देश में करीब 20 साल बाद जेनेटिकली मोडिफाइड सरसों की खेती को मंजूरी मिल गई है। जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति ने व्यावसायिक खेती के लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित यानि जेनेटिकली मोडिफाइड सरसों को मंजूरी दे दी है।
चालू रबी सीजन में ही जीएम सरसों का फील्ड ट्रायल शुरू हो जाएगा। इंडियन काउंसिल एग्रीकल्चरल रिसर्च (आइसीएआर) के विज्ञानियों की देखरेख में देश के दर्जनभर विभिन्न रिसर्च सेंटरों पर अगले सप्ताह जीएम सरसों की बोआई हो जाएगी। कृषि क्षेत्र के थिंक टैंक ‘नास’ और ‘टास’ के विज्ञानियों ने सरकार की इस पहल का स्वागत करते हुए बताया ‘जीएम सरसों के किसानों के खेतों तक पहुंचाने में अभी दो से तीन साल लग सकते हैं। जीएम टेक्नोलाजी को लेकर सरकार की 20 वर्षों की नीतिगत पंगुता खत्म होने से कृषि क्षेत्र में क्रांति आ सकती है।’
नास के अध्यक्ष त्रिलोचन महापात्र ने कहा कि अब आइसीएआर इसकी उत्पादकता का परीक्षण करेगा। उन्होंने कहा आइसीएआर के भरतपुर स्थित सरसों अनुसंधान संस्थान को जीएम सरसों के बीज सौंप दिए गए हैं, जिसे उसने अपने विभिन्न रिसर्च सेंटर भरतपुर, गंगानगर, बनारस, कानपुर और लुधियाना में बोआई के लिए भेज दिया है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ कृषि विज्ञान केंद्रों पर भी इसकी बोआई की जा सकती है।
गौरतलब हो जीएस सरसों को साल 2002 में ही तैयार कर लिया गया था लेकिन तब इसके इस्तेमाल को मंजूरी नहीं मिली थी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा करवाए प्लॉट स्तरीय परीक्षणों के बाद ये दावा किया गया है कि यह कई स्थानीय प्रजातियों से 30% तक अधिक उत्पादन दे सकती है।
जीएम फसल वे होती हैं जो कि वैज्ञानिक तरीके से रूपांतरित करके तैयार की जाती हैं। सरसों की इस किस्म को लेकर दावा किया गया है कि इससे सरसों के उत्पादन में 30% तक वृद्धि होने की संभावना है। जीएम बीजों की फसल को पर्यावरण कि दृष्टि से भी बेहतर बताया जा रहा है। इस संबंध में जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रैजल कमेटी (GEAC) की 147वीं बैठक में सरसों की इस किस्म की सिफारिश को मंजूरी दी गई है। जीईएसी की सिफारिशों को सरकार की मंजूरी मिलने के बाद ही सरसों की इस किस्म को चालू रबी सीजन में उगाना संभव हो पाएगा।
स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय वाहक अश्विनी महाजन ने भूपेंद्र यादव, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री को जीएम सरसों की मंजूरी पर पुनर्विचार करने के लिए पत्र लिखा है।
पत्र में उल्लेख किया गया है, “जीएम सरसों के स्वदेशी होने का दावा और भारत में विकसित किया गया है, गलत है क्योंकि दो जीन ‘बर्नसे’ और ‘बारस्टार’ बैसिलस एमाइलोलिफेशियन्स नामक मिट्टी के जीवाणु से प्राप्त होते हैं। बार-बारस्टार-बर्नेज जीन ‘बायर क्रॉप साइंस’ की पेटेंट तकनीक है। बायर कोई स्वदेशी कंपनी नहीं है,” महाजन ने कहा।
पत्र में आगे उल्लेख किया गया है कि किसानों को हर्बिसाइड ग्लइफोसेट का उपयोग करना होगा जो फसल प्रतिरोधी है और हर्बिसाइड के इस उपयोग से कंपनी को लाभ होगा। यह फसल मधुमक्खियों और अन्य परागणकों के लिए भी हानिकारक हो सकती है।
महाजन ने उल्लेख किया कि गैर-जीएमओ टैग ने भारत को यूरोपीय देशों को खाद्य निर्यात करने में मदद की है जहां जीएमओ प्रतिबंधित है। जीएम सरसों के आने से, भारत गैर-जीएमओ टैग खो देगा और इससे निर्यात में बाधा आएगी।