बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

बिहार: जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने आखिरकार जदयू छोड़ दिया। लेकिन जदयू छोड़ने से पहले उनकी फजीहत हुई और उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। आरोप विपक्ष ने नहीं बल्कि जदयू ने ही लगाए। आरसीपी सिंह ने पिछले कुछ सालों में बेतरह जमीन खरीदी और इसे लेकर जदयू आक्रामक दिखी। पार्टी ने उनसे इस पर सफाई मांगी। बाकायदा पार्टी के प्रदेश अघ्यक्ष उमेश कुशवाहा ने उन्हें पत्र लिखा और खरीदी गई पूरी जमीन की जानकारी सार्वजनिक करते हुए उनसे सवाल पूछा। जदयू के सर्वमान्य नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भ्रष्टाचार को लेकर हमेशा जीरो टॉलरेंस की बात करते रहे हैं। उमेश कुशवाहा ने इसका जिक्र करते हुए आरसीपी सिंह से स्थिति स्पष्ट करने को कहा और फिर एक दिन बाद ही आरसीपी सिंह ने जदयू की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। आरसीपी सिंह ने स्पष्टीकरण देने की बजाय इस्तीफा देना ज्यादा मुनासिब समझा। हालांकि सार्वजनिक जीवन में वे थे और हैं तो उन्हें स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए थी। वैसे भी उन पर विपक्ष बराबर सवाल उठाता रहा और बिहार में आरसीपी टैक्स की बात कोई ढकी-छुपी नहीं है। लेकिन यह मामला सार्वजनिक होने के बाद आरसीपी सिंह की परेशानी फिलहाल तो बढ़ी है। वे क्या कदम उठाते हैं इस पर सबकी निगाह है। सवाल यह भी है कि क्या भाजपा बिहार में भी आरसीपी सिंह के कंधे पर बंदूक रख कर नीतीश कुमार और जदयू को कमजोर करेगी। सियासी पंडितों का मानना है कि आरसीपी सिंह पूरी तरह भाजपा की गोद में बैठे हैं और उनके इशारा पर ही स्याह-सफेद का खेलव चल रहा है।

बिहार की सियासत आने वाले दिनों में कौन सी कवट लेगी, यह कहना थोड़ा जल्दी होगा लेकिन आरसीपी सिंह का जाना तो उसी दिन तय हो गया था जिस दिन उन्होंने केंद्र में मंत्री पद की शपथ ली थी। जदयू कोटे से वे मंत्री बने तब वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और नीतीश कुमार ने उन्हें फैसला लेने के लिए अधिकृत किया था। लेकिन उन्होंने अपने हित को पार्टी हित पर तरजीह दी और केंद्र में मंत्री बन गए। मंत्री बनते ही उनके जदयू से बिदाई की इबारत लिख डाली गई थी। जदयू के कभी सबसे ताकतवर नेता रहे आरसीपी सिंह ने ख्वाब में भी यह नहीं सोचा होगा कि उनकी बिदाई इस तरह की होगी। जदयू में नीतीश कुमार के बाद उनकी तूती बोलती थी। यह बात दीगर है कि वे नीतीश कुमार की छत्रछाया में ही सियासत में पले-बढ़े और सियासी सफर में एगे भी बढ़े। उनका कद ऊंचा हुआ तो वे यह बात भूल गए कि उन्हें सियासत में कद्दावर नीतीश कुमार ने ही बानाया था। नतीजा यह निकला के वे पार्टी में एक समानांतर पार्टी चलाने लगे थे।

जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह जमीनी नेता नहीं हैं। उनका जनाधार नहीं है और वे नीतीश कुमार के कंधे पर चढ़ कर ही सियासत कर रहे हैं। धीरे-धीरे वे खुद को नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी समझने लगे। गलत भी नहीं था। वे भी उसी नालंदा से आते हैं, जहां से नीतीश कुमार हैं और दोनों कुर्मी जाति से ही आते हैं। लेकिन आरसीपी सिंह यह भूल गए कि नीतीश कुमार का अपना जनाधार है और उनका नहीं। उनके पीछे छुटभैये नेताओं और चाटुकारों की जमात तो थी, कार्यकर्ता तो नीतीश कुमार के साथ ही थे। पिछले विधानसभा चुनाव में उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष रहचते जदयू की जो गत बनी वह अब इतिहास का हिस्सा है। टिकट बंटवारे में जिस तरह का खेल आरसीपी सिंह ने किया उसका खमियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा। नीतीश कुमार तब भी चुप रहे थे। इससे आरसीपी सिंह की महत्तवकांक्षा को पंख लग गए। आरसीपी सिंह तब जॉर्ज फर्नांडीज और शरद यादव का क्या हुआ इसे भूल गए थे। नीतीश कुमार सही वक्त के इंतजार में थे। केंद्रीय मंत्री बनते ही पहले उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाया गया। उनकी जगह राष्ट्रीय अध्यक्ष बने ललन सिंह ने धीरे-धीरे आरसीपी सिंह की जमीन तंग की। उनके समर्थकों को किनारे किया और आरसीपी सिंह को भी। संगठन पर अपनी पकड़ बनाई और उन तमाम लोगों को संगठन से विदा किया जो आरसीपी सिंह के समर्थक माने जाते थे। इससे आरसीपी सिंह जदयू में कमजोर होते चले गए।

मंत्री बनने के बाद आरसीपी सिंह भाजपा के नजदीक होते चले गए। पार्टी लाइन से अलग भाजपा की लाइन पर बातचीत करने लगे। जदयू के शीर्ष नेतृत्व को यह बात पसंद नहीं आई और नतीजा सामने है, उन्हें पार्टी ने तीसरी बार राज्यसभा नहीं भेजा। नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह के ताबूत में यह आखरी कील ठोंक दी थी। आरसीपी सिंह चाह कर भी कुछ नहीं कर सके। मंत्री पद से इस्तीफा तक देना पड़ा। बिहार लौटने के बाद सियासी जमीन की तलाश शुरू की तो अपने को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने लगे। कुछ सभा-समारोहों मे नारा भी लगवा डाला कि बिहार का मुख्यमंत्री कैसा हो, आरसीपी सिंह जैसा हो। जाहिर है कि यह बात पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं को नागवार लगी। जदयू के सर्वमान्य नेता तो नीतीश कुमार ही हैं और पार्टी में रहते हुए इस तरह के नारे लगने पर पार्टी ने इसे गंभीरता से लिया। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने इस पर कड़ा एतराज जताया। इन नारों का शोर अभी सुनाई ही पड़ रहा था कि आरसीपी सिंह की जमीन खरीद का मामला सामने आया और पार्टी ने उनसे स्पष्टीकरण मांग कर उनकी महत्तवकांक्षाओं में पलीता लगा डाला। आरसीपी सिंह के पास पार्टी छोड़ने के अलावा और कोई चारा बचा भी नहीं था। लेकिन जिस तरह वे गए हैं इसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी। इस्तीफे के बाद वे नीतीश कुमार पर खूब बरसे हैं। लेकिन कई सवाल अब भी बरकरार हैं क्या आरसीपीसी ने आत्मसमर्पण कर डाला है या फिर वे आगे की लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं। नीतीश कुमार और जदयू के दूसरे नेताओं के खिलाफ वे वार करेंगे, सियासी गलियारे में इसकी चर्चा है। सवाल यह है कि क्या कुछ राज आरसीपी सिंह के पास जदयू नेताओं के हैं और देर-सवेर वे इसे उजागर कर नीतीश कुमार की परेशानी बढ़ा सकते हैं। बिहार की सियासत में आरसीपी सिंह क्या कुछ करेंगे फिलहाल कहना मुश्किल है लेकिन बहुत सारे सवाल तैर रहे हैं। देर-सवेर इसके जवाब मिलेंगे। तब तक आरसीपी सिंह के अगले कदम का इंतजार करें।

—————-इंडिया न्यूज़ स्ट्रीम

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