उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के सत्ता में आने के बाद अगर किसी विषय पर सबसे ज़्यादा चर्चा हुई है तो वह “बुल्डोज़र”है। प्रदेश सरकार को लगता है की अपराध पर क़ाबू करने का “बुल्डोज़र” से बेहतर कोई रास्ता नहीं है।
लेकिन “बुल्डोज़र” ने मुख्यमंत्री योगी और उनकी सरकार का आलोचना भी ख़ूब हो रही है। आरोप है कि “बुल्डोज़र” का इस्तेमाल “क़ानून” की नज़र में ग़लत है। इसके अलावा “चयनात्मक” तरीक़े से मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के लिये “बुल्डोज़र” इस्तेमाल का आरोप भी सरकार पर लग रहा है।
माना जाता है कि योगी आदित्यनाथ सरकार को धरना-प्रदर्शन और आंदोलन रास नहीं आते हैं। प्रदेश में हुए सभी प्रदर्शनों को कुचलने के सरकार हर संभव कोशिश करती है।
नगरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) हो या कृषि क़ानून दिनों को दबाने की हर सम्भव प्रयास किया गया। सीएए के आंदोलन के दौरान क़रीब 20 प्रदर्शनकारियों की मौत हुई। आरोप है यह पुलिस की गोली से मारे गये।
इसके सीएए विरोधी मुखर आवाज़ों को दबाने की प्रदर्शनकारियों की तस्वीरों की होर्डिंग लगी, जिसपर अदालत को भी एतराज़ हुआ।इसके अलावा प्रदर्शनकारियों को हिंसा में दोषी क़रार पाने से पहले ही उनको “वसूली नोटिस” दिये जाने लगे।
यह साफ़ था की मुख्यमंत्री किसी भी हाल में प्रदर्शंकरियों को बख़्शना नहीं चाहते थे। सीएए के प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री का बयान “बदला लिया जायेगा” उनकी मंशा को ज़ाहिर करता है। हालाँकि इस बयान पर सरकार द्वारा सफ़ाई भी दी गई थी।
हालाँकि हाल में उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल की विवादास्पद टिप्पड़ियों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरू हो गये। हिजाब और ज्ञानवापि मस्जिद के मुद्दे पर ख़ामोश रहने वाला मुस्लिम समुदाय पैग़म्बर मोहम्मद साहब पर भाजपा प्रवक्ताओं द्वारा की गई विवादास्पद टिप्पड़ियों के ख़िलाफ़ सड़क पर निकाल आया।
प्रदेश में पहला बड़ा प्रदर्शन 03 जून को हुआ जो संप्रदायिक हिंसा में बदल गया। लेकिन बाद में प्रदेश में प्रदर्शन हिंसक हो गया।पुलिस ने बड़ी संख्या में प्रदर्शन के दौरान हिंसा कारने के आरोप में उठा लिया है।
हालाँकि अभी हिंसा की जाँच पूरी नहीं हुई है। लेकिन आरोपियों के ख़िलाफ़ करवाई शुरू हो गई हैं। जैसा कि पुलिस ने शुरू में ही कहा था कि आरोपियों की सम्पत्ति को ज़ब्त और ध्वस्त किया जायेगा। वही हो रहा है।
जो मकान बीते शुक्रवार तक ठीक थे। अब अचानक अवैध निर्माण हो गये हैं। प्रयागराज में 12 जून को सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद जावेद का घर गिरा दिया गया। बता दें कि जावेद की पुत्री आफ़रीन फ़ातिमा भी भाजपा की नीतियों कि मुखर विरोधी हैं। उन्होंने संशोधित नगरिकता क़ानून का जमकर विरोध किया था।
जावेद का घर तोड़े जाने के बाद योगी सरकार सवालों के घेरें में हैं। क्या क़ानून की नज़र में “जावेद परिवार” का बसेरा तोड़ना सही है ? अगर आरोपियों के घर ही तोड़े जाते हैं, तो लखीमपुर कांड के मुख्य आरोपी मंत्रीपुत्र आशीष मिश्रा के घर यह करवाई क्यूँ नहीं गई थी?? उस पर तो 05 हत्याओं का आरोप था।
नागरिक समाज भी अब “बुल्डोज़र” के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहा है।अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति ने कहा है कि जावेद का घर क़ानून को नज़रअन्दाज़ कर के गिराया है। समिति की वरिष्ठ सदस्य मधु गर्ग मानती है की “बुल्डोज़र” जावेद के घर पर नहीं बल्कि देश के संविधान और क़ानून पर चला है। गर्ग ने कहा “ऐसा लगता देश में लोकतंत्र नहीं तानाशाही है।”
क़ानून के जानकार भी किसी के “बसेरे” को उजाड़ने के ख़िलाफ़ हैं। प्रसिद्ध अधिवक्ता सक़ीब सिद्दीक़ी कहते हैं “न संविधान और न क़ानून” किसी के घर को तोड़ने की इजाज़त देता है। सिद्दीक़ी के अनुसार घर आरोपी जावेद के नाम नहीं बल्कि उनकी पत्नी के नाम है, इस तरह से भी यह करवाई ग़लत है। उन्होंने कहा सरकार तो बताना चाहिये है की प्रदेश में कितने अवैध निर्माण है और कितने के विरुद्ध करवाई हुई। या यह मान लिया जाए की सरकार बदला लेने की नियत से धर्म विशेष के विरुद्ध “बुल्डोज़र” का इस्तेमाल कर रही है।
मीडिया में भी “बुल्डोज़र” पर चर्चा हो रही है।जहाँ मीडिया का एक हिस्सा घरों को उजाड़ने की ख़ुशियाँ मानते दिखता है।वही एक हिस्सा कहता है,इसको धर्म से अलग हटकर देखा जाना चाहिए है।पत्रकार मुदित माथुर कहते हैं कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 कहता है, “देश के किसी भी इंसान को उसके जीवन या उसकी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।” जब तक विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन किये बिना।