करनाल के किसान आंदोलन से आख़िर क्या हुआ हासिल ?

करनाल में किसानों और हरियाणा सरकार के बीच समझौता हो गया है। संयुक्त किसान मोर्चा और करनाल ज़िला प्रशासन ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस करके यह जानकारी दी। समझौते को देखकर लगता है कि दोनों ही पक्ष थोड़ा थोड़ा झुके हैं। एक बात और साफ़ हुई की किसान नेता और हरियाणा सरकार दोनों ही इस आंदोलन को लंबा नहीं खींचना चाहते थे।

माँगें जो मानी गईं
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किसान नेता और करनाल आंदोलन के सूत्रधार गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने शनिवार को कहा कि हमारी माँगों पर सहमति बनने के बाद हम इस आंदोलन को ख़त्म करने की घोषणा करते है। हरियाणा सरकार ने वादा किया है कि लाठीचार्ज की न्यायिक जांच हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज करेंगे। एक महीने में पूरी होगी जांच। आईएसआईएस और पूर्व एसडीएम आयुष सिन्हा को छुट्टी पर भेजा गया। जांच रिपोर्ट आने तक सिन्हा छुट्टी पर रहेंगे। मृत किसान सुशील काजल के 2 परिजनों को डीसी रेट पर नौकरी मिलेगी।

किसानों की माँग क्या थी
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संयुक्त किसान मोर्चा की मूल माँग थी कि आईएसआईएस आयुष सिन्हा को बर्खास्त किया जाए, 302 का केस दर्ज किया जाए, सुशील काजल के परिवार को 25 लाख रूपये मुआवज़ा दिया जाए और परिवार को सरकारी नौकरी दी जाए।

हासिल क्या हुआ
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देखा जाए तो करनाल किसान आंदोलन से बहुत ज़्यादा हासिल नहीं हुआ। जहां तक जाँच का सवाल उसके लिए हरियाणा सरकार पहले से ही कह रही थी। अंतिम प्रयास के रूप में गृहमंत्री अनिल विज ने दो दिन पहले ही कहा था कि हरियाणा सरकार इस मामले की जाँच बिना भेदभाव कराने को तैयार है।

सरकारी जाँच से हम लोग वाक़िफ़ हैं। वो इसीलिए होती हैं कि मामले को लंबे समय तक लटका दिया जाए। हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज से जाँच कराने की बात कही गई है। जज साहब अकेले तो जाँच करने से रहे। उन्हें जाँच में मदद के लिए दफ़्तर और स्टाफ़ चाहिए होगा। इसके लिए बजट मंज़ूर करने और यह संसाधन जुटाने में ही एक -डेढ़ महीने निकल जाएँगे। फिर जज साहब की जाँच का कार्यकाल बार-बार बढ़ाया जाएगा। जाँच रिपोर्ट आने में छह महीने निकल जाएँगे। इसके बाद कौन करनाल लाठी चार्ज को याद रखेगा और कौन इस मुद्दे पर धरना देने आएगा।

हरियाणा सरकार ने किसान नेताओं की एक माँग ज़रूर स्वीकार की है कि परिवार के सदस्य को नौकरी मिलेगी। लेकिन यह भी एक लीपापोती है। नौकरी डीसी रेट पर मिलेगी यानी यह एक दिहाड़ी वाली नौकरी होगी और किसी सरकारी दफ़्तर में चपरासी से लेकर कार्यालय सहायक तक की हो सकती है। इसमें बहुत कम पैसे दिहाड़ी के हिसाब से मिलेंगे।

जहां तक आईएसआईएस आयुष सिन्हा को फ़ोर्स लीव पर भेजने की बात है, उसमें उसका फ़ायदा ही है। उसे पूरा वेतन मिलेगा और काम नहीं करना पड़ेगा। लेकिन सारी स्थितियाँ उसके हक में जा रही हैं। उसे देर सवेर बड़ा इनाम मिलना तय है। देखना है कि अगर उसे भविष्य में हरियाणा में कहीं डीसी या अतिरिक्त उपायुक्त लगाया जाता है तब किसान संगठन उसका कितना विरोध कर पाते हैं?

चढ़ूनी की राजनीति
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मुज़फ़्फ़रनगर में 5 सितम्बर को सफल किसान महापंचायत हुई थी। उसमें आई भीड़ को देखकर सरकार तो सहम गई लेकिन चढ़ूनी की महत्वाकांक्षा ने ज़ोर पकड़ लिया। वो राकेश टिकैत की तरह ही हरियाणा में शक्ति प्रदर्शन करना चाहते थे। उसके लिए करनाल लाठीचार्ज से बेहतर मुद्दा नहीं हो सकता था। चढ़ूनी अपनी योजना में काफ़ी हद तक सफल रहे लेकिन देशव्यापी किसान आंदोलन को इससे बहुत फ़ायदा नहीं हुआ। भारी जनदबाव की वजह से बलबीर सिंह राजेवाल, दर्शनपाल, राकेश टिकैत और योगेन्द्र यादव को करनाल आना पड़ा। जबकि इन लोगों को लखनऊ की बैठक में जाना था। जिसमें सिर्फ़ दर्शनपाल पहुँच सके।

क्या होना चाहिए
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अनुभवी किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कल चंडीगढ़ में विपक्षी राजनीतिक दलों से कहा कि वे अपनी रैलियाँ बंद करें और ठोस मुद्दों के साथ किसान आंदोलन के साथ आ जाएँ ताकि जनता विपक्ष को अलग अलग न देखे। दरअसल, राजेवाल की शुरू से यह कोशिश रही कि किसान आंदोलन तीन कृषि बिलों और अन्य मुद्दों के विरोध पर आधारित है और उसे लेकर ही सधे हुए कदमों से लेकर आगे बढ़ने की ज़रूरत है। बीच में अगर छोटे मुद्दों पर ऊर्जा खर्च की गई तो हम मुद्दे से भटक जाएँगे।

हरियाणा में किसान आंदोलन को कुछ नेता 186-87 के चौधरी देवीलाल के न्याय युद्ध का रूप देकर राजनीतिक लाभ उठाना चाहते हैं। यही वजह है कि गुरनाम सिंह चढ़ूनी के आसपास ऐसे लोगों का जमावड़ा हैं जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं किसान आंदोलन की आड़ में पल रही हैं। हरियाणा में किसान आंदोलन की वही दशा और दिशा होना चाहिए जो पंजाब में है, जो मुज़फ़्फ़रनगर में दिखा और जो राजेवाल के सूत्र वाक्य में है।

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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