विपक्षी एकता के नायक नीतीश कुमार

जदयू राष्ट्रीय परिषद की बैठक के ठीक एक दिन बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्ष जोड़ो मिशन के लिए दिल्ली निकले। राष्ट्रीय परिषद की बैठक में हालांकि भाजपा को केंद्र की सत्ता से बेदखल करने की बात सभी ने की लेकिन इसी बैठक में यह भी साफ हुआ कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने मंच से साफतौर पर इसका एलान कर एक तरह से इस चर्चा पर विराम लगा दिय़ा, लेकिन इसी बैठक में नीतीश कुमार ने जो कहा उसका लब्बोलुआब यह था कि वे विपक्ष एकता का चेहरा जरूर हैं और इसी एकता के तहत वे दिल्ली मिशन पर कूच कर गए। इस कूच से पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर पटना पहुंचे और भविष्य की सियासत को नई धार दी। नए साथियों के गठबंधन के साथ ही सियासी फिजा कुछ बदली-बदली दिख रही है। जदयू कार्यालय के बाहर नए नारे इस सियासत के संकेत दे रहे हैं। माना वैसे इन नारों के जरिये नीतीश कुमार में अगले प्रधानमंत्री के उम्मीदवार को देखा जारहा है। लेकिन जदयू और नीतीश कुमार साफ कहते हैं वे इस तरह की दावेदारी नहीं करते। वे विपक्षी एकता के पक्ष में हैं और इन नारों में उस बदलाव को तलाशा जाना चाहिए। ‘प्रदेश में दिखा, देश में दिखेगा’ जैसे नारों को लेकर भले कयास लगाए जा रहे हों लेकिन इस नारे को दूसरे परिपेक्ष्य में भी देखने की जरूरत है। भाजपा से नाता तोड़ने के बाद नीतीश कुमार विपक्षी एकता के नए नायक के तौर पर सामने आए हैं। नीतीश कुमार के तीन दिनों के दिल्ली प्रवास पर यह दिखा भी।

हालांकि अभी से कुछ कहना बहुत जल्दबाजी होगी और कई तरह के विचारधाराओं को एक मंच पर लाना आसन नहीं है लेकिन नीतीश कुमार इस मुहिम मे जुट गए हैं। वैसे बिहार में वे सरकार सात दलों के गठबंधन की चला रहे हैं। एआईएमआएम ने भी उन्हें बाहर से बिना शर्त समर्थन दिया है। बिहार में वामपंथी दलों के अलावा कांग्रेस, राजद और हम के साथ उनका गठबंधन है। इन दलों को वे साथ लेकर चल रहे हैं और चलेंगे। परेशानी दूसरे दलों को साथ लेने में आएगी। केसीआर, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल कितना साथ देते हैं, देखना यह होगा। ज्यादा दिक्कत ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल खड़ी कर सकते हैं।

बिहार में भाजपा को सत्ता से दूर करने के बाद नीतीश कुमार मिशन 2024 में जुट गए हैं। इसी मिशन के तहत वे दिल्ली गए। तीन दिनों के दिल्ली प्रवास पर वे ग्यारह अलग-अलग सियासी पार्टियों के नेताओं से मिले और एकजुटता का संदेश दिया। वे विपक्ष के तमाम बड़े नेताओं से मिले। इनमें कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और जनता दल सेकुलर नेता एचडी कुमारस्वामी, माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव,भाकपा नेता डी। राजा। भाकपा (माले) नेता दीपांकर भट्टाचार्या हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला,पुराने साथी शरद यादव और राकांपा सुप्रीमो शरद पवार शामिल हैं। नीतीश कुमार ने इन मुलाकातों को सार्थक बताया और कहा कि हम मिल कर भाजपा को सत्ता से बेदखल करेंगे और देश को बचाएंगे।

लोकसभा का चुनाव होने में करीब डेढ़ साल का समय है। इसलिए जरूरी है कि अपने मतभेदों को भुला कर विपक्षी दल एक हों और भाजपा को सत्ता से बेदखल करें। नीतीश कुमार का संदेश साफ है। इसलिए वे लगातार अपने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को लेकर कुछ नहीं बोलते हैं। जदयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में भी उन्होंने अपने नेताओं कार्यकर्ताओं को कुछ ऐसा ही संदेश दिया। उनका कहना था कि राष्ट्रीय स्तर पर एक एजंडा बने और फिर उसी एजंडे के तहत सभी दल आगे बढ़ें। पार्टी ने भी उन्हें प्रधानमंत्री की बजाय विपक्षी एकता का चेहरा बता कर दूसरे दलों को भी संदेश दिया है। दिल्ली दौरे पर नीतीश ग्यारह नेताओं से मिले। उनको अपने मकसद में क्या मिला, क्या हासिल हुआ, यह जानने के लिए सबकी नजर नीतीश और बाकी नेताओं के बयान पर रही। कांग्रेस नेता राहुल गांधी से पहली और एनसीपी नेता शरद पवार से आखिरी राजनीतिक मुलाकात के बाद नीतीश ने कहा कि सबका रिस्पांस बहुत पॉजिटिव रहा। उन्होंने कहा कि सब एक साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे तो देश के लिए अच्छा होगा। खुद की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर एकबार फिर नीतीश ने विपक्षी दलों को संदेश दिया। उनका कहना था कि उन्हें अगुआ नहीं बनना है, सबको साथ लाना है। जिसे बनना होगा, आपस में बात करके चुन लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि भाजपा पूरे देश पर कब्जा करना चाहती है इसलिए एकजुट होना जरूरी है।

हालांकि विपक्षी एकता में ममता बनर्जी को लेकर कई तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं। सवाल इसलिए की नीतीश की कोशिश कांग्रेस और वाम दलों को साथ लेकर विपक्षी एकता की है। ममता और केसीआर को कांग्रेस से परहेज हो सकता है। वाम दलों के साथ भी ममता सहज नहीं रहेंगी क्योंकि बंगाल में सत्ता तो वाम दलों से ही उन्होंनो छीनी थी। हालांकि नीतीश के दिल्ली के दौरे के बाद ममता बनर्जी का विपक्षी एकता को लेकर आए बयान से नीतीश कुमार और जदयू उत्साहित है। ममता ने नीतीश कुमार सहित दूसरे नेताओं का जिक्र करते हुए साफ कहा कि हम एकजुट होकर भाजपा को देश से भगा सकते हैं।

ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव गुट) और ओड़ीशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक व बीजू जनता दल के नेताओं से भी नीतीश की मुलाकात प्रस्तावित है। बिहार में भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद से ही नीतीश लगातार विपक्षी नेताओं से संपर्क साध रहे हैं। अगर, नीतीश के प्रयास सफल रहे तो 2024 के चुनाव से पहले भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के साथ-साथ सभी क्षेत्रीय पार्टियां साथ आ सकती हैं। यह पहली बार नहीं है, जब नीतीश महागठबंधन बनाने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं। 2015 में भी उन्होंने कोशिश की थी, लेकिन तब वे सफल नहीं हो सके थे। फिलहाल कहा जा सकता है कि शगुन तो ठीक हुआ है। दिल्ली दौरे पर उनकी मुलाकातों को सही दिशा में देखा जा सकता है। वैसे यह आगाज है। अभी लंबा सफर है। यह सफर बहुत आसान भी नहीं होगा। नीतीश भी इस सच को जानते हैं। फिलहाल तो इंतजार करें। देश की सियासत किस करवट बैठती है।

————-इंडिया न्यूज़ स्ट्रीम

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