससे भाजपा में नाराजगी तो है लेकिन नीतीश कुमार की फितरत से वह वाकिफ है. भाजपा को पता है कि नीतीश कुमार पर किसी तरह का दबाव नहीं डाला जा सकता है. बिहार में भाजपा लगातार अपने एजंडे को लागू करने की कोशिश में लगी है लेकिन नीतीश कुमार के सामने उनकी नहीं चल पा रही है. शराबबंदी को लेकर भी कमोबेश यही हाल है. जहरीली शराब से हुई मौतों के बाद भाजपा ने नीतीश कुमार से शराबबंदी पर समीक्षा की बात कही थी. नीतीश कुमार ने समीक्षा तो की लेकिन समीक्षा अपने तरीके से की, वैसी नहीं जैसी भाजपा चाहती थी. समीक्षा से एक दिन पहले पीयोगे तो मरोगे जैसा साफ संदेश देकर उन्होंने अपने इरादे भी जाहिर कर दिए थे. भाजपा को उनकी यह साफगई रास नहीं है आई लेकिन चुप्पी साधने के अलावा उसके पास कोई और रास्ता नहीं है.

बिहार में शराबबंदी को लेकर भाजपा का रवैया नर्म रहा है. भाजपा शराबबंदी के पक्ष में कतई नहीं है. लेकिन वह सरकार में शामिल है इसलिए खुल कर विरोध भी वह नहीं जता पा रही है लेकिन पार्टी नेताओं ने समय-समय पर अपने बयानों से नीतीश कुमार पर दबाव बनाने की कोशिश लगातार की है. यह अलग बात है कि नीतीश कुमार भाजपा नेताओं के तर्क से न पहले समहत थे और न अब. जहरीली शराब से हुई मौतों के बाद भाजपा ने नीतीश कुमार पर फिर दबाव बनाया था. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद संजय जायसवाल ने नीतीश कुमार से शराबबंदी की समीक्षा करने को कहा था. राजग के एक और घटक जीतनराम मांझी ने भी इसी तरह की मांग की थी. वे भी शराबबंदी के पक्ष में नहीं हैं.

नीतीश कुमार ने पांच साल पहले बिहार में शराबबंदी कानून लागू की थी, तब भाजपा और जीतनराम मांझी सरकार का हिस्सा नहीं थे. तब राजद के साथ नीतीश कुमार सरकार चला रहे थे. नीतीश कुमार के शराबबंदी कानून की मुखालफत करने की हिम्मत न तो तब तेजस्वी यादव या यूं कहें कि लालू यादव ने की और न ही उस वक्त विपक्ष में रही भाजपा ने. शराबबंदी को लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए नीतीश कुमार ने दो बार मानव कतार बना कर बिहार में शराब के खिलाफ अलख जगाने की कोशिश की. हालांकि यह भी सच है कि कानून बनने के बावजूद बिहार में शराब बेची-खरीदी तो जा ही रही है गांव-कस्बों में शराब बनाई भी जा रही है.

स्थानीय प्रशासन की छत्रछाया में यह एक बड़ा उद्योग बन गया है, जिसमें बेइंतहा पैसा है. कानून में झोल है. उस झोल का फायदा शराब माफिया उठा रहे हैं. यह भी सही है कि सियासी दलों में इसे लेकर एक राय नहीं है. कई दल बिहार में शराबबंदी कानून खत्म करने के पक्ष में हैं, इनमें भाजपा भी शामिल है. है तो यह सामाजिक मुद्दा, जिसे नीतीश कुमार ने अपना सियासी हथियार बना डाला है. बिहार की महिलाओं में नीतीश कुमार की छवि इस कानून की वजह से काफी बेहतर बनी. इसका फायदा उन्हें लगातार चुनाव में मिल रहा है. भाजपा भी इस खेल को समझती है और राजद भी. इसलिए विरोध तो दोनों करते हैं लेकिन मुखर विरोध की हिम्मत न तो राजद जुटा पाता है और न ही भाजपा. राजद ने तो पिछले चुनाव के वक्त कहा था कि उसकी सरकार बनी तो कुछ शर्तों के साथ शराबबंदी खत्म कर दिया जाएगा.

जहरीली शराब से हुई मौतों के बाद भाजपा को उम्मीद थी कि नीतीश कुमार उसकी मांग पर तवज्जो देंगे और कुछ ऐसा करेंगे जिससे उसकी साख बच जाएगी. लेकिन नीतीश कुमार ने भाजपा को झटका दिया. जाहिर है कि नीतीश कुमार के इस फैसले से भाजपा को उबरने में समय लगेगा. नीतीश कुमार ने शराबबंदी की समीक्षा की, लेकिन जो फैसले लिए, वह भाजपा को और चुभेंगे. समीक्षा से एक दिन पहले नीतीश कुमार ने जिस तल्ख तेवर में यह कहा कि शराबबंदी कानून खत्म नहीं होगा, पीयोगे तो मरोगे, उससे ही समझा जा सकता है कि वे अपने फैसले पर कितनी मजबूती से डटे हुए हैं. भाजपा को उनका तेवर रास नहीं आया होगा. इस तरह का बयान शायद ही किसी मुख्यमंत्री ने इससे पहले कभी दिया हो. नीतीश कुमार का साफ कहना है लोगों को शराब नहीं पीनी चाहिए. हमने कानून बनाया है तो इसका पालन लोगों को करना होगा. जो नहीं मानेंगे तो शराब उन्हें लील लेगी.

शराबबंदी पर उन्होंने बैठक की. फिर फैसले लिए. उन फैसलों में उनका इरादा साफ झलकता है. उन्होंने भाजपा को भी संकेत दिया कि वह किसी तरह के दबाव में आने वाले नहीं. नीतीश कुमार ने अधिकारियों को संदेश भी दिया और निर्देश भी. शराबबंदी कानून लागू कराने के लिए नीतीश कुमार ने उन केके पाठक को जिम्मेदारी सौंप दी है, जो इस कानून के एकतरह से सूत्रधार रहे हैं. अब उन्हें उत्पाद व मद्य निषेध विबाघ का अपर सचिव बना कर केंद्र की प्रतिनियुक्ति से वापस बुला लिया गया है. वे सख्त अधिकारी के तौर पर जाने जाते हैं और नीतीश कुमार के खास हैं. नीतीश ने अधिकारियों से साफ कहा कि वे इस मानसिकता के साथ काम करें कि न राज्य में न शराब आने देंगे और न किसी को पीने देंगे. शराब के धंधे व शराब के सेवन में लिप्त किसी भी व्यक्ति पर कठोरता से कार्रवाई करने की खुली छूट दी तो प्रशासन तंत्र को विकसित करने और उन्हें चुस्त-दुरुस्त बनाने पर जोर दिया ताकि शराबबंदी कानून का मखौल न बने.

मैराथन बैठक चली. करीब सात घंटे. सरकार ने कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए. हालांकि कुछ फैसले ऐसे भी हैं जिससे सरकार की किरकिरी हो सकती है. दूसरे राज्यों से शराब की तस्करी किन रास्तों से हो रही है इसे चन्हित करने की बात कही गई. यह हास्यास्पद है. पुलिस और प्रशासन को सब पता होता है तो फिर से चिन्हित करने का पाखंड क्यों. जिन रास्तों से शराब लाई-ले जाती है वे रास्ते न तो नए हैं और न ही पुलिस उनसे अनजान. खेल पैसे का चलता है और खुला खेल फर्रूखाबादी है. शराब माफिया के साथ सांठगांठ होता है और कई बार बड़ी खेप को पार कराने के लिए छोटी खेप को पकड़वा भी दिया जाता है. लेकिन अब पाखंड यह है कि तस्करी के रास्तों को चिन्हित करने की बात की जा रही है. खुफिया तंत्र को और बेहतर बनाने पर जोर दिया गया ताकि शराब की होम डिलेवरी के खिलाफ बड़ा अभियान शुरू किया जाए. लेकिन किस थाने की पुलिस को नहीं पता होता है कि कहां और कैसे शराब बेची-पहुंचाई जा रही है.

मुख्यालय स्तर पर डीजीपी, गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव व मद्य निषेध विभाग के अधिकारियों को कहा गया कि वे नियमित समीक्षा करें कि शराबबंदी को लेकर जो निर्देश दिए गए हैं उसका पालन हो रहा है या नहीं. बैठक में इस मुद्दे पर भी विमर्श हुआ कि कई थाना क्षेत्रों में तीन-चार सालों से शराबबंदी के मामले में किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई. मुख्यमंत्री ने यह निर्देश दिए कि ऐसे थानों को चिह्नित किया जाए और थानेदारों के खिलाफ कार्रवाई की जाए. यह निर्देश भी दिया गया कि अगर कोई सरकारी कर्मी शराब के धंधे में लिप्त पाया जाता है तो उसकी नौकरी जाएगी. यह बड़ा फैसला है. पुलिस अधिकारियों का नपना जरूरी है. नौकरी पर खतरा होगा तभी शराबबंदी को लेकर वे मुस्तैद रहेंगे. अभी तो महज खानापुरी हो रही है. ले-दे कर शराबबंदी के नाम पर बड़ा खेल हो रहा है

जिलों के प्रभारी सचिव भी अब शराबबंदी की समीक्षा करेंगे. आम तौर पर जिलों के प्रभारी सचिव मुख्य रूप से संबंधित जिलों में चल रही विकास व सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं की समीक्षा करते रहे हैं. लेकिन अब यह तय पाया कि प्रभारी सचिव विकास योजनाओं के साथ-साथ शराबबंदी की भी समीक्षा करेंगे. नीतीश कुमार ने अपने मंत्रियों को भी इस काम में लगा दिया है. शराबबंदी कानून बिहार में प्रभावी नहीं है तो इसकी वजह पुलिस और शराब माफिया का गठजोड़ है. इस गठजोड़ को खत्म कर पाना सरकार की बड़ी चुनौती है. इस गठजोड़ को सरकार अगर खत्म कर पाती है तो फिर नीतीश कुमार की बल्ले-बल्ले है. खतरे और चुनौतियां भी हैं लेकिन अगर बिहार में शराबबंदी कानून को प्रभावी बनाना है तो सरकार को और सख्त कदम उठाने होंगे. उसे सिर्फ सख्त दिखना ही नहीं होगा, सख्त बनना भी होगा.

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