बिहार मतदाता विशेष गहन पुनरीक्षण : चुनाव आयोग ने याचिकाओं पर जताई आपत्ति, सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को बिहार में जारी मतदाता विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के मामले में सुनवाई हुई। कांग्रेस, टीएमसी, राजद, सीपीआई (एम) समेत कई विपक्षी पार्टियों ने बिहार में मतदाता गहन पुनरीक्षण पर रोक लगाने की मांग की। हालांकि, चुनाव आयोग ने याचिकाओं पर आपत्ति जताई और कहा कि चुनाव आयोग का सीधे मतदाताओं से रिलेशन है।

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने बिहार में मतदाता गहन पुनरीक्षण के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई की। पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने चुनाव आयोग की तरफ से पक्ष रखा, जबकि कपिल सिब्बल और गोपाल शंकर नारायण ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिहार में चुनाव आयोग के मतदाता सूची को संशोधित करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएं एक ऐसे मुद्दे को उठाती हैं, जो ‘लोकतंत्र की जड़ों’ को प्रभावित करता है, जिसमें वोट देने का अधिकार शामिल है।

याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा, “इसमें कोई शक नहीं कि यह मुद्दा लोकतंत्र की जड़ों से जुड़ा है, वोट का अधिकार।”

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता न केवल चुनाव आयोग के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) की शक्ति को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि इसकी प्रक्रिया और समय पर भी सवाल उठा रहे हैं।

हालांकि, चुनाव आयोग का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कोर्ट से इस स्तर पर एसआईआर प्रक्रिया में हस्तक्षेप न करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “संशोधन प्रक्रिया पूरी होने दें, फिर पूरी तस्वीर देखी जा सकती है।” इस पर बेंच ने कहा कि एक बार मतदाता सूची संशोधित होकर विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी हो जाएगी, तो “कोई भी कोर्ट इसे नहीं छुएगा।”

याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम सभी याचिकाओं पर नहीं जाएंगे। हम मूल कानूनी सवालों पर बात करेंगे। सबसे पहले एडीआर की तरफ से वकील गोपाल शंकर नारायण ने दलील रखी।

याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि मतदाता गहन पुनरीक्षण में 11 दस्तावेजों को अनिवार्य किया गया है। यह पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण है। एसआईआर का फैसला न तो आरपी एक्ट में है और न ही इलेक्शन रूल में है। आयोग कहता है कि एक जनवरी 2003 के बाद मतदाता सूची में नाम लिखवाने वालों को अब दस्तावेज देने होंगे। यह भेदभावपूर्ण है।

नारायण ने कहा, “1 जुलाई 2025 को 18 साल की उम्र वाले नागरिक वोटर लिस्ट में शामिल हो सकते हैं। वोटर लिस्ट की समरी, यानी समीक्षा हर साल नियमित रूप से होती है। इस बार की भी हो चुकी है। लिहाजा अब इसे करने की जरूरत नहीं है।”

इस पर जस्टिस धूलिया ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि आप ये नहीं कह सकते कि चुनाव आयोग जो कर रहा है, वो कर नहीं सकता है। चुनाव आयोग तारीख तय कर रहा है, इसमें आपको आपत्ति क्या है? आप तर्कों के माध्यम से साबित करें कि आयोग सही नहीं कर रहा है।

सर्वोच्च अदालत की टिप्पणी पर याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकर नारायण ने कहा, “चुनाव आयोग इसको पूरे देश में लागू करना चाहता है और इसकी शुरुआत बिहार से कर रहा है।”

इसके जवाब में जस्टिस धूलिया ने कहा, “चुनाव आयोग वही कर रहा है, जो संविधान में दिया गया है, तो आप यह नहीं कह सकते कि वे ऐसा कुछ कर रहे हैं, जो उन्हें नहीं करना चाहिए?”

गोपाल शंकर नारायण ने कहा, “चुनाव आयोग वह कर रहा है, जो उसे नहीं करना चाहिए। यहां कई स्तरों पर उल्लंघन हो रहा है। यह पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण है। मैं आपको दिखाऊंगा कि उन्होंने किस तरह के सुरक्षा उपाय दिए हैं। दिशानिर्देशों में कुछ ऐसे वर्गों का उल्लेख है, जिन्हें इस रिविजन प्रक्रिया के दायरे में नहीं लाया गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पूरी प्रक्रिया का कानून में कोई आधार नहीं है।”

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि क्या चुनाव आयोग जो सघन परीक्षण कर रहा है, वो नियमों में है या नहीं, और ये सघन परीक्षण कब किया जा सकता है? जस्टिस धूलिया ने कहा, “आप ये बताइए कि ये आयोग के अधिकार क्षेत्र में है या नहीं।”

वकील गोपाल नारायण ने कहा, “चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में है।” जस्टिस धूलिया ने कहा, “इसका मतलब है कि आप अधिकार क्षेत्र को नहीं बल्कि सघन परीक्षण करने के तरीके को चुनौती दे रहे हैं।”

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में 11 दस्तावेजों को मांगे जाने की वजह बताई। ईसी ने कहा, “जिन 11 दस्तावेजों को मांगा गया है, उनके पीछे एक उद्देश्य है। आधार कार्ड को आधार कार्ड एक्ट के तहत लाया गया है। 60 फीसदी लोगों ने अब तक फॉर्म भर दिया है। अब तक आधे से अधिक फॉर्म को अपलोड भी कर दिया गया है। आधार कार्ड कभी भी नागरिकता का आधार नहीं हो सकता। ये केवल एक पहचान पत्र है। जाति प्रमाण पत्र आधार कार्ड पर निर्भर नहीं है। आधार केवल पहचान पत्र है, उससे ज्यादा कुछ नहीं।”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम आयोग पर सवाल नहीं उठा रहे हैं। आयोग ने साफ कह दिया है कि 11 दस्तावेजों के अलावा भी दूसरे दस्तावेज शामिल हो सकते हैं। हम मामले की सुनवाई अगस्त में करते हैं?” इस पर आयोग ने कहा, “2 अगस्त को सुनवाई कर लीजिए। ड्राफ्ट के प्रकाशन पर रोक मत लगाइए, नहीं तो पूरा प्रोसेस लेट हो जाएगा।”

आयोग ने आगे कहा, “हमें प्रक्रिया पूरी करने दीजिए और फिर कोई फैसला लेंगे। नवंबर में चुनाव हैं और हमें अभी क्यों रोका जाए? आप हमें बाद में भी रोक सकते हैं।”

इस पर जस्टिस बागची ने कहा, “हम चुनाव आयोग के काम में दखल देने के पक्ष में नहीं हैं।”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम चुनाव आयोग को एसआईआर करने से रोक नहीं सकते। वो संवैधानिक संस्था है। हम मामले की सुनवाई अगस्त से पहले करेंगे। हम 28 जुलाई को मामले की सुनवाई करेंगे।

–आईएएनएस

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