बिहार में जहरीली शराब से हुई मौतों ने नीतीश सरकार की परेशानी बढ़ा दी है. बिहार में छह साल पहले सरकार ने शराब पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी थी. इसके लिए बाकायदा कानून पास हुआ और यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सबसे महत्त्वाकांक्षी योजना है. लेकिन यह भी सच है कि शराबबंदी के बावजूद बिहार में शराब बेची-खरीदी जा रही है. गांव-देहातों में तो यह एक घरेलू धंधा बन गया है और एक बड़ा नेटवर्क शराब बनाने के धंधे से जुड़ गया है. इस काम में स्थानीय स्तर पर शराब बनाने और बेचने वालों को पुलिस और प्रशासन का साथ भी मिलता है. थानों की कमाई बेइंतहा बढ़ी है और दारोगा-सिपाही अमीर बनते जा रहे हैं.
बिहार भाजपा के अध्यक्ष और सांसद संजय जायसवाल ने भी सरकार को कठघरे में खड़ा कर डाला है. हालांकि सवाल उन पर भी उठता है. भाजपा सरकार में शामिल है. संजय जायसवाल सीना ठोंक कर कहते हैं कि उनके संसदीय क्षेत्र और जिला में पुलिस व प्रशासन की मदद से शराब का कारोबार चल रहा है. उन्हें यह बात पता थी तो वे इतने दिनों तक खामोश क्यों रहे. जहरीली शराब का मामला सामने आने के बाद ही उनकी अंतरात्मा क्यों जागी. कई और भी सवाल हैं. लेकिन पिछले एक हफ्ते में जहरीली शराब से चालीस से ज्यादा हुई मौतों ने नीतीश कुमार की परेशानी तो बढ़ाई ही है. बीते एक हफ्ते में बेतिया, समस्तीपुर, गोपालगंज, हाजीपुर और मुजफ्फरपुर में जहरीली शराब ने कइयों को लील लिया.
जहरीली शराब से हुई इन मौतों के बाद सरकार पर शराबबंदी की समीक्षा के लिए दबाव बढ़ा है. नीतीश कुमार ने इस मसले पर बैठक करने का एलान भी कर डाला है. सरकार पर यह दबाव भी है कि वह शराबबंदी के अपने फैसले पर फिर से विचार करे और शराब पर लगी पाबंदी को खत्म कर डाले. लेकिन नीतीश कुमार ऐसा करेंगे, लगता नहीं है. यह सही है कि शराबबंदी के बावजूद बिहार में शराब की बिक्री हो रही है लेकिन सच यह भी है कि शराबबंदी को लेकर एक बड़ा तबका जिनमें महिलाओं की बड़ी तादाद है वह नहीं चाहतीं कि नीतीश कुमार शराब पर लगी पाबंदी के फैसले को वापस लें.
यूं शराबबंदी से जुड़े प्रावधान में एक बड़ी छूट पिछले दिनों सरकार ने दी थी. ऐसे में कहा यह जा रहा है कि सरकार इसका दायरा और बढ़ा सकती है. नीतीश कुमार ने कई मौकों पर साफ किया है कि कुछ लोग शराबबंदी के फैसले से खुश नहीं हैं. वे सरकार को अस्थिर करने की कोशिश भी इसलिए ही करते रहते हैं. लेकिन नीतीश कुमार ने दो टूक शब्दों में यह भी कहा था कि इस फैसले को बदला नहीं जाएगा.
बिहार में पूर्ण शराबबंदी कानून 2016 के अप्रैल में लागू हुआ. इस कानून में कई छेद हैं जिसका फायदा शराब माफिया उठाते हैं और शराब का कारोबार धड़ल्ले से जारी है. गांव-कस्बों में तो शराब खुलेआम बनाई-बेची जाती है. पुलिस और प्रशासन का हाथ उनके सर पर होता है. पकड़े जाने पर ले-दे कर काम हो जाता है और फिर से वे अपने धंधे में लग जाते हैं. कानून बने पांच साल से ज्यादा हो गया है लेकिन इस पर अमल के लिए जितनी गंभीरता होनी चाहिए वह नहीं दिखाई दी. कानून की खामियों का फायदा उठा कर नकली शराब बेची जा रही है और इसी का नतीजा है कि इस साल अबतक पंद्रह अलग-अलग घटनाओं में जहरीली शराब से करीब 90 लोगों की मौत हो चुकी है. इन मौतों से सरकार के शराबबंदी पर सवाल और भी गहरे हो गए हैं. सरकार के ढुलमुल रवैये और कार्रवाई के नाम पर महज खानापुरी ने विपक्ष को तो मौका दिया ही सरकार में शामिल भाजपा भी आंखे तरेर रही है.
इस साल होली के बाद ही जहरीली शराब से बेगूसराय में छह, रोहतास में एक, कैमूर में दो, गोपालगंज में चार लोगों की मौत हुई थी. फिर वैशाली, सीवान में पांच लोगों की मौत हो गई थी. होली के ठीक बाद नवादा जिले के टाउन थाना क्षेत्र के गांवों में जहरीली शराब ने सोलह लोगों को लील लिया था. फिर जुलाई में पश्चिमी चंपारण में भी एक दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. अक्तूबर के अंत में मुजफ्फरपुर में और अब गोपालगंज, समस्तीपुर और बेतिया में चालीस से ज्यादा लोगों की जान जहरीली शराब पीने से हो गई है. इन मौतों ने प्रशासन पर सवाल खड़े कर दिए हैं. लोगों का कहना है कि मौतों का आंकड़ा कहीं ज्यादा हैं लेकिन आधिकारिक पुष्टि 90 लोगों की ही हो पाई है.
जहरीली शराब से हुई मौतों को नीतीश सरकार की कार्रवाई भी लोगों के गले नहीं उतर रही है. पूर्व पुलिस अधिकारी और नीतीश सरकार में मद्य निषेध मंत्री सुनील कुमार का कहना है कि सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और इस साल लगभग सात सौ पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई हुई है. लेकिन सच तो यह है कि कार्रवाई चौकीदार और थानेदार स्तर से आगे नहीं बढ़ी है. शराब के इस खेल में बड़े अधिकारी और माफिया शामिल हैं लेकिन कार्रवाई चौकीदारों और थानेदारों पर होती है और बड़ी मछलियां छूट जाती हैं. नतीजा सामने है.
राज्य सरकार जिन सात सौ पुलिसकर्मियों को बर्खास्त करने का दावा कर रही है, उसमें चौकीदार, थानेदार स्तर के अधिकारी ही हैं. डीएसपी या जिले के किसी एसपी के खिलाफ सरकार ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की है. विपक्ष इसे लेकर सरकार को घेर रहा है और सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की है. विपक्ष का आरोप है कि बिहार में शराबबंदी पूरी तरह फेल हो चुका है. सरकार एक बार फिर राज्य में शराबबंदी की समीक्षा करे.
दिलचस्प यह है कि भाजपा सांसद संजय जायसवाल ने भी पुलिस और प्रशासन पर गंभीर आरोप लगा कर अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर डाला है. दरअसल भाजपा इस शराबबंदी के पक्ष में नहीं है. नीतीश कुमार ने जब शराबबंदी कानून लागू किया था तब बिहार में वे राजद के साथ सरकार में थे. भाजपा ने तब भी इसका विरोध किया था. इसलिए भाजपा नीतीश कुमार पर परोक्ष रूप से हमले कर रही है लेकिन दिक्कत यह है कि सरकार में वह भी शामिल है इसलिए उसकी नीयत पर सवाल ज्यादा उठेंगे. सरकार के शामिल दलों ने विपक्ष के हमले का जवाब तो दिया लेकिन जो तर्क गढ़ा वह गले नहीं उत रहा है. सत्ताधारी दलों का कहना है कि विधानसभा उपचुनाव में हार के बाद विपक्ष ने जहरीली शराब कांड की साजिश रची. पहले नीतीश सरकार में शामिल भाजपा कोटे से मंत्री जनक राम ने विपक्ष को कटघरे में खड़ा किया फिर जीतन राम मांझी की पार्टी हम ने भी इसे विपक्ष की साजिश करार दिया.
जहरीली शराब से हुई मौतों पर भी सियासत हो रही है. लेकिन सरकार को यह तय करना होगा कि इन मौतों के लिए जिम्मेदार कौन है और जिम्मेदारी तय कर उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी होगी. फिर कानून को भी और सख्त बनाना होगा. शराब के खेल में बेइंतहा पैसा है. शराब माफिया पकड़े जाते हैं. बहुत सारे लोग ले-दे कर छूट जाते हैं. कुछ जेलों में बंद रहते हैं और फिर छूटने के बाद फिर से धंधा करने में लग जाते हैं. होना तो यह चाहिए कि शराब के कारोबारियों के साथ सरकार सख्ती बरते और उनकी संपत्तियों को जब्त करे. तब इस पर अंकुश लग सकता है. ऐसा भी कहा जा रहा है कि बिहार में शराब के अवैध कारोबार और जहरीली शराब कांड के लिए अधिकारी ज्यादा जिम्मेदार हैं जो शराब माफिया के साथ मिलकर खेल खेल रहे हैं राज्य के कई जिलों में जो जहरीली शराब कांड हुए हैं, उसके पीछे इन अधिकारियों की बड़ी भूमिका है
नीतीश कुमार ने इसे दुखद बताते हुए शराबबंदी पर विस्तृत समीक्षा करने की बात कही है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि गलत चीज का सेवन कीजिएगा तो यह नौबत आएगी. छठ के बाद इसकी विस्तृत समीक्षा करेंगे. हर दिन लोग पकड़े जा रहे हैं. फिर भी खास इलाके में शराब बनाई जा रही है. एक बार फिर से कैंपेन चलेगा. जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी कहा कि शराब गलत चीज है, स्वास्थ्य के लिए अहितकर है. इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए लोग शराब न पीएं, इसलिए सरकार ने शराबबंदी कानून को लागू किया, लेकिन इस कानून के क्रियान्वयन में जब तक आम लोगों का हर तरह से सहयोग नहीं मिलेगा तब तक नीतीश कुमार के शराब बंदी कानून के मकसद पूरा नहीं हो पाएगा. उन्होंने लोगों से अपील की कि शराब पीना बंद करना चाहिए. उन्होंने कहा कि लोग मानते नहीं हैं और चोरी-छिपे शराब का सेवन कर लेते हैं. उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ता है.
दिलचस्प यह है कि इस तरह के मामलों के सामने आने के बाद धर-पकड़ तेज हो जाती है, भट्ठियां तोड़ी जाती हैं. शराब बनाने की सामग्री को नष्ट किया जाता है. सवाल यह है कि वही पुलिस जो इन घटनाओं के बाद सक्रिय रहती है वह इससे पहले क्यों सोई रहती है. अभी की तरह पुलिस पहले भी जागती रहती तो इतने लोगों की जानें नहीं जातीं. सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा और जिला के बड़े अधिकारियों पर भी नकेल कसना होगा.
इंडिया न्यूज स्ट्रीम