प्रधानमंत्री से कोई मांग करना उनका अपमान करना कैसे हुआ संजय जायसवाल जी !

बिहार में जदयू और भाजपा के बीच तलवारें तनीं हैं. बयानों के वार हो रहे हैं. वार पर वार. बयान का जवाब बयान से. एनडीए के दो प्रमुख घटक के बीच तल्खी देखी जा सकती है. इस तल्खी को सरकार के सामने संकट के तौर पर देखा भी जा रहा है. बात सम्राट अशोक के अपमान से शुरू हुई और नालंदा में जहरीली शराब से हुई मौतों तक जा पहुंची. सम्राट अशोक को लेकर साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नाटककार दयाप्रकाश सिन्हा ने एक इंटरव्यू में अमर्यादित टिप्पणी की थी. जदयू ने इसका कड़े शब्दों में विरोध किया. पहले जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और फिर संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने सम्राट अशोक के अपमान की बात सार्वजनिक की और उनसे अवार्ड वापस लेने की गुहार केंद्र सरकार से की.

दयाप्रकाश सिन्हा को इसी साल उनकी नाट्य कृति सम्राट अशोक के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया है. दयाप्रकाश सिन्हा का जुड़ाव भाजपा से भी रहा है. वैसे यह बात विवाद के बाद सामने आई. विवाद से पहले तक उन्हें भाजपा से ही जुड़ा समझा जा रहा था. स्रमाट अशोक के लिए अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल दयाप्रकाश सिन्हा ने किया. जदयू और कई सामाजिक संगठनों ने इसके खिलाफ बिहार भर में आवाज बुलंद की तो भाजपा उनके बचाव में सामने आई. लेकिन बाद में उनकी समझ में आया कि दयाप्रकाश सिन्हा ने तो एक दशक पहले ही भाजपा छोड़ दी थी. तो बिहार भाजपा और उसके अध्यक्ष संजय जायसवाल बैकफुट पर आए. उन्होंने नफरत फैलाने के लिए दयाप्रकाश सिन्हा पर मुकदमा तक कर दिया. अपने एफआईआर में उन्होंने लिखा है कि दयाप्रकाश सिन्हा अपने विकिपिडिया पेज के जरिया गलत जानकारी देते हैं कि वे भाजपा सांस्कृतिक सेल के राष्ट्रीय संयोजक हैं. लेकिन वे इस गलतबयानी के लिए दयाप्रकाश सिन्हा पर कार्रवाई के लिए पुलिस से नहीं कहते हैं. सवाल यह भी है कि अगर दयाप्रकाश सिन्हा ने जानबूझ कर अपनी पहचान को गलत तरीके से सोशल मीडिया पर अब तक बनाए रखा है तो फिर क्या ऐसे व्यक्ति को साहित्य अकादमी या पदमश्री अवार्ड से नवाजा जा सकता है. यह बड़ा सवाल है.

सम्राट अशोक को लेकर भाजपा की प्रतिक्रिया भी समझ से परे है. क्या वह इस मामले को किसी जाति विशेष से जोड़ कर देख रही है, अगर इसका सवाल हां है तो फिर भाजपा की बिहार इकाई को साफ कर देना चाहिए कि सम्राट अशोक के अखंड भारत से उनका कोई लेनादेना नहीं है और वह सम्राट अशोक को महान नहीं मानती है. लेकिन अगर ऐसा नहीं है और बिहार व बिहारियत की परवाह है तो भाजपा और उसके प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल को पुरस्कार वापस करने की मांग केंद्र सरकार या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करनी चाहिए. लेकिन वह ऐसा न कर अपने ही सहयोगी दल से दो-दो हाथ करने में लगी है जबकि मुद्दा बिहार का है, किसी दल का नहीं.

हद तो यह है कि संजय जायसवाल ने जदयू नेताओं को मर्यादा में रहने की चेतावनी दे डाली. उन्होंने फेसबुक पोस्ट के जरिए कहा कि गठबंधन एकतरफा नहीं चलेगा. जदयू का यही रवैया रहा तो भाजपा की तरफ से भी ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा. भाजपा के भी बिहार में 76 लाख कार्यकर्ता हैं. भाजपा को भी जवाब देने आता है. उन्‍होंने बिना नाम लिए जदयू अध्‍यक्ष ललन सिंह, उपेंद्र कुशवाहा और दूसरे नेताओं पर इशारों-इशारों में निशाना साधा.

संजय जायसवाल ने तंज कसते हुए लिखा- चलिए माननीय जी को यह समझ आ गया कि एनडीए गठबंधन का निर्णय केंद्र का है और बिल्कुल मजबूत है इसलिए हम सभी को साथ चलना है. फिर बार-बार महोदय मुझे और केंद्रीय नेतृत्व को टैग कर न जाने क्यों प्रश्न करते हैं. एनडीए गठबंधन को मजबूत रखने के लिए हम सभी को मर्यादाओं का ख्याल रखना चाहिए. यह एकतरफा अब नहीं चलेगा. संजय ने आगे कहा कि इस मर्यादा की पहली शर्त है कि देश के प्रधानमंत्री से ट्विटर-ट्विटर न खेलें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर भाजपा कार्यकर्ता के गौरव भी हैं और अभिमान भी. उनसे अगर कोई बात कहनी हो तो जैसा माननीय ने लिखा है कि बिल्कुल सीधी बातचीत होनी चाहिए. टि्वटर-टि्वटर खेलकर अगर उनपर सवाल करेंगे तो बिहार के 76 लाख भाजपा कार्यकर्ता इसका जवाब देना अच्छे से जानते हैं. मुझे पूरा विश्वास है कि भविष्य में हम सब इसका ध्यान रखेंगे. उन्‍होंने लिखा- आप सब बड़े नेता है. एक बिहार में एवं दूसरे केंद्र में मंत्री रह चुके हैं. फिर इस तरह की बात कहना कि राष्ट्रपति के दिए गए पुरस्कार को प्रधानमंत्री वापस लें, से ज्यादा बकवास हो ही नहीं सकता.

लेकिन संजय जायसवाल क्या यह नहीं जानते हैं कि पद्म पुरस्कार या साहित्य अकादमी पुरस्कार केंद्र सरकार देती है. उनकी यह बात बचकाना ही ज्यादा लगती है. दिलचस्प यह है कि संजय जायसवाल बिहार सरकार से फैसला लेने की बात कर रहे हैं. वे सोशल मीडिया पर लिखते हैं कि सबसे पहले बिहार सरकार दया प्रकाश सिन्हा जी को मेरे एफआइआर के आलोक में गिरफ्तार करे और फास्ट ट्रैक कोर्ट से तुरंत सजा दिलवाए. फिर बिहार सरकार का एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति के पास जाकर हम सबों की बात रखें कि एक सजायाफ्ता मुजरिम से पद्मश्री पुरस्कार वापस लिया जाए. बिहार सरकार अच्छे वातावरण में शांति से चले, यह सिर्फ हमारी जिम्मेदारी नहीं बल्कि आप की भी है. अगर कोई समस्या है तो हम सब मिल बैठकर उसका समाधान निकालें. हमारे केंद्रीय नेताओं से कुछ चाहते हैं तो उनसे भी सीधे बात होनी चाहिए.

जायसवाल फिर धमकाते हैं कि हम हरगिज नहीं चाहते हैं कि पुनः मुख्यमंत्री आवास 2005 से पहले की तरह हत्या कराने और अपहरण की राशि वसूलने का अड्डा हो जाए. अभी भेड़िया स्वर्ण मृग की भांति नकली हिरण की खाल पहनकर अठखेलियां कर जनता को आकृष्ट कर रहा है. एक पूरी पीढ़ी जो 2005 के बाद मतदाता बनी है, वह उन स्थितियों को नहीं जानती और बिना समझे कि यह रावण का षड्यंत्र है, स्वर्ण मृग पर आकर्षित हो रही है. यथार्थ बताना हम सभी का दायित्व भी है और कर्तव्य भी.

संजय जायसवाल का जवाब सोशल मीडिया के जरिए पहले उपेंद्र कुशवाहा ने और फिर ललन सिंह ने दिया. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि गठबंधन धर्म को लेकर जो बातें आपने कही है, उससे हम सहमत हैं लेकिन सम्राट अशोक को लेकर कही बात से हम सहमत नहीं हैं. उन्होंने संजय जायसवाल के बयान को भटकाने वाला बताया और कहा पहले यह बताएं कि पुरस्कार वापसी का सवाल गलत है या सही. पुरस्कार वापसी की मांग से आप सहमत हैं तो फिर हम मिल बैठ कर तय करें कि इसके लिये गुहार प्रधानमंत्री से की जाए या राष्ट्रपति से. लनल सिंह ने कहा कि बोलने से पहले तथ्यों को समझना जरूरी है. बिना तथ्य के बात करना सही नहीं है. ज्यादा उतावले हैं तो गांधी मैदान है, वहां जाकर फरिया लें. उन्होंने कहा कि सम्राट अशोक पर अभद्र टिप्पणी करने वाले लेखक की पुरस्कार वापसी की मांग प्रधानमंत्री से ही का जा सकती है. वे सक्षम हैं और पूरे देश में कोई भी यह किसी तरह की मांग प्रधानमंत्री से कर सकता है.

इस मुद्दे पर तलवारें म्यान से निकली हुईं हैं. शराबबंदी पर भी तकरार जारी है लेकिन संजय जायसवाल के सवालों पर उनकी ही पार्टी के सुशील मोदी ने करारा जवाब देकर संजय जायसवाल की बोलती बंद कर दी है. जाहिर है कि सुशील मोदी के हमले से भाजपा भी सकते में है और संजय जायसवाल भी. कई दिनों से संजय जायसवाल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को घेरने में लगे थे लेकिन सुशील मोदी की गुगली ने संजय जायसवाल को बैकफुट पर ला दिया है. सम्राट अशोक के मुद्दे पर जदयू का रुख साफ है. बिहार में कई सामाजिक संगठन लगातार आंदोलित हैं. भाजपा की अतिसक्रियता खुद उसकी विश्वसनीयता और नीयत पर सवाल खड़े करते हैं. संजय जायसवाल की नीयत अगर सही थी तो अपने एफआईआर पर कार्रवाई के लिए वे अपनी ही सरकार पर दबाव बनाते और पुलिस प्रमुख से मिल कर बात करते, लेकिन ऐसा करने की बजाय खबरों में बने रहने में उन्होंने ज्यादा

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