अदालत के आदेश की प्रमाणित प्रति नहीं मिलने की वजह से जेल से कैदियों की रिहाई नहीं होना अब अतीत की बात होने जा रही है। न्यायपालिका के हस्तक्षेप से अब देश की सभी जेलों को आधुनिक संचार व्यवस्था से जोड़ा जा रहा है ताकि जमानत प्राप्त करने वाले कैदियों के अदालती आदेश अविलंब जेल पहुंच जाएं और उन्हें अनावश्यक ही सलाखों के पीछे नहीं रहना पड़े।
जेलों तक तत्परता से अदालती आदेश पहुंचाने की यह डिजिटल व्यवस्था निश्चित ही कैदियों को संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त वैयक्तिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की रक्षा करने वाला बेहद महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
हमारी व्यवस्था में यह कोई नई बात नहीं थी कि जमानत का आदेश मिलने के बाद भी कई कई दिन तक कैदियों की जेल से रिहाई नहीं होती।
न्यायालय का स्पष्ट मत रहा है कि संविधान ने प्रत्येक नागरिक को अनुच्छेद 21 के अंतर्गत दैहिक स्वतंत्रता प्रदान की है लेकिन जेल से रिहाई के मामले में अक्सर ही इस अधिकार के हनन खबरें मिलती रहती हैं।
कभी जेल अधिकारी अदालत के प्रमाणित आदेश की प्रति नहीं मिलने तो कहीं दूसरी तरह के नुक्स निकाल कर जमानत पाने वाले कैदियों की रिहाई में विलंब करते थे।
ऐसे ही एक मामले मे उच्चतम न्यायालय ने आठ जुलाई को आगरा की जेल में 14 से लेकर 22 सालों से बंद 13 व्यक्तियों, जो किशोर थे, को जमानत प्रदान की थी। जमानत मिलने के बावजूद इन कैदियों की आठ दिन तक रिहाई नहीं होने की घटना का न्यायालय ने संज्ञान लिया था।
इस घटना के बाद ही न्यायालय ने कैदियों की रिहाई के लिये न्यायिक आदेश पहुंचाने की इस पुरानी व्यवस्था को बदलने तथा डिजिटल माध्यम से आदेश संप्रेषित करने की दिशा में यह कदम उठाया है।
न्यायालय ने फास्टर नाम की एक ऐसी व्यवस्था शुरू करने का निश्चय किया जिसमें ‘कागो हाथ संदेशा भेजने’ की कहावत बीते दिनों की बात हो जाये और कैदियों की रिहाई में विलंब नहीं हो।
प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि राज्यों ने एक काम को सुचारू रूप देने के लिए नोडल अधिकारियों की नियुक्ति कर दी है और ऐसी स्थिति में वह शीघ्र ही इस बारे में विस्तृत आदेश पारित करेगा। हाल ही में चार पांच अदालतों में इस प्रस्तावित व्यवस्था का सफल परीक्षण किया गया।
इस व्यवस्था को फास्टर (फास्ट एंड सिक्योर ट्रांसमिशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डस) नाम दिया गया है।
न्यायालय ने जेल में बंद कैदियों की वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करते हुए अब न्यायिक आदेश की प्रमाणित प्रति दस्ती तरीके से भेजने की बजाए जमानत संबंधी आदेश डिजिटल तरीके से संप्रेषित करने का निर्णय किया है।
शीर्ष अदालत का प्रयास रहा है कि डिजिटल प्रणाली के माध्यम से न्यायिक आदेश संप्रेषित करने की व्यवस्था पर एक महीने के भीतर ही क्रियान्वयन हो जाए। इसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए न्यायालय ने पिछले महीने ही बेहतर इंटरनेट की सुविधा उपलब्धता के बारे में सभी राज्यों से जेलों में इस सुविधा की उपलब्धता पर जवाब मांगा था।
अब चूंकि इस नयी व्यवस्था का परीक्षण सफल रहा है, इसलिए अगले कुछ दिनों में ही इस योजना को लागू करने के बारे में न्यायालय का आदेश आ जाने की उम्मीद है।
डिजिटल तरीके से न्यायिक आदेश संप्रेषित करने की नयी व्यवस्था प्रभावी होने के बाद जेल अधिकारियों के लिये अदालत के आदेश की प्रमाणित प्रति नहीं मिलने या ऐसे ही किसी अन्य बहाने से जमानत पाने वाले व्यक्ति की रिहाई में विलंब करने की गुंजाइश नहीं रह जाएगी।
इस व्यवस्था से देश के दूरदराज इलाकों की जेलों में बंद कैदी भी लाभान्वित होंगे जिन्हें जेल प्रशासन आदेश की दस्ती प्रति के अभाव में कई कई दिन तक रिहा ही नहीं करता था।
फास्टर योजना लागू करने के बारे में न्यायिक आदेश मिलने के बाद संबंधित जेलों, जिला अदालतों और उच्च न्यायालयों तक न्यायिक आदेशों को पहुंचाने में विलंब नहीं होगा। इससे समय की बचत होने के साथ ही जेलों में कैदियों की भीड़ कम करने में भी मिलेगी।
उम्मीद की जानी चाहिए कि कार्यपालिका के स्तर पर इस न्यायिक आदेश के क्रियान्वयन में किसी प्रकार की ढिलाई नहीं की जायेगी और राज्य सरकारें इस पर प्रभावी तरीके से अमल के लिए भी प्रकार के बहाने की बजाये जेलों में बेहतर इंटरनेट सुविधा भी सुनिश्चित करेंगी। यदि यह योजना सफल हो गयी तो निश्चित ही कैदियों की रिहाई का काम तेजी से होने लगेगा।