भारत में लॉकडाउन के बीच 2021 में संघर्षरत था भीलवाड़ा का कपड़ा उद्योग

भीलवाड़ा (राजस्थान), (आईएएनएस/101 रिपोर्ट्र्स)। अजय सिंटेक्स के निखिल काबरा कहते हैं कि भीलवाड़ा में हर तीन में से एक आदमी कपड़ा उद्योग से जुड़ा होता है।

राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में एक वर्ष में 70 करोड़ मीटर से अधिक विभिन्न पॉलिस्टर मिश्रण के धागों का उत्पादन 400 से अधिक बुनाई घरों द्वारा किया जाता है। इसके बाद 19 प्रसंस्करण इकाइयां इन सिंथेटिक धागों से शर्ट और सूट बनाती हैं। इन बुनाई घरों और प्रसंस्करण इकाइयों से लगभग 75,000 लोगों को रोजी रोटी मिलती है।

भारत में भीलवाड़ा को कपड़ा उद्योग का पर्याय कहा जाता है। इसकी कहानी 1935 से शुरू होती है, जब यहां पहले सूती मिल, मेवाड़ टेक्सटाइल मिल की स्थापना की गई थी। इस तरह के कई अन्य उद्योगों ने समय के साथ इसका अनुसरण किया और भीलवाड़ा को भारत की टेक्सटाइल सिटी के रूप में स्थापित कर दिया। इसके बाद 1984 में स्थापित संगम समूह, देश में धागे का अग्रणी उत्पादक बन गया और इस क्षेत्र में यह बहुत अधिक कारोबार लेकर आया। भीलवाड़ा के मयूर सूटिंग्स ने भी बाजार विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कताई घरों के लगभग 8,000 करोड़ रुपये के टर्नओवर और 19,500 रोटर्स के साथ भीलवाड़ा पॉलिस्टर और विस्कोस-मिश्रित धागे के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक है।

राजस्थान सरकार की जनवरी 2021 की उद्योग रिपोर्ट के अनुसार भीलवाड़ा के कपड़ा उद्योगों ने पिछले वर्ष की तुलना में 8 प्रतिशत से 10 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि हासिल की। हालाँकि, यह प्रगति महामारी की चुनौतियों के बिना नहीं थी।

सोना प्रोसेसिंग हाउस के वाणिज्यिक प्रबंधक महेंद्र सिंह नाहर ने कहा, दो लॉकडाउन के दौरान कारखाने तीन महीने के लिये बंद थे। यह एक कठिन समय था क्योंकि हमें करीब 20 प्रतिशत कर्मचारियों को काम से हटाना पड़ा।

प्रसंस्करण इकाई के एक मजदूर राम लाल माली का कहना है कि इस मामले में सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि मजदूरों के अधिकार सुरक्षित रहें।

उन्होंने 101 रिपोर्ट्र्स से कहा, हमने इससे बुरा समय कभी नहीं देखा। बहुत से लोग कर्ज में डूबे हुये थे और हमारे पास अपने परिवार का पेट भरने के लिये कोई काम नहीं था। यह घर से काम करने वाला उद्योग नहीं है। कारखाने के बंद होने (लॉकडाउन के दौरान) के झटके से उबरना मुश्किल हो गया है।

स्कूल वर्दी, तालिबान और उथलपुथल भरा समय

जैसे ही कोविड -19 मामलों की संख्या में गिरावट आई और प्रतिबंधों में ढील दी गई, वैसे ही भीलवाड़ा को एक और करारा झटका लगा। यह झटका था – अफगानिस्तान पर तालिबान का दोबारा कब्जा। दरअसल अफगानिस्तान उन 60 देशों में से एक है, जहां भीलवाड़ा के टेक्सटाइल उत्पाद निर्यात किये जाते हैं।

नाहर कहते हैं, तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होते ही वहां का निर्यात जो पहले प्रतिमाह 40 लाख रुपये का था, वह 75 प्रतिशत घटकर 10 लाख रुपये प्रति माह रह गया।

कपड़ा उद्योग ने जुलाई, अगस्त और सितंबर 2021 के महीनों में सामूहिक सुस्ती देखी है लेकिन प्रसंस्करण इकाइयां अब वापस पूरी क्षमता से काम कर रही हैं।

टेक्सटाइल उद्योग को जीवनदान देने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक रहा- स्कूलों का फिर से खुलना। स्कूलों के खुलने से स्कूल ड्रेस की मांग वापस बढ़ गयी, जो कुल उत्पादन का 25 प्रतिशत से 40 प्रतिशत हिस्सा है।

हालांकि, भीलवाड़ा के सभी कपड़ा निर्माता इतने भाग्यशाली नहीं रहे हैं।

बुनाई, कताई और सूत के प्रसंस्करण में व्यापार करने वाले अमित मेहता ने कहा, कुछ महीनों का अधिक नफा पूरे नुकसान की भरपाई के लिये पर्याप्त नहीं है और इसके कई कारण हैं। बुनाई केंद्रों की संख्या अधिक है और प्रसंस्करण इकाइयों के विपरीत उनका कोई संगठन नहीं है। प्रसंस्करण इकाइयों में श्रमिकों में अधिक एकजुटता दिखाई देती है। वे संख्या में कम हैं, उनमें अधिक आर्थिक स्थिरता है और इसी कारण जल्द ही मुनाफा कमाना शुरू कर देते हैं।

नवाचार की अगुवाई कर रहे युवा व्यवसायी

मेहता सहित व्यापारिक समुदाय के कई लोगों ने महामारी के दौरान खुद को बनाये रखने के लिये वैकल्पिक व्यवसाय ढूंढे। कई अपने शहरों में चले गये लेकिन कई अन्य औद्योगिक जिलों की तुलना में भीलवाड़ा में उनकी वापसी की दर अधिक अच्छी है।

निमार्ता से व्यवसायी बने किशन पटवारी ने 101 रिपोर्ट्र्स को बताया कि भीलवाड़ा में कपड़ा व्यापार सिर्फ एक व्यवसाय से अधिक है।

उन्होंने कहा,हमारे कारखाने के बंद होने के बाद, मजदूरों को उनकी कंपनियों से आंशिक वेतन भुगतान प्राप्त हुआ। इसलिये जब लॉकडाउन के बाद उत्पादन में तेजी आई तो श्रमिकों की बहुत कमी नहीं थी।”

उन्होंने कहा, यहां तक कि इस पीढ़ी के लोग राज्य से बाहर पढ़ाई करके घर लौटते हैं क्योंकि उनमें जोखिम लेने की हिम्मत के साथ-साथ नवाचारों और जीने के तरीकों के अनुकूल होने की शक्ति है।

30 वर्षीय काबरा, जो तीसरी पीढ़ी के व्यवसायी हैं, वह मुंबई में पढ़ाई के बाद भीलवाड़ा लौटे और वह भी इससे सहमत हैं।

काबरा ने कहा, भीलवाड़ा में कपड़ा व्यवसाय परिवारों से जुड़ा है, इसलिये वित्तीय सुरक्षा है। नयी पीढ़ी ने दायरे से बाहर कदम रखा है, सीखा है और अपने साथ नवाचारों के लाभ लाये हैं, जिन्हें पुरानी पीढ़ी ने स्वीकार किया है।

कारोबार के लिये समय बदल गया है और काबरा का नजरिया भी बदल गया है। उन्हें लगता है कि कपड़ा उद्योग विशाल है और कपड़ों से परे तकनीकी वस्त्रों तक फैलता है। इसमें सैन्य तंबू और अतिरिक्त कठोरता के लिये सड़कों की परतों के बीच उपयोग किये जाने वाले सीमेंट फाइबर शामिल हैं।

काबरा ने कहा, भीलवाड़ा के पास ऐसा करने के लिये मशीनरी और संसाधन हैं। यह हमारे विकल्पों को भी बढ़ायेगा और हमें ऐसे अनिश्चित समय में विभिन्न बाजारों में प्रवेश करने की अनुमति देगा।

एक्सपोर्ट सर्वे पोटेंशियल के मुताबिक, वीविंग मिल्स एसोसिएशन ने प्रस्तावित किया है कि भीलवाड़ा से बंदरगाहों को माल निर्यात करने के लिये शहर में एक अंतदेर्शीय कंटेनर डिपो स्थापित किया जाये। काबरा का मानना है कि इससे शहर के कारोबारियों को काफी मदद मिल सकती है।

टेक्सटाइल हब की आशायें और वादे

काबरा के युवा दिमाग ने जहां इनोवेशन की बात की, वहीं भीलवाड़ा में वीविंग मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय पेरीवाल ने कपड़ों पर हाल ही में 12 फीसदी जीएसटी पर प्रकाश डाला।

उन्होंने 101 रिपोर्ट्र्स से कहा,हम केंद्र सरकार के फैसले से असहमत हैं। हमने धागे के जीएसटी में सब्सिडी मांगी थी। अंतिम उत्पाद पर जीएसटी बढ़ाने से खरीदारों पर बोझ पड़ेगा।

राजस्थान के मुख्यमंत्री को हाल ही में दिये गये एक प्रस्ताव में वीविंग मिल्स एसोसिएशन ने निम्न मांगें की हैं

2020 के लिये बिजली शुल्क की छूट; न्यूनतम बिजली इकाई शुल्क, यानी 3.20 रुपये प्रति यूनिट; 25 प्रतिशत से 30 प्रतिशत की पूंजीगत सब्सिडी; और इसे वैश्विक मानकों के करीब लाने के लिये भीलवाड़ा में एक टेक्सटाइल पार्क की स्थापना।

एसोसिएशन विशेष रूप से उच्च पर्यावरण मानकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को देखते हुये इनके अनुपालन की अपेक्षा करता है। प्रसंस्करण इकाई अंतिम उत्पाद तैयार करने के लिये बहुत सारे पानी का उपयोग करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि वे नदियों में प्रदूषित पानी नहीं छोड़ें। वे शून्य-निर्वहन नीति का भी पालन करते हैं और संसाधित पानी का पुन: उपयोग करते हैं।

एक तरफ उद्योग जहां भीलवाड़ा को कपड़ा केंद्र घोषित करने की प्रतीक्षा कर रहा है, उसके मजदूर एक ऐसी योजना का इंतजार कर रहे हैं जो भविष्य में किसी भी अप्रत्याशित अवसर के मामले में उन्हें सुरक्षा प्रदान करें। माली, जो एक बच्चे के पिता हैं, कहते हैं, हम अभी भी महामारी के दौरान लिये गये ऋणों से उबर रहे हैं और किसी भी समस्याग्रस्त आर्थिक स्थिति के फिर से सामने आने पर हम समर्थन चाहते हैं।

–आईएनएस

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