मजिस्ट्रियल कोर्ट को सांसद/विधायकों के मामलों की सुनवाई के लिए नए आदेश जारी करें : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सांसदों/विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिए मजिस्ट्रेट की अदालतें नहीं बनाकर, इसके बजाय सत्र अदालतों को ऐसे मामलों की सुनवाई की अनुमति देकर अपने आदेश की गलत व्याख्या की है। मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ व सूर्यकांत ने हाईकोर्ट के वकील से कहा, “हमारे आदेशों की गलत व्याख्या न करें, हम जानते हैं कि हमारे आदेश क्या हैं.।”

मुख्य न्यायाधीश ने वकील से आगे पूछा, “यदि आप मजिस्ट्रियल अदालतें नहीं बनाते हैं और प्रभारी सत्र न्यायाधीशों को मामले देते हैं, तो कितने साल तक मामले चलेंगे? क्या यही हमारा इरादा था?”

उच्च न्यायालय के वकील ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी कि उत्तर प्रदेश में मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ लगभग 13,000 मामले लंबित हैं और कहा कि इन मामलों की सुनवाई के लिए 62 विशेष अदालतें हैं। 16 अगस्त, 2019 को उच्च न्यायालय ने एक अधिसूचना जारी की जिसके द्वारा राज्य के 74 जिलों में से 62 के लिए अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीशों की विशेष अदालतों का गठन किया गया।

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि “सत्र न्यायालयों और मजिस्ट्रेट अदालतों के गठन पर उसका पिछला आदेश बिल्कुल स्पष्ट था, मगर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हमारे आदेश की गलत व्याख्या की।”

उच्च न्यायालय के वकील ने कहा कि विशेष अदालतें सत्र स्तर पर बनाई गई थीं, न कि मजिस्ट्रेट स्तर पर और यह शीर्ष अदालत द्वारा पारित आदेशों के अनुसार किया गया था।

अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय मामले में पिछले साल 16 सितंबर को शीर्ष अदालत के आदेश का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह संकेत मिलता हो कि यह अदालत अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग करके मजिस्ट्रेटों द्वारा विचारणीय मामलों को सत्र अदालत में स्थानांतरित करना चाहती है।

शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, “हम आगे निर्देश देते हैं कि 16 अगस्त, 2019 के परिपत्र के मद्देनजर सत्र न्यायालय के समक्ष लंबित मजिस्ट्रेटों द्वारा विचारणीय मामले सक्षम अधिकार क्षेत्र के न्यायालय में स्थानांतरित हो जाएंगे।”

“हालांकि, पूरे रिकॉर्ड और कार्यवाही को नामित मजिस्ट्रेट के न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया जाएगा और कार्यवाही उस चरण से शुरू होगी जो कार्यवाही के हस्तांतरण से पहले पहुंच गई है। इससे परीक्षण नए सिरे से शुरू नहीं करना होगा।”

शीर्ष अदालत ने कहा कि ये निर्देश यूपी में पूर्व और मौजूदा विधायकों से जुड़े मामलों की व्यापकता को नियंत्रित करेंगे, जिन्हें विशेष अदालतों द्वारा सत्र अदालतों द्वारा या जैसा भी मामला हो, मजिस्ट्रेट की अदालतों द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के प्रावधानों के संदर्भ में विचार किया जाना है। शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय को इस आदेश के अनुरूप एक नया परिपत्र जारी करना चाहिए।

इसने यह भी स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय को पूर्व और मौजूदा विधानसभाओं से जुड़े आपराधिक मामलों को जरूरत के मुताबिक कई सत्र न्यायालयों और मजिस्ट्रेट अदालतों को आवंटित करना सुनिश्चित करना चाहिए, ताकि एक मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय मामलों को एक मजिस्ट्रेट की नामित अदालत को सौंपा जा सके, जबकि सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय मामले सत्र की निर्दिष्ट अदालत को सौंपे जाते हैं।

शीर्ष अदालत इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा जारी अधिसूचना के खिलाफ सपा के वरिष्ठ नेता व सांसद आजम खां द्वारा दायर आवेदनों पर सुनवाई कर रही थी।

–आईएएनएस

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