गुजरात: अपना सबसे मज़बूत क़िला बचाने की कोशिशों में जुटी बीजेपी

गुजरात में अगले साल दिसंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं। चुनाव में पूरा डेढ़ साल बाकी है। लेकिन बीजेपी ने अभी से चुनाव की तैयारियां ज़ोर-शोर से शुरू कर दी हैं। लगातार बैठकों का दौर जारी है दिल्ली से भी बड़े नेताओं के गुजरात दौरों का सिलसिला लगातार बना हुआ है। ये तैयारियां और हाल ही में लिए गए कुछ राजनीतिक फ़ैसले इस तरफ इशारा कर रहे हैं कि शायद बीजेपी को अपने इस मज़बूत क़िले के दरकने का ख़तरा पैदा हो गया है‌। इसी लिए वो इसे बचाने की कोशिशों में जुट गई है।

सियासी हलचल तेज़ हुई

गुजरात के विधानसभा चुनावों की तैयारियों को लेकर बीजेपी ज़रूरत से ज्यादा ही एहतियात बरत रही है। कुछ ज़्यादा ही सजग और सक्रिय नज़र आ रही है। उत्तर प्रदेश से भी ज़्यादा। जबकि उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च में ही चुनाव होने हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या बीजेपी के इस सबसे मज़बूत सियासी क़िले की दीवारें कमज़ोर पड़ गई हैंं, इसकी बुनियाद हिलने लगी है, क़िला अंदर से वाकई दरकने लगा है? क्या बीजेपी अपने इस क़िले को ढहने से रोकने के लिए ही ज़रूरत से ज्यादा सक्रियता और सजगता दिखा रही है। साथ ही ज़रूरत से ज्यादा एहतियात बरत रही है?

रुपाणी ने छेड़ा जनसंपर्क अभियान

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने अचानक अपने जनसंपर्क अभियान शुरू कर दिया है। सोमवार और मंगलवार को उन्होंने दोपर से शाम तक आम लोगों से मुलाक़ात करके न सिर्फ उनकी समस्याएं सुनी बल्कि उनसे अपनी सरकार के बारे में फीडबैक भी लिया। हालांकि मुख्यमंत्री हर महीने के आख़िर में ‘मोकला मने’ (यानी खुले दिल से) कार्यक्रम के तहत लोगों से मिलकर उनकी समस्या सुनते हैं। लेकिन यह ‘जनसंवाद’ लोगों से सरकार के कामकाज के बारे में फीडबैक लेने के लिए किया गया। ‘आम लोगों’ के साथ ‘खुले दिल’ से हुई इस लंबी बातचीत के बाद विजय रुपाणी इस बात को लेकर आश्वस्त दिखे कि अगले साल होने वाले चुनाव में बीजेपी को फिर से जनता का समर्थन मिलेगा।

क्यों पड़ी ज़रूरत

सवाल यह उठ रहा है कि जब चुनाव में डेढ़ साल बाकी है तो अभी से मुख्यमंत्री इस तरह के ‘जनसंवाद’ और ‘जनसंपर्क अभियान’ में क्यों जुट गए हैं। दरअसल कोरोना की दूसरी लहर के दौरान गुजरात सरकार पर मौत के आंकड़े छुपाने के गंभीर आरोप लगे हैं। ऑक्सीजन की कमी से लेकर कोरोना के इलाज में लापरवाही के भी आरोप लगे हैं। इसे लेकर सरकार कटघरे में है। मुख्यमंत्री आम जनता से बात करके यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आम जनता में उनके और उनकी सरकार के ख़िलाफ़ कितना ग़ुस्सा है। साथ ही इस बात का भी अंदाजा लगा रहे हैं कि चुनाव से पहले इस ग़ुस्से को कैसे ठंडा किया जा सकता है।

न मोदी चेहरा होंगे, न रुपाणी

पिछले हफ्ते राज्यों में चुनावों की तैयारियों को लेकर बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक हुई। इसमें फैसला किया गया कि इस बार विधानसभा चुनाव में ना तो पीएम मोदी को चेहरा बनाया जाएगा और ना ही मुख्यमंत्री रुपाणी को अगले मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया जाएगा। इसके बजाय पार्टी सामूहिक नेतृत्व के नाम पर चुनाव लड़ेगी। यह बहुत अहम फ़ैसला है। ऐसा लगता है कि बीजेपी ने बहुत सोच समझकर यह क़दम उठाया है। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को उम्मीद के मुताबिक़ कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद संघ परिवार ने यह फ़ैसला किया गया है कि अब राज्यों के चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा दावं पर नहीं लगाया जाएगा।

क्या और क्यों है डर

प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हैं। अब बीजेपी उनके चेहरे पर राज्य के विधानसभा चुनाव लड़ने से कतरा रही है। इसके पीछे यह वजह हो सकती है कि कोरोना की दूसरी लहर में केंद्र सरकार पर पूरी तरह नाकाम रहने का ठप्पा लगा है। उस पर हालात की गंभीरता को नहीं समझ पाने के गंभीर आरोप लगे हैं। पेट्रोल डीज़ल के लगातार बढ़ते दाम और इसकी वजह से अपने उच्चतम स्तर पर पहुंची खुदरा और थोक महंगाई दर ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। मोदी सरकार के ख़िलाफ़ देशभर में पहली बार जनाक्रोश दिखाई दे रहा है। इसका ख़ामियाजा बीजेपी को गुजरात में भरना पड़ सकता है। इसी डर से यह फ़ैसला किया गया है कि ना पीएम के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाएगा और ना ही सीएम के।

अमित शाह के दौरे

गृहमंत्री अमित शाह भी लगातार गुजरात के दौरे पर जा रहे हैं। हालांकि वह गुजरात की गांधीनगर लोकसभा सीट से सांसद है। लिहाज़ा अपने संसदीय क्षेत्र में उनका आना जाना लगा रहता है। लेकिन हाल ही में उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान विधानसभा चुनावों की तैयारियों का जायज़ा लिया। उन्होंने पार्टी के सांसदों, विधायकों और तमाम नेताओं को चुनावों के लिए पूरी तरह कमर कसने को कहा। पिछली बार वह 21-22 जून को गुजरात गए थे। इस दौरान उन्होंने कई विकास कार्यों की शुरुआत की और पुराने चल रहे कामों की भी समीक्षा की थी। अब 11-12 जुलाई को उनका फिर से गुजरात जाने का कार्यक्रम है। इससे लगता है कि वो और पार्टी विधानसभा चुनाव को लेकर किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहते। यह हमेशा का स्टाइल है कि चुनाव वाले राज्यों में वह साल भर पहले से लगातार जाना शुरु कर देते हैं यहां तो मामला फिर भी गुजरात का है।

प्रभारी की मैराथन बैठकें

अमित शाह की गुजरात दौरे से कुछ दिनों पहले गुजरात मामलों के प्रभारी और बीजेपी के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र यादव भी कई दिनों के दौरे पर अहमदाबाद गए थे। वहां उन्होंने मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के अलावा उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल और बाक़ी मंत्रियों से अलग-अलग मुलाकात की। यह मुलाक़ात में उन्होंने सरकार के कामकाज के साथ-साथ विधानसभा चुनावों की तैयारियों के का भी जायज़ा लिया था। अकसर ऐसी बैठक है और मुलाक़ातें गेस्ट हाउस में होती रहीं हैं। इस बार भूपेंद्र यादव पार्टी नेताओं से उनके घर जाकर मिले थे।

गुजरात की सियासत पर पैनी नज़र रखने बताते हैं कि किसी प्रभारी का इस तरह नेताओं के घर-घर जाकर मुलाक़ात करना उन्होंने पहली बार देखा है।

यूपी की तर्ज़ पर फीडबैक

भूपेंद्र यादव की इस दौरे को काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि इस दौरान उन्होंने पार्टी नेता नेताओं और मंत्रियों से तमाम मुद्दों पर खुलकर बातचीत की। गुजरात में सरकार के कामकाज और पार्टी की चुनावी तैयारियों का जायजा ठीक उसी तरह लिया गया था जैसे उत्तर प्रदेश में योगी सरकार और उनके मंत्रियों से वहां के प्रभारी बीएल संतोष ने लिया था। भूपेंद्र यादव 2 दिन के दौरे के बाद दिल्ली वापस आ गए थे। दो दिन बाद ही वह ख़ासतौर से विधायक दल की बैठक में हिस्सा लेने के लिए दोबारा अहमदाबाद पहुंचे। बैठक में उन्होंने विधायकों को चुनाव जीतने के लिए कुछ ज़रूरी मंत्र भी सुझाए। विधायकों को अपने चुनाव क्षेत्रों मैं ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने और वहां की जनता के बीच रहकर लोगों से तालमेल को बेहतर बनाने के निर्देश दिए।

ज़िला स्तर पर बैठक

भूपेंद्र यादव ने ऐलान किया था कि विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए वौ ख़ुद हर जिले में जाकर पार्टी संगठन के साथ चुनावी तैयारियों का जायज़ा लेंगे। इसके साथ ही चुनाव प्रबंधन की खामियों को दूर करेंगे। गुजरात की सियासत पर पैनी नज़र रखने वालों के मुताबिक़ गुजरात में पहली बार हो रहा है कि बीजेपी का कोई प्रभारी ज़िला स्तर पर ख़ुद जाकर चुनाव की तैयारियों का जायजा लेने के बात कह रहा है।हर जिले में जाने का भूपेंद्र यादव का कार्यक्रम जल्दी शुरू होने वाला है।

जनाधार खिसकने का डर

ऐसा लगता है कि बीजेपी को कहीं ना कहीं गुजरात में अपनी पकड़ कमज़ोर होती दिखने लगी है। जरा धार से बढ़ता हुआ नजर आने लगा है। इसलिए डेढ़ साल पहले ही वह ख़ुद को पूरी तरह चुनावी तैयारियों में झोंक रही है। वैसे तो गुजरात के राजनीतिक समीकरण और माहौल दोनों ही ऐसा इशारा नहीं करते के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के पैर पूरी तरह उखड़ जाएंगे। देशभर में बीजेपी गुजरात मॉडल के नाम पर चुनाव लड़ती है। लिहाज़ा वो गुजरात को अपने हाथ से किसी भी क़ीमत पर नहीं जाने देना चाहती। इसीलिए उसने अभी से चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं।

क्या कहता है चुनावी गणित

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को जबरदस्त टक्कर दी थी हालांकि कांग्रेस को बीजेपी से 22 सीटें कम मिली थी लेकिन नतीजे सभी सीटों के परिणाम आने तक बीजेपी के तमाम छोटे-बड़े नेताओं की सांसे अटकी हुई थी। क्योंकि रुझानों में बीजेपी कांग्रेस के बीच फ़ासला बहुत कम था बीजेपी ने 99 सीटें जीती थी और कांग्रेस ने 77 सीटें हासिल की थीं। बीजेपी को 16 सीटों का नुकसान हुआ था और कांग्रेस को इतनी ही सीटों का फ़ायदा हुआ था। चुरा के बाद कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने कहा था कि अगर पार्टी थोड़ा सा और गंभीर होकर चुनाव लड़ती तो बीजेपी को हरा सकती थी।

कांग्रेस का ग्राफ बढ़ा

हालांकि 2012 के चुनाव के मुक़ाबले बीजेपी को 1.2 प्रतिशत ज्यादा वोट मिले थे। लेकिन कांग्रेस का वोट 2.5 प्रतिशत बढ़ गया था। यानि कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले दोगुने वोट का फायदा हुआ था। बीजेपी को एक करोड़ 47 लाख वोट मिले थे तो कांग्रेस को एक करोड़ 24 लाख। बीजेपी को कुल 49.1% और कांग्रेस को 41.4% वोट मिले थे।चुनावी राजनीतिकारों का मानना है कि कांग्रेस अगर थोड़ी गंभीर कोशिश करे तो अगले चुनाव में बीजेपी को पटकनी दे सकती है। इसका एहसास बीजेपी को भी है। शायद इसी वजह से बीजेपी कुछ ज्यादा ही एहतियात बररते हुए चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है।

हालांकि कांग्रेस अभी चुनाव के लिहाज़ से लगभग निष्क्रिय है। अंदरूनी उठापटक से भी जूझ रही है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष इस्तीफा दे चुका है लेकिन अभी नया अध्यक्ष नहीं भरा है कांग्रेस के प्रभारी राजेश यादव का देहांत हो चुका है लेकिन अभी कांग्रेस का नया प्रभारी भी नहीं बनाया है। लेकिन गुजरात की राजनीति को बदलने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी ने अपनी सरगर्मियां बढ़ा दी हैं। आम आदमी पार्टी ने जिस तरह स्थानीय निकाय के चुनावों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है, उससे भी बीजेपी नेताओं के पेशानी पर बल पड़ गए हैं। लेकिन असदुद्दीन ओवैसी के भी पूरे दमख़म के साथ विधानसभा चुनाव में उतरने की चर्चा है। इससे बीजेपी नेताओं के चेहरे खिल सकते हैं।

–इंडिया न्यूज़ स्ट्रीम

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