ये कैसा पाकिस्तान? भारत के सामने घुटने टेकने वाले अपने सेनाध्यक्ष को दे रहा प्रमोशन

नई दिल्ली । पाकिस्तान भी गजब का देश है, जहां जंग हारने का भी इनाम मिलता है। देश में सेना और सरकार की तानाशाही ऐसी कि वहां की सेना एक भी जंग नहीं जीत पाई। लेकिन, उनके सेनाध्यक्षों के कंधों और वर्दी पर सितारे सजे होते हैं। ऐसा ही कुछ इनाम सैयद असीम मुनीर को भी मिला है।

शाहबाज शरीफ संघीय मंत्रिमंडल ने सीओएएस सैयद असीम मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत करने को मंजूरी दे दी है। यानी भारत से पीटने का इनाम असीम मुनीर के सीने पर तमगे के रूप में चमकने वाला है।

पाकिस्तान के इतिहास में अयूब खान के बाद यह उपलब्धि हासिल करने वाले असीम मुनीर दूसरे व्यक्ति हैं। जनरल असीम मुनीर को ऑपरेशन ‘बुनयान उल मरसूस’ का नेतृत्व करने और राष्ट्रीय सुरक्षा प्रबंध के लिए पाकिस्तान के संघीय मंत्रिमंडल द्वारा उन्हें फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया है।

पाकिस्तान के इतिहास में इसे एक दुर्लभ सम्मान के तौर पर देखा जाता है। इससे पहले यह सम्मान अयूब खान को मिला है, जिनकी कारस्तानियों से तो पूरे पाकिस्तान का इतिहास शर्मिंदगी से भरा है।

दरअसल, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ द्वारा असीम मुनीर की पदोन्नति का प्रस्ताव रखा गया था, जिसे वहां की संघीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। पाकिस्तान की सरकार ने असीम मुनीर को यह इनाम 6 और 7 मई की रात को भारत द्वारा किए गए पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमले के बाद पाकिस्तान की तरफ से किए गए भारत पर हमले और इसमें अपनी तरफ से खुद जीत की घोषणा करने, यानी अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने के तौर पर दिया गया है। जब विश्व जान चुका है कि भारतीय सेना के पराक्रम के आगे कैसे पाकिस्तान की सेना ने घुटने टेक दिए।

पाकिस्तान की आवाम को जीत का चूरन चटाने वाली शाहबाज शरीफ और पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर लगातार इस बात का दावा करते रहे हैं कि उनके अद्वितीय सैन्य नेतृत्व की वजह से उन्होंने भारत को झुकने पर मजबूर कर दिया, जबकि पाकिस्तान के खोखले दावों की पोल एक-एक कर भारत की सरकार ने खोल दी और पूरी दुनिया को सबूतों के साथ दिखाया कि कैसे पाकिस्तान की हालत भारत की जवाबी सैन्य कार्रवाई की वजह से पतली हो गई थी।

पाकिस्तान को शर्म भी नहीं आती, भारतीय सेना के द्वारा इतना बुरा जख्म झेलने के बाद भी वहां की कैबिनेट के अनुसार, जनरल असीम मुनीर के शानदार सैन्य नेतृत्व, बहादुरी और पाकिस्तान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता को मान्यता देने के लिए यह पदोन्नति दी गई है। कैबिनेट के सदस्यों ने दुश्मन को निर्णायक रूप से हराने के लिए सशस्त्र बलों की प्रशंसा की और हर मोर्चे पर नागरिकों और राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने में सेना के प्रयासों की सराहना की। कैबिनेट ने संघर्ष के शहीदों के लिए फातिहा भी पढ़ी।

मतलब, आतंकियों के मारे जाने पर पाकिस्तानी झंडे में उनके शवों को लपेटकर उनकी शव यात्रा निकालने और उनकी कब्र पर फातिहा पढ़ने वाला देश अब तक तो झूठी जीत का जश्न ही मना रहा था। अब अपने हार खाए सेनाध्यक्ष के सीने पर जीत के तमगे सजाने के साथ ही उसे पदोन्नति भी दे रहा है।

पाकिस्तान के इससे पहले जिस अयूब खान को यह सम्मान मिला था, उसका इतिहास भी उतना ही काला रहा है। अयूब खान को पाकिस्तान के पहले स्वदेशी सेना प्रमुख होने का सौभाग्य प्राप्त था, उसने 1951 से 1958 तक पाक सेना की जिम्मेदारी संभाली। लेकिन, 1958 में अयूब खान ने तत्कालीन राष्ट्रपति इस्कंदर अली मिर्जा को पद से बर्खास्त कर या कहें कि तख्ता पलट कर सत्ता हथिया ली। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बारे में सभी जानते हैं कि यह सोच अयूब खान की थी, लेकिन भारत से करारी हार के बाद पाकिस्तान में उनके खिलाफ बगावत हो गई और 1969 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। ये वही अयूब खान थे, जिसकी पढ़ाई-लिखाई एएमयू से हुई और उसने द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन की ओर से युद्ध किया। विभाजन के बाद वो पाकिस्तानी सेना में शामिल हो गया।

अयूब खान के नाम पाकिस्तान का पहला सैन्य शासक बनने का तमगा है। उनके शासन में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के खिलाफ जनता सड़क पर उतर आई थी। 1965 के राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने कथित धांधली कर जिन्ना की बहन फातिमा को हराया था। 1968-69 तक पूरे पाकिस्तान में अयूब खान के खिलाफ खूब आंदोलन हुए और इसी बीच उसे हार्ट अटैक आ गया। फिर पैरालिसिस अटैक ने उसे चलने-फिरने लायक भी नहीं छोड़ा और वह व्हील चेयर पर आ गया।

मतलब आज तक जितने भी जंग हुए, उसमें भारतीय सेना के हाथों अपनी गत करवाने वाली पाकिस्तानी सेना के सेनाध्यक्ष हमेशा मजे में ही रहे और वहां की जनता को जीत का चूरन चटाकर इनके सीने पर तमगे सजते रहे।

–आईएएनएस

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