गणेश उत्सव स्पेशल: अष्टविनायक की यात्रा

नई दिल्ली: देश भर में इस समय गणेश उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। बड़े और साज सज्जा से भरपूर पंडालों में लोग भगवान गणेश के दर्शन करने जा रहे हैं। यही वजह है कि हम आपको पौराणिक महत्व वाले अतिप्राचीन भगवान गणेश के 8 शक्तिपीठ यानी अष्टविनायक की यात्रा से रूबरू करवाने जा रहे हैं।

अष्टविनायक से अभिप्राय है आठ गणपति। यह आठ अति प्राचीन मंदिर भगवान गणेश के आठ शक्तिपीठ भी कहलाते हैं, जो की महाराष्ट्र में स्तिथ हैं। महाराष्ट्र में पुणे के पास अष्टविनायक के आठ पवित्र मंदिर 20 से 110 किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित हैं। इन मंदिरों का पौराणिक महत्व और इतिहास है। इनमें विराजित भगवान गणेश की प्रतिमाएं स्वयंभू मानी जाती हैं, यानि यह स्वयं प्रगट हुई हैं। यह सभी मूर्तियां मानव निर्मित न होकर प्राकृतिक हैं।

अष्टविनायक के ये सभी आठ मंदिर अत्यंत पुराने और प्राचीन हैं। इन सभी का विशेष उल्लेख गणेश और मुद्गल पुराण, जो हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथों का समूह हैं, में किया गया है। इन आठ गणपति धामों की यात्रा अष्टविनायक तीर्थ यात्रा के नाम से जानी जाती है। गणेश उत्सव के 10 दिनों में यहां का नजारा किसी मेले से कम नहीं होता। देश के कोने-कोने से भक्त यहां बप्पा की आराधना करने पहुंचते हैं। इन पवित्र प्रतिमाओं के प्राप्त होने के क्रम के अनुसार ही अष्टविनायक की यात्रा की जाती है।

1- श्री मयूरेश्वर मंदिर :

अष्टविनायक की यात्रा यहीं से शुरू की जाती है। यह मंदिर महाराष्ट्र में पुणे से 80 किलोमीटर दूर स्थित है। मोरेगांव गणेशजी की पूजा का महत्वपूर्ण केंद्र है। मयूरेश्वर मंदिर के चारों कोनों में मीनारें हैं और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। यहां चार द्वार हैं। ये चारों दरवाजे चारों युग, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के प्रतीक हैं।

इस मंदिर के द्वार पर शिवजी के वाहन नंदी बैल की मूर्ति स्थापित है, इसका मुंह भगवान गणेश की मूर्ति की ओर है। नंदी की मूर्ति के संबंध में यहां प्रचलित मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में शिवजी और नंदी इस मंदिर क्षेत्र में विश्राम के लिए रुके थे, लेकिन बाद में नंदी ने यहां से जाने के लिए मना कर दिया। तभी से नंदी यहीं स्थित हैं। नंदी और मूषक, दोनों ही मंदिर के रक्षक के रूप में तैनात हैं। मंदिर में गणेशजी बैठी मुद्रा में विराजमान है तथा उनकी सूंड बाएं हाथ की ओर है तथा उनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं।

मान्यताओं के अनुसार मयूरेश्वर के मंदिर में भगवान गणेश द्वारा सिंधुरासुर नामक एक राक्षस का वध किया गया था। गणेशजी ने मोर पर सवार होकर सिंधुरासुर से युद्ध किया था। इसी कारण यहां स्थित गणेशजी को मयूरेश्वर कहा जाता है। हर साल गणेश उत्सव के दौरान यहां विशेष पूजा की जाती है और हजारों की तादाद में भक्त दूर इलाकों से यहां दर्शन करने आते हैं।

यहीं पर गणेश जी के परम भक्त मोरया गोसावी, जिनका नाम गणेश भगवान के नाम के साथ लगता है (गणपति बाप्पा मोरया) का मंदिर भी है। इसके बारे में कहा जाता है की मोरया गोसावी की पूजा से प्रसन्न होकर भगवान गणेश उनसे मिलने मंदिर के बाहर आये थे’ वहीं पर ये छोटा मंदिर बनाया गया है।

2- सिद्धिविनायक मंदिर :

अष्ट विनायक में दूसरे गणेश हैं सिद्धिविनायक। यह मंदिर महाराष्ट्र में पुणे से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर सिद्धटेक में स्थित है। इसके समीप ही भीम नदी बहती है। यह क्षेत्र सिद्धटेक गांव के अंतर्गत आता है।

यह पुणे के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। बताया जाता है कि मंदिर करीब 200 साल पुराना है। सिद्धटेक में सिद्धिविनायक मंदिर बहुत ही सिद्ध स्थान है। ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान विष्णु ने सिद्धियां हासिल की थी। सिद्धिविनायक मंदिर एक पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है। जिसका मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है। मंदिर की परिक्रमा के लिए पहाड़ी की यात्रा करनी होती है। यहां गणेशजी की मूर्ति 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चौंड़ी है। मूर्ति का मुख उत्तर दिशा की ओर है। भगवान गणेश की सूंड सीधे हाथ की तरफ है।

हर साल गणेश उत्सव के 5 दिन यहां विशेष पूजा की जाती है। कहा जाता है की यहां दर्शन करने से भक्तों की सभी मुराद पूरी होती हैं।

3- श्री बल्लालेश्वर मंदिर :

अष्टविनायक में अगला मंदिर है श्री बल्लालेश्वर मंदिर। यह मंदिर मुंबई-पुणे हाइवे पर पाली में स्थित है। इस मंदिर का नाम गणेशजी के भक्त बल्लाल के नाम पर पड़ा है।

कहा जाता है की प्राचीन काल में बल्लाल नाम का एक लड़का था, वह गणेशजी का परमभक्त था। एक दिन उसने पाली गांव में विशेष पूजा का आयोजन किया। पूजन कई दिनों तक चल रहा था, पूजा में शामिल कई बच्चे घर लौटकर नहीं गए और वहीं बैठे रहे। इस कारण उन बच्चों के माता-पिता ने बल्लाल को पीटा और गणेशजी की प्रतिमा के साथ उसे भी जंगल में फेंक दिया। गंभीर हालत में बल्लाल गणेशजी के मंत्रों का जाप कर रहा था। इस भक्ति से प्रसन्न होकर गणेशजी ने उसे दर्शन दिए। तब बल्लाल ने गणेशजी से आग्रह किया कि अब वे इसी स्थान पर निवास करें। भगवान गणपति ने उसका ये आग्रह मान लिया। यहां भी दूर दूर से लोग गणपति बाप्पा के दर्शन करने आते हैं। भक्त की हर मनोकामना इस मंदिर में पूरी होती है।

4- श्री वरदविनायक :

अष्ट विनायक में चौथे गणेश हैं श्री वरदविनायक। यह मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर क्षेत्र में स्थित है। यहां एक सुन्दर पर्वतीय गांव है महाड़। इसी गांव में श्री वरदविनायक मंदिर है। यहां प्रचलित मान्यता के अनुसार वरदविनायक भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा होने का वरदान प्रदान करते हैं। कहा जाता है अगर किसी को बच्चा नहीं हो रहा और यहाँ आकर मन्नत मांग ली जाए, तो वो पूरी हो जाती है।

इस मंदिर में नंददीप नाम का एक दीपक है, जो 108 वर्षों में लगातार प्रज्जवलित है। वरदविनायक का नाम लेने मात्र से ही सारी कामनाओं को पूरा होने का वरदान प्राप्त होता है।

5- चिंतामणि गणपति :

अष्टविनायक में पांचवें गणेश हैं चिंतामणि गणपति। यह मंदिर पुणे जिले के हवेली क्षेत्र में स्थित है। मंदिर के पास ही तीन नदियों का संगम है। ये तीन नदियां हैं भीम, मुला और मुथा। यदि किसी भक्त का मन बहुत विचलित है और जीवन में दुख ही दुख प्राप्त हो रहे हैं, तो इस मंदिर में आने पर ये सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि स्वयं भगवान ब्रह्मा ने अपने विचलित मन को वश में करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी।

ऐसा भी कहा जाता है कि एक बार इंद्र देव राक्षसों से परेशान होकर यहीं अपने मन को शांत करने आये थे। हर साल गणेश उत्सव के दौरान सिर्फ 5 दिन यहां भक्त गणपति के दर्शन छूकर कर सकते हैं।

6- श्री गिरजात्मज गणपति :

अष्टविनायक में अगले गणपति हैं श्री गिरजात्मज। यह मंदिर पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। गिरजात्मज का अर्थ है गिरिजा यानी माता पार्वती के पुत्र गणेश।

यह मंदिर एक पहाड़ पर बौद्ध गुफाओं के स्थान पर बनाया गया है। यहां लेनयादरी पहाड़ पर 18 बौद्ध गुफाएं हैं और इनमें से 8वीं गुफा में गिरजात्मज विनायक मंदिर है। इन गुफाओं को गणेश गुफा भी कहा जाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 300 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। यह पूरा मंदिर ही एक बड़े पत्थर को काटकर बनाया गया है। ये मंदिर पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आता है।

7- विघ्नेश्वर गणपति मंदिर :

अष्टविनायक में सातवें गणेश हैं विघ्नेश्वर गणपति। यह मंदिर पुणे के ओझर जिले में जूनर क्षेत्र में स्थित है। यह पुणे-नासिक रोड पर नारायनगांव से जूनर या ओजर होकर करीब 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

प्रचलित कथा के अनुसार विघनासुर नामक एक असुर था, जो संतों को प्रताणित कर रहा था। भगवान गणेश ने इसी क्षेत्र में उस असुर का वध किया और सभी को कष्टों से मुक्ति दिलवाई। तभी से यह मंदिर विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहार के रूप में जाना जाता है। हर साल गणेश उत्सव पर यहां विशेष पूजा होती है। भजन कीर्तन किये जाते हैं और दूर-दूर से भक्त बप्पा के दर्शन करने आते हैं।

8- महागणपति मंदिर :

अष्टविनायक मंदिर के आठवें गणेशजी हैं महागणपति। यह मंदिर पुणे के रांजणगांव में स्थित है। इस मंदिर का इतिहास 9-10वीं सदी के बीच माना जाता है। मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है, जो कि बहुत विशाल और सुन्दर है। भगवान गणपति की मूर्ति को माहोतक नाम से भी जाना जाता है। यहां की गणेश प्रतिमा अद्भुत है। प्रचलित मान्यता के अनुसार मंदिर की मूल मूर्ति तहखाने की छिपी हुई है। पुराने समय में जब विदेशियों ने यहां आक्रमण किया था, तो उनसे मूर्ति को बचाने के लिए उसे तहखाने में छिपा दिया गया था।

–आईएएनएस

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