नई दिल्ली, फ़ज़ल इमाम मल्लिक-रायपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने भी पिछड़ा कार्ड खेल डाला। राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना का मुद्दा उछाला और अधिवेशन में इस पर आमराय से सहमति बनी। जाहिर है कि इसका असर बिहार में पड़ना ही था। बिहार में महागठबंधन की सरकार में कांग्रेस शामिल है जाहिर है अब इसके लिए वह अपनी पीठ थपथपा सकती है। वैसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बहुप्रतिक्षित जातीय जनगणना अभियान आखिरकार शुरू हो गया है। इसे सियासी नजरिये से भी देखा जा रहा है। यह गलत भी नहीं है। इसके सियासी मतलब हैं और मतलब दूर तक देखा जा सकता है। जातीय जनगणना को लेकर जदयू और राजद उत्साहित है तो भाजपा नीतीश सरकार पर हमलावर। सरकार ने जो दिशा-निर्देश जारी किए हैं उसके मुताबिक राज्य में 204 जातियों की सूची बनाई गई है जिसकी गणना की जाएगी। इससे लंबे समय के बाद जातिवार आंकड़े सामने आएंगे। यूं पटना में सात सौ की आबादी पर एक ब्लाक बनाया गया है और 41 अधिकारियों की देखरेख में यह काम अंजाम पाएगा। अंग्रेजी राज में भी इस तरह का सर्वे कराया गया था। तब पटना जिले में सबसे अधिक आबादी अहीर या ग्वााला और कुर्मी जाति की थी। तीसरे नंबर पर बाभन थे। पटना जिला गजेटियर 1907 में इस सर्वे का जिक्र मिलता है।
गजेटियर के मुताबिक अंग्रेजी राज में 1907 में एक ब्रिटिश अधिकारी ओ मैली ने पटना सहित दूसरे जिलों के गजेटियर तैयार कराए थे। तब पटना जिला के गजेटियर में यहां की प्रमुख जातियों की जनसंख्या का ब्योरा जुटाया गया था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1815 से अपने आधिपत्य के प्रदेशों की विस्तृत जानकारी के लिए गज़ेटियर की एक श्रृंखला का प्रकाशन शुरू किया था। गज़ेटियर में संबंधित इलाके का भुगोल, इतिहास, धर्म, संस्कृति, शिक्षा, पेशा, वेतन,मजदूरी, जनस्वास्थ्य , कृषि, सिचाई, प्राकृतिक आपदा, यातायात के साधन, भू-राजस्व, स्थानीय प्रशासन इत्यादि की महत्वपूर्ण जानकारी होती है। इसके पहले अकबर के वक्त में अबुल फज़ल ने आईने अकबरी में इस तरह का काम किया था। फिर अंग्रेजों ने ही इसका बकायदा प्रकाशन का काम शुरू किया।
इसी क्रम में 1907 में एक ब्रिटिश आईसीएस अधिकारी ओ मैली को पटना के साथ साथ कई और दूसरे जिलों के गज़ेटियर तैयार करने का काम सौंपा गया। पटना जिला के गज़ेटियर तैयार करने के क्रम में उन्होंने यहां रहने वाली जातियों की जनसंख्या के साथ साथ उनके बारे में रोचक जानकारी दी है। ओ मैली ने लिखा है कि मुसलमानों में शेख (56,302 ) के बाद जुलाहों( 28,602) की महत्वपूर्ण उपस्थिति है। हिन्दुओं में सबसे अधिक आबादी वाले अहीर या ग्वाला ( 232,908 ), कुर्मी ( 167,522), बाभन (108,263), दुसाध (100,200 ), कहार ( 84,531), कोइरी ( 72,491), राजपूत (63,724),चमार (60,472),और तेली(42,277) हैं। इसके अतिरिक्त आठ ऐसी और जातियां हैं जिनकी आबादी 25,000 से ज्यादा है। इनमें बढई, ब्राह्मण, धानुक, हज्जाम, कन्दुस, मुसहर, पासी और कायस्थ हैं।
मैली के मुताबिक पटना जिला में ग्वाले या अहीर सबसे बड़ी जनसंख्या वाले हैं। ये मितव्ययी होते हैं। ये अनाज, भूसी बेचकर,अपने मवेशियों के लिए चारा काटकर और अपरिष्कृत भोजन कर अपना जीवन यापन कर लेते हैं। जबकि घर की महिलाएं दूध, मक्खन और दही बेचती हैं। अहीर आमतौर पर किसान और पशुपालक होते हैं। लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे भी अहीर हैं जो बेहद गरीब हैं और मजदूरी कर गुजर बसर करते हैं। हां, इस जाति में कुछ समृद्ध जमींदार भी हैं।
मैली ने ग्वालों को जिले में सबसे ज्यादा झगड़ालू बताया है और लिखा है कि उन्हें लाठी से कुछ ज्यादा ही लगाव है। मैली ने ग्वालों के एक रोचक त्योहार का उल्लेख किया हैं। उन्होंने लिखा है कि कार्तिक के सोलहवें दिन, दिवाली के एक दिन बाद वे सोहराई नाम का एक विलक्षण पर्व मनाते हैं। दिवाली की रात दूध में चावल पका कर वे खीर तैयार करते हैं। इस खीर को वे अपने इष्टदेव को समर्पित करते हैं। सभी मवेशियों को भूखा रखा जाता है। अगली सुबह उनके सींगों को लाल रंग से रंग दिया जाता है और उनके शरीरों को भी लाल रंग से पोत दिया जाता है। इन मवेशियों को एक मैदान में छोड़ दिया जाता है जहां एक सुअर के पैरों को बांध कर छोड़ दिया गया होता है। मवेशी उस सुअर को रौंद कर मार डालते हैं।
1907 में जब ओ मैली गजेटियर के लिए विभिन्न जातियों का सर्वेक्षण कर रहा था तो उस वक्त पटना जिला में यादवों, कुर्मियों, बाभनों के बाद दुसाध, कहार, कोइरी, राजपूत, चमार(अब जिन्हें रविदास कहा जाता है) और तेली इत्यादि महत्वपूर्ण जातियां थीं। इसके अतिरिक्त 25000 से ज्यादा आबादी वाली अन्य आठ जातियों में बढ़ई, ब्राह्मण, धानुक, हज्जाम (नाई), कंदुस, मुशहर, पासी और कायस्थ थे।
पटना जिले में तेलियों की संख्या 42,377 थी। तेल का उत्पादन और उनको बेचने के पुश्तैनी कारोबार पर उनका एकाधिकार था। इसके अतिरिक्त इनकी एक बड़ी आबादी अनाज और पैसों के लेनदेन के कारोबार में भी लगी हुई थी। तत्कालीन समाज में व्याप्त अंधविश्वास से ये अछूते नहीं थे। तेलियों का भूत, प्रेत और बुरी आत्माओं पर दृढ़ विश्वास था।
ओ मैली ने लिखा है, तेलियों का यह दृढ़ विश्वास है कि मृत्यु के बाद चाहे वह स्वाभाविक मौत हो या अस्वाभाविक, प्रत्येक तेली बहुत ही शक्तिशाली दुष्ट आत्मा बन जाती है। उसे तेलिया मसान कहा जाता है। प्रचलित मान्यता के मुताबिक बहुत शक्तिशाली ओझा ही तेलिया मसान को नियंत्रित कर सकता है। जादूगर अकसर मृत तेली की खोपड़ी को अपने पास रखते हैं। इस खोपड़ी के मार्फ़त वे बुरी और दुष्ट आत्माओं (तेलिया मसान) का आह्वान करते हैं।
अतीत में पटना जिला में तेली बहुत ही शक्तिशाली रहे हैं। इतिहासकारों के मुताबिक बिहार शरीफ के निकट तेल्हारा उनकी शक्ति का केंद्र था। तेल्हारा विश्वविद्यालय नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय से भी पुराना है। यहां बौद्ध विहार भी था। बौद्ध भिक्षु ह्यूएन त्सांग अपनी यात्रा के क्रम में यहां आया था। उसने इसे तेलधका नाम से याद किया है। नालंदा महाविहार के विशाल प्रवेश द्वार का निर्माण तेली वंश के प्रमुख बालादित्य ने करवाया था। तेली जाति के ही एक व्यक्ति ने भगवान् बुद्ध की विशाल प्रतिमा की स्थापना की थी। अब यह स्थान तेलिया भण्डार कहलाता है। निकट ही तेतरवन में भी इन्होने बुद्ध की विशाल प्रतिमा की स्थापना की। ओ मैली ने यह भी लिखा है कि करीब करीब जिले के सभी प्रकार के कारोबार इन तेलियों के हाथों में है। इन पर उनका पूरा नियंत्रण है। यहां एक लोकप्रिय कहावत प्रचलित है। तुर्क, तेली, ताड़ इन तीनों से बिहार। बिहार मुसलमानों, तेलियों और ताड़ से बना है। कुछ साल पहले तक यह कहावत प्रचलित थी। इस बीच तेलियों की आबादी बढ़ी और मुसलमानो की भी। लेकिन सड़क के किनारे खड़े ताड़ के पेड़ों की संख्या अब काफी कम हो गई है।
अब बिहार में करीब एक सौ पंद्रह साल बाद जातीय जनगणना हो रही है। इस पर सियासत भी खब हो रही है। सियासी नफा-नुकसान को ध्यान में रख कर अपनी अपनी चाल चली जा रही है। लेकिन यह वक्त बताएगा कि इससे किसे फायदा और किसे नुकसान होगा। फिलहाल तो सामाजिक न्याय की बात करने वाले राजनीतीक दल फ्रंट फुट पर नजर आ रहे हैं। भाजपा इससे जरूर परेशान है। वह विरोध तो कर रही है लेकिन सियासी जोड़-घटाव देख कर ही वह बयान दे रही है। आगे-आगे देखें क्या होता है। फिलहाल तो नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना की शुरुआत कर भाजपा को बैकफुट पर ढकेल ही दिया है।
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