यूपी चुनाव 2022: छठे चरण में अपने ही गढ़ में अग्नि परीक्षा से गुजरेंगे योगी आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में छठे चरण के मतदान के लिए 10 जिलों की 57
सीटों पर मंगलवार को प्रचार थम गया. छठे चरण में पूर्वांचल के अंबेडकर
नगर से गोरखपुर तक की सीटों पर सियासी संग्राम होना है. पांच चरणों में
292 सीटों पर वोट डाले जा चुके हैं. बाकी बची 54 सीटों पर सातवें और
आख़िरी चरण में वोट डाले जाएंगे. छठे चरण में कुल 676 प्रत्याशी किस्मत
आजमा रहे हैं. छठे चरण में 11 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं. इस चरण
में कुल 2,14,62,816 (दो करोड़ चौदह लाख बासठ हजार आठ सौ सोलह) मतदाता
हैं. इसमें 1,14,63,113 पुरुष, 99,98,383 महिला व 1320 थर्ड जेंडर के
मतदाता शामिल हैं.

बीजेपी ने झोंकी पूरी ताक़त
पिछले चुनाव में छठे चरण वाली इन 57 सीटों में से 46 सीटें बीजेपी और दो
सीटें उसके सहयोगी दलों ने जीती थीं. इनमें से एक अपना दल और एक सुभासपा
ने जीती थीं. तब सुभासपा और भाजपा का गठबंधन था. इस बार सुभासपा और
समाजवादी पार्टी (सपा) का गठबंधन है. सुभासपा के पाला बदलने से बीजेपी की
राह काफी मुश्किल हो गई है. हवा का रुख अपने पक्ष में मोड़ने के लिए
चुनाव प्रचार के आख़िरी दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ बीजेपी के
बड़े नेताओं ने पूरी ताक़त झोंकी. योगी ने छह जनसभाएं की. इनमें से दो
गोरखपुर ज़िले में थी. बीजेपी की सत्ता और योगी की साख बचाने के लिए
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तीन तो बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी दो
रैलियां की. बीजेपी के सामने पांच चरणों की तरह इसमें भी पिछले चुनाव में
जीती अपनी सींटें बचाने की चुनौती है.

अखिलेश, मायावती और प्रियंका ने भी लगाया ज़ोर
वहीं योगी सरकार को कड़ी चुनौती दे रहे अखिलेश यादव ने भी पूरी ताक़त
झोंकी. अखिलेश ने पांच कार्यक्रम किए. उनका ज़ोर जनसभाओं के बजाय
कार्यकर्ता सम्मेलनों पर रहा. अखिलेश के सामने छठे चरण में दोहरी चुनौती
है. एक तरफ उन्हें बीजेपी के पटखनी देनी है तो दूसरी तरफ बसपा के असर को
भी कम करना है. छठे चरण के लिए बसपा प्रमुख मायावती ने भी पूरा जोर लगा
दिया है. हाल ही में मायावती ने गोरखपुर में रैली करके कहा था कि बसपा के
हाथी ने योगी की नींद उड़ा रखी है. उन्होंने योगी और उनकी सरकार पर
कानून-व्यवस्था के नाम पर मुसलमानों के उत्पीड़न का गंभीर आरोप लगाया था.
दरअसल पिछले चुनाव में छठे चरण वाली 57 सीटों में बसपा न 5 सीटें जीती थी
जबकि सपा सिर्फ़ दो सीटें ही जीत पाई थी. लिहजा यहां सपा को सामने दोहरी
चुनौती है. कांग्रेस का वजूद बचाने की कोशिशों में जुटी प्रियंका गांधी
ने भी दो जनसभाएं की और दो जगहों पर डोर टू डोर अभियान चलाया.

अपने ही गढ़ में योगी की साख दांव पर
गोरखपुर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक गढ़ माना जाता है. यहां
से वो लगातार पांच बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे हैं. वो पहली बार
गोरखपुर की सदर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. इस लिहाज से देखें तो
योगी की असल अग्नि परीक्षा इसी चरण में होनी है. सपा और बसपा ने
पूर्वांचल में बीजेपी के खिलाफ जबरदस्त घेराबंदी कर रखी. हालांकि योगी
आदित्यनाथ को अपना चुनाव जीतने में कोई दिक्कत नहीं होगी. लेकिन जीत की
अंतर बढ़ाना और जिले की बाकी सीटों बीजेपी का कब्जा बरकरार रखना बड़ी
चुनौती है. इसी लिए बीजेपी ने यहां पूरी ताक़त झोंकी है. बीजेपी के तमाम
बड़े नेता गोरखपुर प्रचार के लिए आए. ख़ुद योगी आदित्यनाथ कई बार यहां
आए. अगर योगी अपनी सीट जीत जाते हैं लेकिन जिले की अन्य सीटों पर बीजेपी
अपना कब्ज़ा बरकरार नहीं रख पाती तो इससे पार्टी के साथ मुख्यमंत्री की
भी काफी किरकिरी होगी.

महत्वपूर्ण है मुस्लिम फैक्टर
छठे चरण में मुस्लिम फैक्टर भी काफी महत्वपूर्ण है. छठे चरण में मतदान
वाले 10 जिलों में 16.86% मुसलमान है. 57 सीटों में से कई मुस्लिम बहुल
मानी जाती हैं और कई पर मुस्लिम वोट हार जीत का फैसला करते हैं. छठे चरण
में पर 676 उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर लगी. कई सीटों पर सपा और बसपा
के मुस्लिम उम्मीदवार आमने सामने हैं. कई सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी की
पार्टी के उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं. ये मुकाबले को त्रिकोणीय
बनाने की कोशिश कर रहे हैं. सबसे ज़्यादा 37.51% मुसलमान बलरामपुर जिले
में हैं. उसके बाद सिद्धार्थ नगर में 29.23%, संतकबीर नगर में 23.58%,
कुशीनगर में 17.40%, महाराजगंज में 17.08%, अंबेडकर नगर में 16.75%,
बस्ती में 14.79%, देवरिया में 11.56%, गोरखपुर में 9.09% और सबसे कम
बलिया में 6.59% मुसलमान हैं. इन जिलों में 57 में 11 विधानसभा सीटें
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. कई सीटों पर दलित-मुस्लिम गठजोड़
मज़बूत माना जाता है. इसी लिए छठे चरण में मायावती भी सक्रिय हो गई हैं.

कौन कहां कितना भारी?
पिछले चुनाव में छठे चरण वाले 10 जिलों में अंबेडकरनगर छोड़कर बाकी में
बीजेपी का पलड़ा भारी रहा था. 2017 में इन 57 सीटों में से बीजेपी ने 46
सीटें जीती थीं. उसत बाद बसपा को 5 जबकि सपा को 2, और कांग्रेस को 1 सीट
मिली थी. वहीं, बीजेपी के सहयोगी अपना दल (एस) को और सुभासपा को एक -एक
सीट मिली थी. एक सीट पर निर्दलीय ने जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में छठा
चरण पूर्वांचल के लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है. इसका कारण है कि
बीजेपी ने यहां से विपक्ष का सफाया कर दिया था. लेकिन इस बार उसके सामने
पिछला रिकॉर्ड दोहराने की दोहरी चुनौती है. डबल इंजन की सरकार के खिलाफ
सत्ता विरोधी लहर के अलावा पिछले चुनाव के सहयोगियों के पाला बदलने से
उसकी जीत की राह काफी मुश्किल नज़र आ रही है. इसलिए उसे अपना मज़बूत किला
बचाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है.

बदल गए सहयोगी
छठे चरण में बीजेपी और सपा दोनों ही अपने सहयोगियों के सहारे चुनावी रण
जीतना चाहती हैं. इस बार बदले हुए हालात और विधानसभा चुनाव में बदले
जातीय समीकरणों की वजह से बीजेपी के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं. पहले
ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी बीजेपी के साथ थी. बीजेपी
ने उसे 8 सीटें दी थी. लेकिन इस बार वो बीजेपी का साथ छोड़कर सपा के साथ
हो गई है. बीजेपी ने निषाद पार्टी को अपने साथ मिला लिया है. ओमप्रकाश
राजभर सपा के साथ गठबंधन में है. सपा ने उन्हें 20 सीटें दी हैं. पिछले
चुनाव में सपा और कांग्रेस का गठबंधन था. इस गठबंधन ने 3 सीटें जीती थीं.
दो सपा ने और एक कांग्रेस ने. इस बार अखिलेश ओमप्रकाश राजभर के सहारे
बीजेपी को पटखनी देकर अपनी सीटों की संख्या बढ़ाना चाहते हैं.

कौन कितने सीटों पर मैदान में हैं
छठे चरण में बीजेपी और सपा दोनों ही अपने सहयोगी दलों के सहारे हैं.
लिहाजा उन्हें उनके लिए अच्छी खासी संख्या में सीटें भी छोड़नी पड़ी हैं.
इस लिए सत्ता की दावेदार दोनों मुख्य पार्टियां कम सीटों पर चुनाव मैदान
में हैं. जिन 57 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, उनमें से 52 सीटों पर बीजेपी
चुनावी मैदान में उतरी है और बाकी 5 सीटों पर उसके सहयोगी अपना दल (एस)
और निषाद पार्टी के उम्मीदवार हैं. इसी तरह सपा ने 48 सीटों पर अपने
उम्मीदवार उतारे हैं और बाकी सीटों पर उसके सहयोगी ओम प्रकाश राजभर की
पार्टी सुभासपा के उम्मीदवार चुनावी रण में हैं. बसपा ने सभी 5 सीटों पर
और कांग्रेस ने 56 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.

योगी समेत कई दिग्गजों की साख दांव पर
छठे चरण में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत उनकी सरकार के कई मंत्रियों
और बड़े नेताओं की भी साख़ दांव पर लगी हुई है. गोरखपुर शहरी विधानसभा
सीट से बीजेपी उम्मीदवार सीएम योगी आदित्यनाथ को हरा पाना आसान नहीं
होगा, लेकिन अन्य सीटों के समीकरण बीजेपी के अनुकूल नहीं लगते. योगी के
कई करीबी नेताओं की सीटों पर कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
योगी सरकार में मंत्री सतीश द्विवेदी, सूर्य प्रताप शाही, उपेंद्र
तिवारी, श्रीराम चौहान, जय प्रताप सिंह , जय प्रकाश निषाद और राम स्वरूप
शुक्ला मुख्य हैं. इनके अलावा नेता राम गोविंद चौधरी, विधानसभा के पूर्व
अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय, बसपा छोड़ सपा में आए लालजी वर्मा, राम अचल
राजभर, पूर्व मंत्री राममूर्ति वर्मा, राज किशोर सिंह, स्वामी प्रसाद
मौर्य और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू समेत कई अन्य
दिग्गजों की इसी चरण में अग्नि परीक्षा होनी है

छठे चरण में पूर्वांचल के जिन जिलों में मतदान होना है वहां पर कभी बसपा
और सपा का वोट बैंक हुआ करता था. पिछले चुनाव में बीजेपी ने यहां पीएम
मोदी के चेहरे के साथ राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे के सहारे अपनी
जगह बनाई और 209 के लोकसभा चुनाव में भी उसे बरकरार रखा. बीजेपी के इस
वर्चस्व को तोड़ने के लिए सपा ने गैर-यादव ओबीसी आधार रखने वाले दलों से
हाथ मिलाया तो बसपा ने जातीय समीकरण को देखते हुए उम्मीदवार उतारे हैं.
इतना ही नहीं कई सीटों पर मायावती ने बीजेपी और सपा के दलबदलुओं को टिकट
देकर चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है. बहरहाल पांच साल पहले
पूर्वांचल के लोगों ने जो बीजेपी से बहुत उम्मीदें लगाई थीं. उम्मीदों की
कसौटी पर बीजेपी कितना खरी उतरी है इसका पता इस बार के मतदान से चलेगा.

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