जैविक खेती के जरिये लोगों के स्वास्थ्य और मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने की कोशिश में जुटी उत्तर प्रदेश सरकार

लखनऊ,: बढ़ते प्रदूषण से पूरी दुनिया चिंता जताई जा रही है। रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से न सिर्फ मिट्टी और लोगों का स्वास्थ्य गड़बड़ा रहा है, बल्कि जीवन का आवश्यक अंग हवा भी प्रदूषित हो रही है। वैज्ञानिक लगातार प्रयोग करके इसे रोकने का उपाय ढूंढ रहे है, लेकिन इन सबका निराराकरण जैविक खेती में ही छिपा हुआ है। यही वजह है कि योगी सरकार का जोर जैविक खेती पर है। ऐसी खेती जिसमें वर्मी कंपोस्ट (केंचुआ खाद) गाय के गोबर, मूत्र और अन्य उत्पादों से बने उर्वरकों एवं कीट नाशकों की महत्वपूर्ण भूमिका हो। जैविक तरीके से बने इन उत्पादों को वाजिब दाम दिलाना भी जैविक खेती के प्रोत्साहन के लिए जरूरी है। सरकार इन सभी पहलुओं पर काम भी कर रही है।

जैविक उत्पादों के विक्रय के लिए सभी मंडियों में अलग से जगह निर्धारित की गई हैं। किसान गोबर, घरेलू कूड़े-कचरे और फसल अवशेषों से वर्मी कंपोस्ट तैयार कर इनका फसलों में अधिक से अधिक प्रयोग करें इसके लिए सरकार प्रति इकाई वर्मी कम्पोस्ट के लिए 5000 रुपए का अनुदान देती है। इसके अलावा अगर कोई किसान जैविक खेती करना चाहता है तो सरकार की ओर से संबंधित किसान को प्रति एकड़, प्रति वर्ष की दर से क्रमश: 1800, 3000 और 2000 रुपए का अनुदान दिया जाता है। इसी क्रम में जैविक बीज प्रबन्धन के लिए तीन साल में 500-500 रुपए की समान किश्तों में 1500 रुपये, हरी खाद के लिए पहले साल 1500 रुपये देती है। साथ ही बोटैनिकल एक्सट्रेक्ट, लिक्विड बायो फर्टिलाइजर, लिक्विड बायोपेस्टिड, प्राकृतिक पेस्ट कंट्रोल, फॉस्फेट ऑर्गेनिक रिच मैन्यूर, सीएचजी चार्जेज पर भी अनुदान मिलता है। कुल मिलाकर अगर कोई किसान एक एकड़ में जैविक खेती करना चाहता है तो सरकार तीन वर्षों में अलग-अलग मदों में उसे कुल 16800 रुपए का अनुदान देती है।

केन्द्र पोषित परम्परागत कृषि विकास योजना एवं नमामि गंगे योजना के तहत जैविक जैविक खेती का क्रियान्वयन क्लस्टर अप्रोच (50 एकड़) पर किया जा रहा है। इस योजना से गंगा किनारे के कानपुर नगर, रायबरेली, फतेहपुर, प्रतापगढ़, प्रयागराज, मीरजापुर, वाराणसी, चंदौली, मुज्जफरनगर, हापुड़, मेरठ, अमरोहा, संभल, कन्नौज, प्रयागराज, भदोही, वाराणसी, चंदौली हैं। प्रदेश के अन्य जिलों के साथ-साथ नमामि गंगे परियोजना में आने वाले जिलों में भी प्राकृतिक खेती को सरकार प्रोत्साहन दे रही है। प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना, नमामि गंगे एवं जैविक खेती सहित 95680 हेक्टेयर क्षेत्रफल में अब तक 4754 क्लस्टर बनाए जा चुके हैं। सरकार इस पर 2021-22 तक 114.53 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। इससे 1.75 लाख कृषक लाभान्वित हो चुके हैं।

जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए प्रदेश सरकार भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) योजना के तहत 35 जिलों (आजमगढ़, सुल्तानपुर, गोंडा, कानपुर नगर, फिरोजाबाद, मथुरा, बदायूं, अमरोहा, बिजनौर, झांसी,जालौन, ललितपुर, बाँदा, हमीरपुर, महोबा, चित्रकूट, मीरजापुर, गोरखपुर, कानपुर देहात, फरुखार्बाद, रायबरेली, उन्नाव, पीलीभीत, देवरिया, आगरा, मथुरा, फतेहपुर, कौशांबी, बहराईच, श्रावस्ती, अयोध्या, बाराबंकी, वाराणसी, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर, चंदौली, सोनभद्र) में 3870380 हेक्टयर वर्ष 2021-22 से जैविक खेती के लिए स्वीकृति दी है।

जैविक खेती के बाबत किसानों के प्रशिक्षण और प्रदर्शन पर सरकार का खासा जोर है। इसी क्रम में गत दो वर्षों में 225691 कृषकों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। अब तक प्रदेश में कृषि एवं प्रौद्योगिक विष्वविद्यालयों द्वारा 83.185 एकड़ में प्राकृतिक खेती का डेमो (प्रदर्शन) कराया जा चुका है। इसके अलावा सभी आर. ए. टी. डी. एस. प्रक्षेत्रों राज्य कृषि प्रबन्ध संस्थान रहमान खेड़ा में क्रमश:10 और 1.20 एकड़ में प्राकृतिक खेती का प्रदर्शन कराया गया है।

आचार्य नरेंद्रदेव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति डॉ. बिजेंद्र सिंह कहते हैं कि अधिक रसायनिक के प्रयोग से हानिकारक केमिकल अलग-अलग ग्रुप में आ जाते हैं। यह फल व सब्जियों में इनका लंबे समय तक असर होता है। यह काफी नुकसानदायक होते हैं। इसके कारण स्वाइल के माइक्रो आर्गनिज्म है, जो न्यूट्रियन को बनाते हैं। वह नष्ट हो जाते है। अगर गैस बन गयी तो यह नीचे नुकसान करते है। इसके अलावा यह वातावरण को नष्ट करते हैं। जैविक खेती का सबसे बड़ा फायदा तत्वों का बैलेंस होता है। यह फसल अच्छी पैदा करता है।

–आईएएनएस

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