किशोरियों के प्रति यौन हिंसा के अपराधों के लिए कानून में उम्र कैद और मौत की सजा का प्रावधान किये जाने के बावजूद नाबालिग लड़कियों और अबोध बच्चियों से बलात्कार की घटनाओं में किसी प्रकार की कमी नहीं आ रही है। निश्चित ही यह चिंताजनक है। इससे भी ज्यादा चिंताजनक नाबालिग बलात्कार पीड़िता के गर्भपात के लिये अदालतों में पहुंच रहे मामलों की संख्या में वृद्धि है। बच्चों के यौन शोषण और बलात्कार के मुकदमों की सुनवाई के लिये विशेष अदालतें भी हैं जिनमे जून, 2021 तक पॉक्सो कानून के तहत 1, 21, 226 मुकदमे लंबित थे।
बलात्कार की वजह से गर्भवती हुई नाबालिग लड़कियों के गर्भपात के लिए इलाहाबाद, मद्रास, और केरल सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों में मामले पहुंच रहे हैं। न्यायालय ऐसे मामलों में मेडिकल बोर्ड की राय के आधार पर राहत देने का निर्णय ले रहे हैं।
हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने बलात्कार की शिकार नाबालिग लड़कियों के गर्भपात की अनुमति के लिए बढ़ते मामलों पर भी चिंता व्यक्त की थी। अकेले सितंबर महीने में ही उच्च न्यायालय के इस तरह के कम से कम तीन मामले पहुंचे थे।
इसी तरह, केरल उच्च न्यायालय ने मई 2020 से जनवरी, 2021 के दौरान बलात्कार की शिकार सात लड़कियों को राहत प्रदान करते हुए मेडिकल बोर्ड की राय के आधार पर गर्भपात की अनुमति दी थी। इन बलात्कार पीड़िताओं का गर्भ 20 सप्ताह से ज्यादा अवधि का था। कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान इन लड़कियों का यौन उत्पीड़न किया गया था।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार 2020 में मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 3,259 नाबालिग लड़कियां लोगों की विकृत मानसिकता और हवस का शिकार हुयीं। इसी तरह, नाबालिग लड़कियों से बलात्कार की महाराष्ट्र में 2,785 और उत्तर प्रदेश में 2,630 घटनाएं दर्ज की गयीं।
नाबालिग लड़कियों से बलात्कार की घटनाएं कानून व्यवस्था की समस्या से कहीं ज्यादा सामाजिक समस्या बनती जा रही है। इस जघन्य अपराध की शिकार बच्चियां मानसिक संताप से जूझ रही होती हैं और इससे उबरना उनके लिये बहुत ही मुश्किल होता है।
अब तो स्थिति ये है कि बच्चों को अपने घरों में ही सबसे ज्यादा असुरक्षित समझा जाने लगा है। इसकी प्रमुख वजह नाबालिग लड़कियों से दुष्कर्म और यौन शोषण की घटनाओं के अधिकांश मामलों में किसी रिश्तेदार या परिचित की संलिप्तता होना है।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 3,189 नाबालिग बच्चों से दुष्कर्म और यौन शोषण करने वाले परिचित लोग थे। इसलिए नाबालिगों और किशोरवय लड़कियों को अपने रिश्तेदारों तथा परिचितों की बुरी नजरों से बचाना भी बहुत बड़ी चुनौती है।
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण कानून (पॉक्सो) में 12 साल से कम उम्र की नाबालिग से बलात्कार के अपराध के लिये मौत की सजा का प्रावधान किये जाने के बावजूद ऐसे मामलों की संख्या में कमी नहीं आयी है।
गृह मंत्रालय की संसदीय समिति ने बजट सत्र के दौरान मार्च में सदन में पेश अपनी रिपोर्ट में दोषियों को सजा देने में विलंब भी एक वजह है।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उसकी राय में महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों पर कानून व्यवस्था लागू करने वाली एजेंसियां अकेले नियंत्रण नहीं पा सकती हैं। इसमें महिला और बाल विकास मंत्रालय के साथ तालमेल करके गृह मंत्रालय सामुदायिक पुलिस और जागरूकता पैदा करने वाली व्यवस्था तैयार करनी होगी। इसमें महिला संगठन और पंचायत स्तर पर प्राधिकारी अहम भूमिका निभा सकते हैं।
निर्भया कांड के बाद संसद ने बलात्कार जैसे घृणित अपराध की सजा से संबंधित भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों को कठोर बनाया और नाबालिग लड़कियों से बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) कानून तथा अन्य कानूनों में भी संशोधन किये।
पोक्सो कानून के तहत बच्चियों से बलात्कार और यौन हिंसा के अपराधों के लिये सजा का वर्गीकरण किया गया। इसके तहत 12 साल की उम्र तक की बच्चियों से सामूहिक बलात्कार के अपराध में मृत्यु होने तक उम्रकैद या फांसी की सजा और 12 साल की आयु तक की बच्चियों से बलात्कार और यौन हिंसा के अपराध में कम से कम 20 साल और अधिकतम उम्रकैद या फांसी की सजा का प्रावधान किया गया।
इसी तरह, 12 से 16 साल की किशोरी से सामूहिक बलात्कार के जुर्म में उम्रकैद और बलात्कार के अपराध में दस साल से लेकर बीस साल तक की सजा का प्रावधान किया गया। इस सजा को उम्र कैद में भी बढ़ाया जा सकता है।
देश की शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप के बाद सरकार ने बच्चों और किशोरियों से बलात्कार या यौन हिंसा के अपराध के मुकदमों के लिए विशेष त्वरित अदालतें गठित कीं। इस समय 26 राज्यों में 338 अदालतें सिर्फ पोक्सो के तहत दर्ज मुकदमों की सुनवाई कर रही हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार विभिन्न राज्यों में इन अदालतों में जून, 2021 तक पोक्सो के तहत 1, 21, 226 मुकदमे लंबित थे। इनमें से सबसे ज्यादा 39,868 मामले अकेले उत्तर प्रदेश में लंबित थे। दूसरे स्थान पर बिहार और तीसरे स्थान पर मध्य प्रदेश है जिनमें क्रमश: 13,580 और 10,631 पोक्सो के मुकदमे लंबित थे।
उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार सामाजिक स्तर पर नाबालिग लड़कियों को हवस का शिकार बनाने की विकृत मानसिकता वाले तत्वों की पहचान कर उन्हें अलग थलग करके उनके आचरण में सुधार के लिए ‘साम दाम दंड’ की नीति अपनायेगी। इसके अलावा सरकार वह इस संबंध में महिला संगठनों और पंचायत स्तर तक के प्राधिकारियों को भी इस समस्या और इस पर नियंत्रण के उपायों के बारे में जागरूक बनाने के लिए ठोस कदम उठायेगी।