मुंबई । स्वतंत्रता दिवस की छुट्टी के बाद इस सप्ताह जब भारतीय शेयर बाजार फिर से कारोबार के लिए खुलेगा तो यह वैश्विक और घरेलू कारकों के मिले-जुले संकेतों से प्रभावित होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप-व्लादिमीर पुतिन की बैठक के नतीजे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जीएसटी सुधारों की घोषणा, अमेरिकी बाजारों की चाल और विदेशी तथा घरेलू निवेशकों की चल रही खरीदारी और बिकवाली जैसे कारक दलाल स्ट्रीट की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएंगे।
पिछले सप्ताह, निफ्टी और सेंसेक्स ने छह सप्ताह की गिरावट का सिलसिला आखिरकार तोड़ दिया और लगभग 1 प्रतिशत की बढ़त के साथ बंद हुए।
हालांकि, विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने भारी बिकवाली जारी रखी और कैश मार्केट में लगभग 10,000 करोड़ रुपए के शेयर बेचे।
घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) ने लगभग 19,000 करोड़ रुपए की मजबूत खरीदारी कर गिरावट को कम किया। सेक्टर-वाइज, फार्मा और ऑटो शेयरों ने रिकवरी को लीड किया, जबकि एफएमसीजी शेयर पीछे रहे।
आने वाले सप्ताह के सबसे बड़े ट्रिगर्स में से एक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच यूक्रेन संघर्ष पर बनी सहमति है।
शुक्रवार को अलास्का में हुई उनकी बैठक में युद्धविराम तो नहीं हुआ, लेकिन दोनों लीडर्स ने प्रगति के संकेत दिए, जिससे वैश्विक स्तर पर मार्केट सेंटीमेंट को बल मिल सकता है।
भारत में, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर जीएसटी 2.0 सुधारों की घोषणा को निवेशकों के लिए एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार दिवाली तक, खासकर रोजमर्रा के उपयोग की वस्तुओं पर, कर व्यवस्था को अधिक व्यावसायिक और उपभोक्ता-अनुकूल बनाने के लिए, प्रमुख दरों में कटौती करेगी। विश्लेषकों का मानना है कि इससे बाजार का विश्वास बढ़ सकता है।
वॉल स्ट्रीट से वैश्विक संकेतों का भी प्रभाव पड़ेगा। पिछले सप्ताह अमेरिकी बाजार मिले-जुले रहे, जहां डॉव हरे निशान में बंद हुआ, जबकि मजबूत खुदरा बिक्री आंकड़ों के बावजूद कमजोर औद्योगिक उत्पादन आंकड़ों के कारण एसएंडपी 500 इंडेक्स और नैस्डैक में गिरावट आई।
इसके अलावा, इस सप्ताह 100 से अधिक कंपनियों द्वारा लाभांश, राइट्स इश्यू, स्टॉक स्प्लिट और बोनस शेयर जैसे कॉर्पोरेट कदमों से स्टॉक-स्पेसिफिक गतिविधियों में वृद्धि होने की संभावना है।
इस बीच, विश्लेषकों का कहना है कि एफआईआई और डीआईआई का रुझान महत्वपूर्ण बना रहेगा। कच्चे तेल की कीमतें भी कुछ राहत दे सकती हैं, जो ट्रंप-पुतिन वार्ता के बाद कम हुई थीं।
–आईएएनएस