नई दिल्ली । हाल ही में इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (आईएमएफ) ने पाकिस्तान को एक और किस्त की मंजूरी देते हुए फिर से ‘कंगालिस्तान’ को खैरात में 7 अरब डॉलर का फंड दिया। अब आईएमएफ ने पाक सरकार से विदेश से भेजे गए पैसे पर मिलने वाले प्रोत्साहन पर खर्च कम करने का आदेश दिया है। इसे लेकर पाकिस्तानी विशेषज्ञों की चिंता बढ़ गई है। एक्सपर्ट्स को चिंता है कि कहीं पैसे का फ्लो वापस गैरकानूनी चैनलों की तरफ न चला जाए।
निक्केई एशिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, विश्लेषकों को डर है कि अगर इन प्रोत्साहनों में कटौती की गई तो आधिकारिक बैंकिंग चैनल कमजोर पड़ सकते हैं। फिर इसकी वजह से बैंकिंग बड़ी मात्रा में रेमिटेंस, हवाला और हुंडी जैसे गैरकानूनी, अनौपचारिक नेटवर्क की ओर मुड़ जाएगी।
आईएमएफ ने इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान के 7 बिलियन डॉलर के बेलआउट प्रोग्राम के दूसरे रिव्यू के बाद एक स्टाफ-लेवल रिपोर्ट जारी की है। इसमें आईएमएफ ने पाकिस्तान को इंसेंटिव पर कम खर्च करने के लिए कहा है।
रिपोर्ट में, आईएमएफ ने कहा कि क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट की लागत कम करने से सरकार की ओर से फंड की जाने वाली इंसेंटिव की जरूरत कम हो जाएगी। पाकिस्तान रेमिटेंस में शामिल रुकावटों और लागतों का आकलन करने और एक एक्शन प्लान तैयार करने की योजना बना रहा है। इसके साथ ही इन इंसेंटिव के लिए फिस्कल सपोर्ट को काफी कम कर रहा है।
रेमिटेंस पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में एक अहम भूमिका निभाते हैं। रेमिटेंस देश के लिए फॉरेन एक्सचेंज का सबसे बड़ा सोर्स हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में पाकिस्तान को लगभग 38 बिलियन डॉलर का रेमिटेंस मिला। यह उसकी लगभग 32 बिलियन डॉलर की एक्सपोर्ट कमाई से ज्यादा था। सरकार अभी आधिकारिक चैनल से भेजे गए पैसे पर बैंकों और एक्सचेंज कंपनियों को कैश रिबेट देकर इंसेंटिव देती है।
ये फायदे अक्सर बेहतर एक्सचेंज रेट या छोटे बोनस के रूप में विदेश में रहने वाले पाकिस्तानियों को दिए जाते हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में लगभग 27 बिलियन डॉलर के बड़े व्यापार घाटे की वजह से पाकिस्तान का भुगतान संतुलन (बीओपी) दबाव में है।
हालांकि, मजबूत रेमिटेंस इनफ्लो ने देश को लगभग 2 बिलियन डॉलर का छोटा करंट अकाउंट सरप्लस रिकॉर्ड करने में मदद की। बावजूद इसके विदेशी पूंजी प्रवाह के दूसरे सोर्स कमजोर रहे और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लगभग 2 बिलियन डॉलर है। इसकी वजह से करेंसी को सपोर्ट करने और एक अन्य विदेशी मुद्रा संकट को रोकने के लिए रेमिटेंस बहुत जरूरी हो गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की तुलना में रेमिटेंस का पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा असर पड़ता है।
–आईएएनएस











