हाथियों के लिए काल साबित हो रहे बिजली के बाड़

चेन्नई : तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले के काली कोट्टा गौंडर गांव में 7 मार्च की तड़के तीन मादा हाथियों की करंट से मौत हो गई। हाथियों मृत शरीर के पास उनके नौ माह के बच्चे देखे गए।

वन विभाग की जांच में सामने आया कि एक किसान द्वारा अपनी फसलों को जंगली सूअरों और हाथियों के हमले से बचाने के लिए लगाए गए अवैध बिजली के बाड़ के संपर्क में आने से हाथियों की मौत हो गई।

पुलिस ने आरोपी किसान मुरुगन (48) को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। तमिलनाडु के वन विभाग ने तुरंत घोषणा की कि जिन किसानों ने अवैध बिजली के बाड़ लगाए हैं, जिससे हाथियों और जंगली जानवरों की मौत हुई है, उन पर गुंडा अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाएगा।

ये बिजली के बाड़ अवैध रूप से लगाए गए हैं। इन पर उच्च वोल्टेज की बिजली प्रवाहित की जा रही है। इनके संपर्क में आने से जानवरों की मौत हो जाती है।

एक अन्य मुद्दा तमिलनाडु जनरेशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन कॉरपोरेशन (टैंगेडको) की वन भूमि से सटे क्षेत्रों से गुजरने वाली विद्युत लाइनों की निगरानी करने और जांचने में विफलता है कि बाड़ के लिए अवैध कनेक्शन लिए गए हैं या नहीं। धर्मपुरी जिले में तीन मादा हाथियों की करंट लगने की दुखद घटना के बाद, टैंगेडको के अधिकारियों ने वन लाइनों के साथ-साथ गुजरने वाली विद्युत लाइनों की निगरानी और ट्रैकिंग शुरू कर दी है।

मानव-पशु संघर्ष, विशेष रूप से हाथियों के साथ संघर्ष, नीलगिरी, धर्मपुरी और कृष्णागिरी जैसे जिलों में बढ़ रहे हैं, जहां किसान जंगली हाथियों द्वारा हमलों की शिकायत कर रहे हैं और एक सप्ताह में औसतन कम से कम एक किसान की मौत हो रही है।

तमिलनाडु पुलिस के साथ राज्य के वन विभाग ने किसानों और स्थानीय लोगों को सुबह-शाम वन क्षेत्रों में नहीं जाने के लिए जागरूक कर रहे हैं।

धर्मपुरी के वैज्ञानिक और वन्यजीव शोधकर्ता आर. अनंतकृष्णन ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, हाथी घटते जल संसाधनों के कारण भोजन और पानी की तलाश में मानव बस्तियों में आते हैं। साथ ही, गुड़ सहित चावल, कटहल और अन्य खाद्य पदार्थ खाना भी उनको पसंद है।

उन्होंने कहा, लोगों को वन सीमा के करीब रहने में सतर्क रहना होगा और हाथी बार-बार भोजन की तलाश में आएंगे। वन विभाग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वन भूमि में जल संसाधन कम न हों और कटहल और अन्य फलों की खेती करने का प्रयास करें, ताकि हाथियों को उनके आवासों में सीमित रखा जा सके।

उन्होंने यह भी कहा कि वन भूमि के अतिक्रमण का व हाथियों के रास्ते में बसना, हाथियों के मानव बस्तियों में घुसने और उनके साथ संघर्ष के दो मुख्य कारण हैं।

हाथियों के मानव बस्तियों तक पहुंचने का मुख्य कारण उनका सिकुड़ता आवास रहा है। इसके कारण उनका मानवों के साथ सीधा संघर्ष हो रहा है।

एक और दुखद बात यह है कि चलती ट्रेनों की चपेट में आने से हाथियों की जान चली जाती है। कांजीकोड-मदुक्कराई रेलवे ट्रैक में, दो रेलवे ट्रैक लाइनें, ए और बी वन भूमि से गुजरती हैं। 2016 में चलती ट्रेन की चपेट में आने से सात हाथियों की मौत हो गई थी।

हाथियों को ट्रेनों की चपेट में आने से रोकने के लिए लोको पायलटों को चेतावनी देने को साइन बोर्ड, ट्रैक के किनारों पर वनस्पतियों की सफाई, गति प्रतिबंध (दिन के समय 65 किमी प्रति घंटे और रात के समय में 45 किमी प्रति घंटा), ऊंचे तटबंधों पर हाथी रैंप, हाथियों को भगाने के लिए रोशनी आदि कदम उठाए गए हैं।

दक्षिण रेलवे के पलक्कड़ डिवीजन के अधिकारी, जो कांजीकोड-मदुक्कराई ट्रैक का प्रबंधन कर रहे हैं, ने भी कहा कि रेलवे और वन विभाग के अधिकारियों का व्हाट्सएप ग्रुप भी ट्रेनों की चपेट में हाथियों को आने से रोकने का एक प्रयास है।

मानव-हाथी संघर्ष बढ़ने को रोकने के लिए तमिलनाडु वन विभाग द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए वन सीमाओं के करीब रहने वाले लोगों के बीच नियमित जागरूकता पैदा की जाती है। इसके अलावा भी अन्य कई सख्त कदम उठाए जा रहे हैं।

–आईएएनएस

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