दिल्ली और हरियाणा में डायबिटीज के सबसे कम मामले

नई दिल्ली: हरियाणा, दिल्ली और असम के लोगों में डायबिटीज के मामले सबसे कम हैं, जबकि कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा हैं। अग्रणी हेल्थ टेक फर्म हेल्थियंस द्वारा किए गए एक बड़े अध्ययन में यह बात सामने आई है। हेल्थियंस घर बैठे स्वास्थ्य जांच की सुविधा देते हुए प्रिवेंटिव हेल्थ टेस्ट के मामले में अग्रणी कंपनी है।

पिछले कुछ महीनों में देश के 86 शहरों एवं कस्बों में 52 लाख लोगों के ब्लड टेस्ट के आंकड़ों के माध्यम से ‘हेल्थियंस डायबिटीज स्टडी’ को अंजाम दिया गया है। यह भारत में अपनी तरह का सबसे बड़ा डाटा एनालिसिस है, जिसमें डायबिटीज से जुड़े मानकों का विश्लेषण किया गया है। किसी शहर में कम स्कोर का मतलब वहां डायबिटीज के ज्यादा मामले पाए गए हैं।

हरियाणा के रोहतक ने 6.7 के स्कोर के साथ इस सूची को टॉप किया है यानी यहां डायबिटीज के मामले सबसे कम हैं। 6.6 के स्कोर के साथ हरियाणा का बहादुरगढ़ दूसरे स्थान पर रहा। नोएडा (6.4), ग्रेटर नोएडा (6.4) और गुरुग्राम (6.4) भी शीर्ष पांच शहरों में हैं। कर्नाटक का मैसुरु 3.6 के स्कोर के साथ सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला शहर रहा। गुंटूर (3.7), तिरुपति (3.9), विजयवाड़ा (4.0) और वारंगल (4.3) सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले पांच राज्यों में से हैं।

कुछ हफ्ते पहले हेल्थियंस ने दिल की सेहत को लेकर भी अध्ययन के नतीजे जारी किए थे। डायबिटीज पर किए गए अध्ययन के नतीजे भी बताते हैं कि दिल की बीमारियों की तरह ही डायबिटीज के मामले में भी दक्षिण के राज्य उत्तर के मुकाबले ज्यादा खराब स्थिति में हैं। डायबिटीज और दिल की सेहत का आपस में गहरा संबंध रहता है।

हेल्थियंस की डायबिटीज स्टडी में फास्टिंग ब्लड ग्लूकोज के साथ-साथ एचबीए1सी के नतीजों का भी विश्लेषण किया गया। फास्टिंग ग्लूकोज से जांच के दिन ब्लड शुगर के स्तर का पता चलता है। वहीं एचबीए1सी यानी हीमोग्लोबिन ए1सी जांच से पिछले 10 से 12 हफ्ते के दौरान औसत ब्लड शुगर का पता लगता है। इस जांच को ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन भी कहते हैं।

डायबिटीज तब होती है, जब शरीर पर्याप्त इंसुलिन बनाने में सक्षम नहीं रह जाता है। इससे शरीर में ब्लड शुगर का स्तर बढ़ने लगता है। आलस वाली जीवनशैली, ज्यादा कैलोरी, ज्यादा वसा, ज्यादा मीठा, ज्यादा शराब पीने, मोटापा, उम्र और परिवार में पहले से किसी को डायबिटीज होने जैसे कुछ कारण हैं, जिनसे कोई डायबिटीज का शिकार हो सकता है।

डायबिटीज एक लगातार बढ़ने वाला डिसऑर्डर है, जिससे आगे चलकर दिल की बीमारियों, स्ट्रोक, और हाई बीपी जैसी परेशानियां भी होने का खतरा रहता है, जो कि अंतत: परिवार, समाज, स्वास्थ्य व्यवस्था और देश पर दबाव बढ़ाते हैं। डायबिटीज को लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारी भी कहा जाता है। खराब खानपान, मोटापा और पर्याप्त व्यायाम नहीं करना जैसी आदतें इसका खतरा बढ़ा देती हैं। हेल्थियंस के संस्थापक एवं सीईओ दीपक साहनी ने कहा, ‘डायबिटीज को साइलेंट किलर कहा जाता है, क्योंकि डायबिटीज के शिकार बहुत से लोगों को तब तक इसका पता नहीं चल पाता है, जब तक कि स्वास्थ्य पर कोई गंभीर प्रभाव न दिखने लगे। समय-समय पर खून की जांच कराते रहना इस खतरे के बारे में जानने का सस्ता और आसान तरीका है।’

नतीजों में यह भी सामने आया कि जो लोग नियमित तौर पर कुछ हफ्ते या महीने में जांच कराते रहते हैं, उनके डायबिटीज के स्तर में गिरावट देखी गई। नियमित जांच कराने वालों में 61 प्रतिशत लोगों के फास्टिंग ग्लूकोज और 54 प्रतिशत लोगों के एचबीए1सी के स्तर में सुधार देखा गया। इससे यह भी पता चलता है कि जो लोग नियमित तौर पर जांच कराते हैं, वह स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा सचेत होते हैं और बचाव के कदम उठाते हैं। दीपक ने आगे कहा, ‘यह देखकर खुशी हो रही है कि बार-बार स्वास्थ्य जांच कराने वालों की रिपोर्ट बेहतर हुई है। इससे उसी बात की पुष्टि होती है, जो हम वर्षों से कह रहे हैं कि स्वस्थ जीवनशैली की ओर भारतीयों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रिवेंटिव टेस्टिंग अच्छा कदम हो सकती है।’

अध्ययन के मुताबिक, महिलाओं की तुलना में पुरुषों में डायबिटीज के मामले ज्यादा देखे गए। 46 प्रतिशत पुरुषों में शुगर का स्तर सामान्य से अलग पाया गया। वहीं 40 प्रतिशत महिलाओं में स्तर सामान्य से अलग मिला।

उम्र के हिसाब से तुलना करें तो 60 से 70 साल की उम्र वालों में सबसे ज्यादा (68 प्रतिशत) लोगों में शुगर का स्तर सामान्य से अलग मिला। 70 से 80 आयु वर्ग में 67 प्रतिशत और 50 से 60 आयु वर्ग में 63 प्रतिशत और 80 से ज्यादा के आयु वर्ग में 61 प्रतिशत लोगों में शुगर का स्तर सामान्य से अलग पाया गया। इससे यह पता चलता है कि कैसे बढ़ती उम्र के साथ सेहत संबंधी परेशानियां भी बढ़ती हैं। हालांकि 10 से 20 के आयु वर्ग में 10 प्रतिशत और 20 से 30 आयु वर्ग में 15 प्रतिशत लोगों में शुगर का स्तर सामान्य से अलग मिलना वास्तव में चिंता की बात है।

यह भी ध्यान देने की बात है कि ये आंकड़े उन लोगों के हैं, जिन्होंने जांच कराई है। निश्चित तौर पर इनमें से बहुत से लोगों ने डॉक्टर की सलाह पर जांच कराई होगी। इसलिए पूरी आबादी में स्थिति इससे भी ज्यादा गंभीर हो सकती है।

———इंडिया न्यूज़ स्ट्रीम

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