बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर थोड़-थोड़ अंतराल से तीन खबरें चलाई गईं या चलवाईं गईं. हालांकि इन खबरों का कोई आधार नहीं था. सिर्फ कयासों पर खबरें बनवाईं गईं और मीडिया को इस्तेमाल कर नीतीश कुमार को बिहार की सियासत से अलग-थलग करने की कोशिश की गई. सवाल यह है कि यह खबर किसने चलाई या किसके इशारे पर चलवाई गई. सियासी गलियारे में इन खबरों का जिक्र तो है लेकिन सियासी सूरमाओं की मानें तो नीतीश कुमार न कहीं जा रहे हैं और न ही कहीं जाने वाले हैं. जो लोग भी या जो दल और उसके नेता नीतीश कुमार के खिलाफ अफवाहों की साजिश को अंजाम दे रहे हैं दरअसल वे अपने दल की कमजोरी को ही उजागर कर रहे हैं. इस पूरे खेल को समझने के लिए भाजपा की सियासत को समझना भी जरूरी है. पहले खबर चली कि नीतीश कुमार को केंद्र सरकार या कहें कि भाजपा राष्ट्रपति बनाना चाहती है. किन सूत्रों ने यह खबर बताई किसी ने नहीं जानकारी दी. किसी ने इसके सही होने पर मुहर नहीं लगाई. फिर उपराष्ट्रपति बनाए जाने की खबर चली. खूब मीडिया में उछाली गई. लेकिन खबर बनाई गई थी या दूसरे शब्दों में कहें तो प्लांट कराई गई थी इसलिए दम तोड़ गई. कहीं कोई सुनगुन नहीं हुई तो खबर चलाने वालों ने नई खबर चलाई कि नीतीश कुमार ने राज्यसभा जाने की इच्छा जताई है. मीडिया ने इसे ऑफ द रेकार्ड जानकारी बताई.
इन तीनों खबरों का स्रोत एक ही है. एक तरह से मीडिया का इस्तेमाल किया गया और नीतीश कुमार के खिलाफ खबरें प्लांट करवाईं गईं. दरअसल इन तमाम खबरों का लब्बोलुआब इतना है कि नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री पद छोड़ दें. खबरों के पीछे थोड़ा झांकें तो साफ हो जाता है कि अगर ऐसा होता है तो इसका फायदा किसे होगा. जवाब बहुत मुश्किल भी नहीं है. बिहार में भाजपा और जदयू का गठबंधन है. भाजपा पिछले चुनाव में बड़े दल के तौर पर उभरा लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बने. भाजपा की बिहार इकाई के एक धड़े को यह बात पच नहीं रही है. वह लगातार नीतीश कुमार पर हमलावर है और सरकार को घेरने के बहाने नीतीश कुमार को घेरने में लगा है.
केंद्रीय नेतृत्व जरूर नीतीश कुमार के साथ खड़ा है लेकिन बिहार में सत्ता की बड़ी कुर्सी पर गिद्ध दृष्टि जमाए भाजपा नेताओं की नींदें हराम हैं. वे नहीं चाहते कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद पर बने रहें क्योंकि नीतीश कुमार ने उनकी सियासत पर फुलस्टॉप लगा रखा है. भाजपा के वही नेता इन खबरों को मीडिया में प्लांट कर नीतीश कुमार के खिलाफ माहौल बनाने में लगे हैं. सियासत की थोड़ी बहुतभी जिन्हें जानकारी है वे भाजपा के इस खेल को अच्छी तरह से समझ रहे हैं, नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू तो इसे बहुत अच्छी तरह से समझ रहा है. इसलिए भाजपा के मंसूबे पर पानी फेरते हुए पार्टी के संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा और बिहार सरकार में मंत्री संजय झा ने ट्वीट कर सारी बात साफ की और कहा कि नीतीश कुमार 2025 तक मुख्यमंत्री रहेंगे तो भाजपा में स्यापा होना ही था. खुल कर भले भाजपा नेता कुछ न कह रहे हों लेकिन कई नेताओं की जो प्रतिक्रिया आई उससे उनकी नीयत और मंशा साफ हो गई थी.
भाजपा नेताओं ने तो नीतीश कुमार को राज्यसभा भेजने की बात इस तरह की जैसे वे उनकी दया पर हों. नीतीश कुमार राज्यसभा जाना चाहेंगे तो उन्हें कौन रोक सकता है और फिर भाजपा की मदद की उन्हें जरूरत भी नहीं है. लेकिन भाजपा नेताओं ने जिस अंदाज में बातें कहीं उससे भाजपा नेताओं का सच समाने आ गया. विपक्ष ने नीतीश पर दबाव की बात कही लेकिन सच तो यह है कि नीतीश कुमार न लालू यादव के दबाव में आए थे और न ही भाजपा के दबाव में काम कर रहे हैं. नीतीश कुमार को जो लोग बेहतर तरीके से जानते हैं वे इस सच को जानते हैं कि नीतीश कुमार किसी भी तरह के दबाव में नहीं आते हैं और भाजपा के एक वर्ग को यह बात अच्छी नहीं लग रही है. इसलिए खबरें लगातार प्लांट की जा रही हैं.
दरअसल भाजपा के कई नेता बिहार में भी भाजपा के भगवा एजंडे को लागू करना चाहते हैं लेकिन पिछले सोलह साल में वे इसे लागू नहीं कर पाए. नीतीश कुमार ने बतौर मुख्यमंत्री रहते इस तरह के किसी भी एजेंडे को लागू करने के खिलाफ पूरी मुस्तैदी से खड़े हैं. हिजाब का मामला हो या जनसंख्या नियंत्रण कानू या धर्मांतरण पर जदयू का साफ रुख रहा है. धर्मांतरण को लेकर भाजपा ने कई बार सवाल उठाया और बिहार में इसे मुद्दा बनाना चाहा लेकिन पार्टी नेता उपेंद्र कुशवाहा ने साफ कहा कि अगर मैं मुसलमान होना चाहूं तो कौन रोक सकता है. मैं अपनी मर्जी से अपना मजहब चुन सकता हूं. हिजाब पर भी नीतीश कुमार ने साफ किया कि बिहार में यह मसला नहीं है.
नीतीश कुमार बिहार में हिंदू-मुसलिम एजंडे को लागू करने के खिलाफ तन कर खड़े हैं और नफरत की फसल बोने और काटने वाले भाजपा नेताओं को यह बात पसंद नहीं आ रही है इसलिए हर छोटी बात का फसाना बना कर नीतीश कुमार को केंद्रीय राजनीति में भेजने की खबरें चलाई और चलवाईं जा रहीं हैं. लेकिन बकौल उपेंद्र कुशवाहा नीतीश जी कहीं नहीं जा रहे हैं. उन्हें 2025 तक जनता ने मुख्यमंत्री बनाया है और वे तब तक विकास का काम करते रहेंगे. भाजपा नेताओं की दिक्कत यह भी है कि केंद्रीय नेतृत्व नीतीश कुमार को लेकर आक्रामक नहीं है. उसे पता है कि बिहार में बिना नीतीश कुमार के भाजपा एक सीट नहीं जीत सकती. 2015 चुनाव में भाजपा इसे आजमा चुकी है. नरेंद्र मोदी की चमक भी नीतीश कुमार के आगे फीकी पड़ गई थी. भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इसे मानता है कि नीतीश कुमार ही बिहार में भाजपा का बड़ा चेहरा हैं.
राज्यसभा में जाने की इच्छा को लेकर पूछे सवाल पर नीतीश ने साफ किया कि मेरी कोई व्यक्तिगत इच्छा नहीं है. मैंने भी खबरें देखीं पता नहीं कैसे यह खबरें छप जातीं हैं. वैसे मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि राजनीति की शुरुआत में मैं क्षेत्रों में बहुत घूमा करता था. लोगों से मिलता रहता था. इसी दौरान मेरी एक ही इच्छा थी कि सांसद बनूं. वह मैं बन गया. इसके पहले विधायक भी मैं बना था. हालांकि अटकलें, कयासबाजी अब थम जाएगी ऐसा नहीं है. खबरें अभ और भी प्लांट होंगी. देखते रहें. यह अलग बात है कि नीतीश कुमार बिना विचलित हुए अपने काम में लगे हैं.