नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में एक अजीबोगरीब मामले पर सुनवाई हुई। इसमें राजस्थान निवासी एक 75 वर्षीय व्यक्ति ने ये दावा किया कि उसे एक गुप्त मिशन के तरह जासूस बनाकर पाकिस्तान भेजा गया था। वहां पकड़े जाने पर वह 14 साल तक पाकिस्तान के जेल में बंद रहा। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को उस व्यक्ति को अनुग्रह राशि के तौर पर 10 लाख रुपये देने का निर्देश दिया है। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रविन्द्र भट ने की।
वेबसाइट लाइव लॉ डॉट इन के अनुसार, राजस्थान के रहने वाले महमूद अंसारी नामक शख्स ने अपनी याचिका में बताया कि वह 1966 में डाक विभाग में नियुक्त किए गए थे। भारत सरकार के स्पेशल ब्यूरो ऑफ इंटेलीजेंस ने उन्हें 1972 में देश के लिए अपनी सेवाएं देने का प्रस्ताव दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। इसके तहत उन्हें गुप्त मिशन के तौर पर पाकिस्तान में प्रतिनियुक्त किया गया। इस दौरान उन्हें तीन बार वहां भेजा गया। इसमें दो बार तो उनकी किस्मत ने साथ दिया और वह सौंपे गए कार्य को पूरा कर लौट आए, मगर तीसरी बार में उन्हें वहां के रेंजरों ने पकड़ किया और 23 दिसंबर 1976 में उनको जासूसी गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार किया गया। साथ ही उनका कोर्ट मार्शल किया गया। इस दौरान वहां की अदालत ने उन्हें 14 साल का कठोर कारावास की सजा सुनाई।
याचिकाकर्ता ने बताया कि 1989 में जब वह रिहा हुए तो उन्होंने अपनी सेवाएं फिर से देने के लिए अधिकारियों से सम्पर्क किया। तब उन्हें पता चला कि उनकी सेवाओं को 31 जुलाई 1980 को समाप्त कर दिया गया है।
उन्होंने इसके लिए प्रशासनिक न्यायाधिकरण को याचिका दी जो 2000 में खारिज कर दी गई। 2017 में राजस्थान हाईकोर्ट ने भी उनकी याचिका को खारिज कर दिया। तब 2018 में याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में न्याय की गुहार लगाई थी।
मामले में राज्य की तरह से एएसजी बिक्रमजीत बनर्जी ने कहा कि राज्य का इससे कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें याचिकाकर्ता को आखिरी बार 19 नंवबर 1976 में भुगतान किया गया था। 1977 के बाद से याचिकाकर्ता ने वेतन नहीं लिया है।
इस पर सीजेआई ने पूछा कि आप ये स्वीकार करते हैं कि व्यक्ति आपकी सेवा में था इसलिए आपने उसकी सेवा समाप्त की, क्योंकि वह अनुपस्थित था। मगर आपने सेवा समाप्ति की कार्रवाई 1980 यानि चार साल बाद क्यों की। व्यक्ति की अनुपस्थिति में आपने उसकी पत्नी को सूचित कब किया था। इस दौरान कोर्ट ने अदालत के फैसले का भी जिक्र किया।
कोर्ट का फैसला
“मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों में, रिकॉर्ड के आधार पर हमारे विचार में यदि प्रतिवादी याचिकाकर्ता को अनुग्रह राशि के रूप में 10 लाख रुपये का भुगतान किया जाना न्यायपूर्ण होगा। विचाराधीन राशि आज से 3 सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को सौंप दी जाए। यह बिल्कुल स्पष्ट किया जाता है कि इस राशि का भुगतान किसी भी तरह से प्रतिवादियों के दायित्व या याचिकाकर्ता के अधिकार को नहीं दर्शाता है।”
याचिकाकर्ता के वकील की पैरवी पर बढ़ाई राशि
ऐसा कहा जा रहा है कि बेंच ने शुरू में 5 लाख रुपये की बात कही थी। आदेश सुनाए जाने के बाद, वकील ने यह कहते हुए अनुग्रह राशि बढ़ाने का अनुरोध किया कि याचिकाकर्ता अब 75 साल का है और अपनी बेटी पर निर्भर है। वकील ने कहा, “याचिकाकर्ता ने राष्ट्र को अपनी सेवाएं दी हैं, सरकार ने न केवल उसे अस्वीकार कर दिया है बल्कि उसे पेंशन से भी वंचित कर दिया है।” इसके बाद पीठ ने राशि को बढ़ाकर 10 लाख रुपये कर दिया।
————– इंडिया न्यूज़ स्ट्रीम